'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- गोष्ठी, जिसका अर्थ है- सभा-मंडली, परामर्श, सलाह, बातचीत। प्रस्तुत है कुँवर नारायण की कविता- अकेला कवि
अकेला कवि सरहपा
भटकता है राज्ञी से श्रीपर्वत तक
खोजता मुक्ति का अर्थ
विद्वत्समाज में
सभा गोष्ठियों में
सुंदर विदुषी
कनखियों से देखती उसे
शबर-कन्या
कुशल संधान!
एक ही शर से बींध देती
असावधान कवि का हृदय और बुद्धि
निषेधों को पार करता
एक दुस्साहस
डूबकर नहाता आँखों की नीली झील में
धूप में सीपी-से चमकते कानों में पढ़ता एक मंत्र
चिकने कपोलों पर लिखता प्यार के मनमाने छंद
लहराते केशों की सुगंध में ऊँघती एक मदहोशी
चूमता नाभि-कमल
तितली हो जाता एक मन
जैसे चाँद तारे आकाश में
वैसे ही इंद्रियाँ विभिन्न स्थान शरीर में
दुर्लभ संयोग से
झरते बीज-बिंदु फूलों से
काया से उगता वसंत।
दोनों मिलकर खेलते एक खेल
जिसमें दोनों जीतते हैं एक साथ।
बचा रह जाता
उस खेल का कवित्व,
और स्त्री-पुरुष, ऊँच-नीच के अभेद में
मनुष्य के मुक्त होने का अर्थ।
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