Ukraine Crisis : बदबूदार बंकरों में जिंदगी के लिए जद्दोजहद, फंसे हुए छात्र आपस में दे रहे हैं दिलासा


सार

हल्की सी आहट पर भी सहम रहा है विद्यार्थियों का दिल, जिंदा रहने के लिए रसद की आपूर्ति भी होने लगी कम।

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यूक्रेन के विभिन्न प्रांतों में हो रहे हमलों का असर इस कदर है कि वहां बंकरों में छिपे मेडिकल छात्रों का दिल हल्की से आहट पर सहम जाता है। हर सेकेंड खुद को जिंदा रखने की जंग लड़ रहे बच्चे बदबूदार बंकर में रहने को मजबूर हैं।

मन में सिर्फ इतनी इच्छा है कि सुरक्षित पहुंचकर वतन की मिट्टी को चूम लिया जाए। जिंदगी और मौत के बीच इस कठिन समय में बच्चे एक-दूसरे की हिम्मत बांध रहे हैं। कुछ इसी तरह के दर्द अभिभावकों द्वार शनिवार को मंडी हाउस पर साझा किया गया। 

अभिभावकों ने बताया कि खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में जान बचाने के लिए बच्चों ने बीते तीन दिनों से बंकर में शरण ले रखी है। बच्चों के खाने के लिए हॉस्टल की ओर से रसद का इंतजाम किया जा रहा है। बच्चों की अधिक संख्या के आगे यह इंतजाम भी अब कम पड़ता जा रहा है। यही वजह है कि अब ऐसे हालात उत्पन्न होने लगे हैं जिसमें हॉस्टल संचालकों को खतरे के बीच बाहर निकलना पड़ रहा है। इस वजह से जिंदगी को बचाने के लिए जंग और भी मुश्किल हो रही है। क्योंकि, किसी को नहीं पता कि बाहर निकलने वाले लौटेंगे भी या नहीं।

खारकीव में पढ़ते हैं दो हजार से अधिक भारतीय छात्र : खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दो हजार से अधिक भारतीय छात्र-छात्राएं मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। युद्ध के खतरे को देखते हुए यहां से करीब एक हजार विद्यार्थी निकल गए हैं, लेकिन बाकी बंकर में फंसे हुए हैं। अभिभावकों का कहना है कि छात्रों को बचाने के लिए हॉस्टल के नीचे बने बंकर में रखा गया है। यहां इंटरनेट नेटवर्क भी कम हैं। इस वजह से कई बार बच्चों से संपर्क करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

एक-दूसरे को दे रहे हैं हालात से लड़ने की हिम्मत
अभिभावकों के मुताबिक, जंग छिड़ने के बाद से बंकरों में मौजूद कुछ छात्र-छात्राएं इतनी बुरी तरह से घबराए हुए हैं कि वे बाहर निकलकर अपने वतन लौटने का प्रयास कर रहे हैं। चूंकि, बाहर निकलने पर जान का खतरा अधिक है। ऐसे में वहां मौजूद अन्य बच्चे एक-दूसरे को हिम्मत और मदद के लिए आशा की किरण का हवाला देकर बच्चों को बाहर निकलने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ बच्चे अपने अभिभावकों के साथ बात करते हुए भी फफक पड़ते हैं।

4 किमी पैदल चल चुकी हैं आंचल और मोनिका
यूक्रेन से रोमानिया के लिए शनिवार दोपहर निकली एमबीबीएस की छात्रा आंचल और मोनिका को 12 किमी पहले ही बस ने उतार दिया। दोनों ने 4 किमी रास्ता पैदल पार कर लिया है, जबकि 8 किमी रास्ता बाकी है। मोनिका ने बताया कि रोमानिया से 4 किमी पहले उनके कागजात जांचे जाएंगे। इसके बाद दोनों रात करीब 10:30 बजे रोमानिया में प्रवेश करेंगी। छात्राओं के परिजन ने बताया कि दोनों शनिवार दोपहर करीब 1:20 बजे बस से रोमानिया के लिए निकली थीं। वहीं, गांव देवटा निवासी तनुज भाटी हॉस्टल में जबकि मूंजखेड़ा गांव निवासी अक्षांक अब भी बंकर में फंसे हुए हैं। 
 

बेटी के सपने को सच करने के लिए उसे यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए भेजा था, लेकिन पता नहीं था कि बेटी को भेजने के एक साल के भीतर ही इस तरह के हालात पैदा हो जाएंगे। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण जिगर के टुकड़ा का लौटना मुश्किल लग रहा है। यह कहते ही एमबीबीएस की छात्रा आरुषि के पिता आशीष फफक पड़े। यह कहानी सिर्फ आशीष की नहीं, बल्कि तमाम उन सभी अभिभावकों की है जो इन दिनों अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता में हैं और लगातार सरकार से गुहार लगा रहे हैं।

