पढ़ाई का नाम लेते ही इन मासूमों के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है। इनका स्कूल सुबह को नहीं शाम की पाली में चलता है। यहां ये पढ़ना-लिखना तो सीखते ही हैं, साथ ही इनके रहने के तौर तरीकों में भी बदलाव आ गया है। झुग्गी बस्ती में रहने वाले ये वो बच्चे हैं, जो पहले नालियों से कूड़ा बीनते फिरते थे लेकिन अब इनके हाथों में किताब-कलम आ गई हैं। कभी दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देख खुश होने वाले ये बच्चे अब स्कूल जाकर अपना भविष्य संवार रहे हैं।
नई बस्ती में चल रही खुशी की ये अकेली पाठशाला नहीं है। शहर में 13 जगहों पर ज्ञानोदय संस्था की तरफ से शिक्षा का उजियारा फैलाया जा रहा है। इन पाठशालाओं में शहर की तमाम झुग्गी बस्तियों के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पढ़ाई के साथ सिलाई-कढ़ाई भी सिखाई जा रही है।
शाम को तीन बजे से चलती हैं कक्षाएं
शाम को जब शहर के सारे स्कूलों की छुट्टी हो जाती है तो इन पाठशालाओं में यस सर… यस मेम… की आवाजें सुनाई देनी शुरू हो जाती हैं। झुग्गी बस्तियों से कपड़े के थैलों में किताबें लेकर ये मासूम अपनी-अपनी पाठशाला की तरफ चल देते हैं। शुक्रवार की कक्षा में ऐसे बच्चों से रूबरू हुए तो कौन पढ़ना चाहता है, सवाल पर सबने हाथ खड़े कर लिए। हम सभी पढ़ना चाहते हैं कहकर मासूमों के चेहरे खिल गए। बच्चों ने बताया कि बड़ी मुश्किल से पढ़ने आते हैं, माता-पिता कहते हैं कि कूड़ा बीनकर लाओ तो कुछ पैसे मिलेंगे, पढ़ाई करके क्या करोगे।
पढ़ाई ने सिखा दिया रहने का सलीका
मंगतपुरम झुग्गी बस्ती की रहने वाली 15 साल की पूजा अब इंजीनियर बनने के सपने देखती है। बताती है कि जब पढ़ाई शुरू नहीं की तो गलियों में जाकर कूड़ा बीनती थी। कूड़े के ढ़ेर से बोतले चुनती थी। गंदे कपड़े पहनना अच्छा लगता था लेकिन जब से पढ़ाई शुरू की तो अच्छे से रहना आ गया। सफाई का ध्यान रखती हूं। पहले ढ़ंग से बोलना भी नहीं आता था, अब तो मन करता है कि पढ़ती रहूं और एक दिन इंजीनियर बन जाऊं।
सिलाई करके चला रही घर
30 साल की अनु जब मंगतपुरम बस्ती में आई तो आठ साल की थी। पिता रिक्शा चालक, माता घरों में काम करती थी। अनु को पता चला कि नई बस्ती में स्कूल चलता है। निशुल्क पढ़ाई कराई जाती है। उसने स्कूल जाना शुरू किया तो माता-पिता रोकने लगे। कहने लगे कि कूड़ा बीनकर लाया कर। अनु ने पढ़ाई के साथ-साथ सिलाई भी सीख ली। बताती है कि ज्ञानोदय ने मेरे जीवन के अंधियारे को खत्म कर दिया है। अब मैं सिलाई करके घर चलाती हूं। बेटी को भी स्कूल भेजती हूं। कहती हैं कि मेरा जीवन तो बस्ती में कट गया लेकिन बेटी को पढ़ाकर कामयाब बनाऊंगी।
मनोज आज बना झुग्गी के लिए मिसाल
मंगतपुरम झुग्गी में रहने वाले मनोज आज बस्ती में सबसे पढ़े-लिखे हैं। उन्होंने 12वीं के बाद होटल मैनेजमेंट की भी पढ़ाई की। आज वो बैग की चेन और सैंडिल आदि बेचने का काम करता है। मनोज बताते है कि पहले सड़कों पर आवारा घूमता था। झगड़े करता था लेकिन ज्ञानोदय के स्कूल में पढ़ाई शुरू की तो जिंदगी बदलती चली गई। आज वो बस्ती के दूसरे लोगों से भी उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जागरूक करते हैं।