आज का शब्द: स्थगित और यश मालवीय की कविता- फिर कथाओं को खँगाला जा रहा है 


                
                                                             
                            अमर उजाला 'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- स्थगित, जिसका अर्थ है- जिसका स्थगन हुआ हो, जो निर्दिष्ट समय के लिए रोक दिया गया हो। प्रस्तुत है यश मालवीय की कविता- फिर कथाओं को खँगाला जा रहा है 
                                                                     
                            

दबे पैरों से उजाला आ रहा है
फिर कथाओं को खँगाला जा रहा है

धुंध से चेहरा निकलता दिख रहा है
कौन क्षितिजों पर सवेरा लिख रहा है
चुप्पियाँ हैं जुबाँ बनकर फूटने को
दिलों में गुस्सा उबाला जा रहा है

दूर तक औ' देर तक सोचें भला क्या
देखना है बस फिजाँ में है घुला क्या
हवा में उछले सिरों के बीच ही अब
सच शगूफे सा उछाला जा रहा है

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44 minutes ago



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