रविवार को मंडी हाउस पर सैकड़ों की संख्या में पहुंचे अभिभावकों ने अपन दर्द साझा किया। प्रदर्शन में शामिल अभिभावक आशीष जैन ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाई के लिए बीते वर्ष ही खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी भेजा था। सब कुछ ठीक चल रहा था और बेटी अच्छी तरह से पढ़ रही थी, परंतु अचानक रूस की ओर से यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद हालात बदल गए।

आशीष ने बताया कि जब से पड़ोसी देश ने यूक्रेन पर हमला किया है, तब से बेटी सहमी हुई है। यह हालात सिर्फ बेटी के नहीं बल्कि उसके साथ मौजूद करीब 800 से अधिक छात्रों के हैं, जो हॉस्टल की बेसमेंट में रहकर खुद को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं। बंकर में मौजूद छात्रों में भय का माहौल इस कदर है कि बाहर हल्की सी आहट होने पर ही सहम उठते हैं। बार-बार बच्चे अपने अभिभावकों से वतन वापसी के लिए गुहार कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि यूक्रेन में कई बार इंटरनेट सेवा प्रभावित होने पर चिंता और बढ़ जाती है।

विस्तार

यूक्रेन के विभिन्न प्रांतों में हो रहे हमलों का असर इस कदर है कि वहां बंकरों में छिपे मेडिकल छात्रों का दिल हल्की से आहट पर सहम जाता है। हर सेकेंड खुद को जिंदा रखने की जंग लड़ रहे बच्चे बदबूदार बंकर में रहने को मजबूर हैं।

मन में सिर्फ इतनी इच्छा है कि सुरक्षित पहुंचकर वतन की मिट्टी को चूम लिया जाए। जिंदगी और मौत के बीच इस कठिन समय में बच्चे एक-दूसरे की हिम्मत बांध रहे हैं। कुछ इसी तरह के दर्द अभिभावकों द्वार शनिवार को मंडी हाउस पर साझा किया गया। 

अभिभावकों ने बताया कि खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में जान बचाने के लिए बच्चों ने बीते तीन दिनों से बंकर में शरण ले रखी है। बच्चों के खाने के लिए हॉस्टल की ओर से रसद का इंतजाम किया जा रहा है। बच्चों की अधिक संख्या के आगे यह इंतजाम भी अब कम पड़ता जा रहा है। यही वजह है कि अब ऐसे हालात उत्पन्न होने लगे हैं जिसमें हॉस्टल संचालकों को खतरे के बीच बाहर निकलना पड़ रहा है। इस वजह से जिंदगी को बचाने के लिए जंग और भी मुश्किल हो रही है। क्योंकि, किसी को नहीं पता कि बाहर निकलने वाले लौटेंगे भी या नहीं।

खारकीव में पढ़ते हैं दो हजार से अधिक भारतीय छात्र : खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दो हजार से अधिक भारतीय छात्र-छात्राएं मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। युद्ध के खतरे को देखते हुए यहां से करीब एक हजार विद्यार्थी निकल गए हैं, लेकिन बाकी बंकर में फंसे हुए हैं। अभिभावकों का कहना है कि छात्रों को बचाने के लिए हॉस्टल के नीचे बने बंकर में रखा गया है। यहां इंटरनेट नेटवर्क भी कम हैं। इस वजह से कई बार बच्चों से संपर्क करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

एक-दूसरे को दे रहे हैं हालात से लड़ने की हिम्मत

अभिभावकों के मुताबिक, जंग छिड़ने के बाद से बंकरों में मौजूद कुछ छात्र-छात्राएं इतनी बुरी तरह से घबराए हुए हैं कि वे बाहर निकलकर अपने वतन लौटने का प्रयास कर रहे हैं। चूंकि, बाहर निकलने पर जान का खतरा अधिक है। ऐसे में वहां मौजूद अन्य बच्चे एक-दूसरे को हिम्मत और मदद के लिए आशा की किरण का हवाला देकर बच्चों को बाहर निकलने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ बच्चे अपने अभिभावकों के साथ बात करते हुए भी फफक पड़ते हैं।

4 किमी पैदल चल चुकी हैं आंचल और मोनिका

यूक्रेन से रोमानिया के लिए शनिवार दोपहर निकली एमबीबीएस की छात्रा आंचल और मोनिका को 12 किमी पहले ही बस ने उतार दिया। दोनों ने 4 किमी रास्ता पैदल पार कर लिया है, जबकि 8 किमी रास्ता बाकी है। मोनिका ने बताया कि रोमानिया से 4 किमी पहले उनके कागजात जांचे जाएंगे। इसके बाद दोनों रात करीब 10:30 बजे रोमानिया में प्रवेश करेंगी। छात्राओं के परिजन ने बताया कि दोनों शनिवार दोपहर करीब 1:20 बजे बस से रोमानिया के लिए निकली थीं। वहीं, गांव देवटा निवासी तनुज भाटी हॉस्टल में जबकि मूंजखेड़ा गांव निवासी अक्षांक अब भी बंकर में फंसे हुए हैं। 

 



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