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आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। ये लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पार्टी के गढ़ के रूप में देखे जाते थे। मुसलमान मतदाताओं के एकमुश्त समर्थन के कारण आजमगढ़ सीट पर यादव परिवार का तो रामपुर सीट पर आजम खान का दबदबा रहता था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड लहर में भी सपा ने इन दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन केवल ढाई साल में ही सपा को इन दोनों किलों में हार का सामना करना पड़ा है। क्या अखिलेश यादव को मुसलमानों की नाराजगी भारी पड़ी?
क्यों नाराज थे मुसलमान?
दरअसल, माना जा रहा है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग में यह भावना पैदा हो गई है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव उन मुद्दों पर हमेशा चुप्पी साध जाते हैं जिनमें मुसलमानों के साथ गलत हो रहा होता है। आरोप है कि जब मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चल रहे थे, तब अखिलेश यादव ने चुप्पी साधे रखी और मुसलमानों के साथ खड़े नहीं हुए। उन्होंने प्रशासन को कटघरे में खड़ा करने का काम नहीं किया। जब ज्ञानवापी का मुद्दा चल रहा था तब भी वे खुलकर मुसलमानों के पक्ष में खड़े नहीं हुए। समाजवादी पार्टी के कई मुस्लिम नेताओं ने इसी मुद्दे पर पार्टी का साथ भी छोड़ दिया।
आरोप है कि उन्होंने बुरे वक्त में फंसे पार्टी के बड़े मुसलमान नेता आजम खान का भी पक्ष नहीं लिया। लोगों का मानना है कि यदि वे आजम खान के पक्ष में आंदोलन करते तो योगी आदित्यनाथ सरकार उन्हें लंबे समय तक जेल में बंद न रख पाती, लेकिन अखिलेश यादव ने इन मुद्दों पर कभी खुलकर आजम खान का पक्ष नहीं लिया। इसका परिणाम हुआ कि आजम खान लंबे समय तक जेल में बंद रहे और उन्हें अपनी रिहाई की लड़ाई अकेले दम पर लड़नी पड़ी। इन कारणों से मुसलमान अखिलेश यादव से नाराज होते चले गए। माना जा रहा है कि इस चुनाव में मुसलमानों की नाराजगी के कारण ही सपा उम्मीदवारों की करारी हार हुई है।
सपा के बड़े नेता प्रचार के लिए ही नहीं निकले
- केवल मुसलमानों की नाराजगी ही सपा पर भारी नहीं पड़ी है। उसके अपने नेताओं की कमियां भी पार्टी को मिली इस हार का जिम्मेदार मानी जा रही हैं। अखिलेश यादव और अन्य बड़े नेताओं ने इन दोनों ही सीटों पर प्रचार अभियान को ताकत नहीं दी। वहीं, भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ मनोज तिवारी और अन्य स्टार प्रचारकों का लगातार उपयोग किया।
- सपा नेताओं की आपसी अनबन भी पार्टी की हार पर भारी पड़ी है। कहा जा रहा है कि सपा कार्यकर्ताओं ने वोट डालने के लिए अपने मतदाताओं पर कोई जोर नहीं डाला, जबकि भाजपा अपना एक-एक वोट निकालकर बूथ तक पहुंचाने में लगी रही। साथ ही आजमगढ़ जैसी मुस्लिम बहुल सीट पर सपा-बसपा के मुसलमान मतदाताओं में वोटों का विभाजन हुआ जिसका लाभ भाजपा को मिला और उसे जीत हासिल हुई।
- आरोप यह भी है कि समाजवादी पार्टी ने बार-बार स्थानीय लोगों पर बाहरी उम्मीदवारों को थोपा। केवल यादव परिवार का सदस्य होने को ही वे जीत की गारंटी मान बैठे, जबकि बीजेपी के स्थानीय उम्मीदवार न केवल लोकप्रियता के मामले में सपा उम्मीदवारों पर भारी पड़े, बल्कि आम लोगों में भी उनके प्रति समर्थन बढ़ता चला गया।
बसपा और प्रशासन ने हराया: सपा
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह ने अमर उजाला से कहा कि मुसलमान मतदाता आज भी उनकी पार्टी के साथ खड़ा है। सपा उम्मीदवारों को मिले वोट इस बात का प्रमाण हैं कि उनका कोर वोटर आज भी उनके साथ है। लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि आजमगढ़ में बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार के कारण मतों में विभाजन का उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। सपा प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि यूपी सरकार ने प्रशासन का दुरूपयोग किया और पहले वोटिंग के दौरान और बाद में मतगणना के दौरान गड़बड़ी की और जीत हासिल की।
भाजपा ने मतदाताओं का दिल जीता
उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता संजय चौधरी ने कहा कि आजमगढ़ और रामपुर को समाजवादी पार्टी का किला नहीं कहा जा सकता। इन दोनों सीटों पर पहले भी सपा की हार हुई है और भाजपा उम्मीदवारों को जीत मिली है। उन्होंने कहा कि केंद्र और यूपी की सरकारों के जनहितकारी कार्यों के कारण जनता में उनके प्रति विश्वास बढ़ा है और इसी का परिणाम हुआ है कि आज इन दोनों सीटों पर भी भाजपा को जीत मिली है।