यूपी चुनाव 2022: पंजाब के बाद अब यूपी चुनाव में आतंक के मुद्दे की एंट्री, क्या बदलेगा चुनावी गणित?


सार

कल यानी 20 फरवरी को पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्यों में मतदान होने हैं। इस बीच, पंजाब से शुरू हुआ आतंकवाद का मुद्दा अब यूपी चुनाव में भी शामिल हो गया है। 

ख़बर सुनें

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल पर खालिस्तानी आतंकियों के साथ संबंध रखने के आरोप लगने से देश में खलबली बची हुई थी, इस बीच उत्तर प्रदेश चुनाव में भी आतंक के मुद्दे की एंट्री हो गई। यहां समाजवादी पार्टी निशाने पर है। 

भाजपा का आरोप हैं कि अहमदाबाद ब्लास्ट मामले में जिन 38 दोषियों को फांसी की सजा दी गई है, उनमें से एक के परिवार का संबंध समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से रहा है। भाजपा पूरे जोरशोर से इस मुद्दे को उठा रही है। सपा के पुराने फैसलों की भी दुहाई दी जा रही है। तीसरे चरण के चुनाव से ठीक पहले आतंक के मुद्दे की एंट्री होना सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन चुका है। चुनावी पंडितों का मानना है कि इससे चुनाव का समीकरण बदल भी सकता है। जानिए कैसे…? 
शुक्रवार को गुजरात की एक विशेष अदालत ने अहमदाबाद में 2008 में हुए बम धमाकों के दोषियों को सजा सुनाई। 13 साल तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस सीरियल बम ब्लास्ट के 38 दोषियों को सजा-ए-मौत की सजा दी। 11 अन्य दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इन 49 लोगों को पहले ही दोषी करार दिया गया था। 

मामला 26 जुलाई 2008 का था। तब 70 मिनट की अवधि में हुए 21 बम धमाकों ने अहमदाबाद को हिला कर रख दिया था। इन हमलों में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक घायल हुए थे। पुलिस ने दावा किया था कि आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े लोगों ने साल 2002 में गुजरात दंगों (गोधरा कांड) का बदला लेने के लिए इन हमलों को अंजाम दिया था। 

भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि इस मामले में जिन 38 आतंकवादियों को फांसी की सजा सुनाई गई है, उनमें से एक के पिता के संबंध समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से हैं। वह आतंकवादी खुद समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करता था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के लगभग सभी बड़े नेता इसको लेकर समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे हैं। 
 
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा, ‘समाजवादी पार्टी के रिश्ते आतंकवादियों के साथ हैं। अखिलेश यादव की सोच ‘मुंह में राम, बगल में आतंकवादी’ वाली है। भारत की ये पहली पार्टी है जिसने 2012 में अपने घोषणा पत्र में कहा था कि अगर उनकी सरकार आती है तो वह मुस्लिम युवाओं पर लगे आतंकवाद के आरोपों को हटा देंगे और उन्हें रिहा कर देंगे। सरकार बनने के बाद इन्होंने अयोध्या, काशी में आतंकी हमला करने वाले आतंकवादियों के ऊपर से सारे मुकदमे वापस लेने की नाकाम कोशिश भी की थी।  लखनऊ, रामपुर समेत अन्य जिलों में हुए आतंकी हमलों के आरोपियों को भी इन्होंने ही बचाया था। अहमदाबाद ब्लास्ट मामले में फांसी की सजा पाने वाले आतंकवादी के साथ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के रिश्ते हैं। अगर ये फिर से सत्ता में आते हैं तो ये आतंकवादियों का ही साथ देंगे।’
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोहम्मद सैफ का जिक्र किया। मोहम्मद सैफ उन 38 आतंकवादियों में से एक है, जिसे गुजरात की स्पेशल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। अनुराग ठाकुर ने सैफ के पिता शादाब अहमद और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की एक फोटो भी जारी की। इसमें दोनों साथ दिखाई दे रहे हैं। बताया जाता है कि शादाब आजमगढ़ का रहने वाला है। 

आतंकवाद की एंट्री से चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय सिंह कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में भाजपा कानून व्यवस्था के मुद्दे को जोरशोर से उठा रही है। उसका कहना है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में अपराध पर लगाम लगी है। अपराधी और गुंडे बदमाश या तो प्रदेश छोड़ चुके हैं या फिर जेल में बंद हैं। वहीं, दूसरी ओर समाजवादी पार्टी पर गुंडागर्दी और अपराध को बढ़ावा देने का आरोप हमेशा लगता रहा है। इसी से बचने की कोशिश में अखिलेश अपनी रैलियों में कह रहे हैं कि जिन्हें कानून का पालन नहीं करना है वो सपा को वोट नहीं दें।

विस्तार

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल पर खालिस्तानी आतंकियों के साथ संबंध रखने के आरोप लगने से देश में खलबली बची हुई थी, इस बीच उत्तर प्रदेश चुनाव में भी आतंक के मुद्दे की एंट्री हो गई। यहां समाजवादी पार्टी निशाने पर है। 

भाजपा का आरोप हैं कि अहमदाबाद ब्लास्ट मामले में जिन 38 दोषियों को फांसी की सजा दी गई है, उनमें से एक के परिवार का संबंध समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से रहा है। भाजपा पूरे जोरशोर से इस मुद्दे को उठा रही है। सपा के पुराने फैसलों की भी दुहाई दी जा रही है। तीसरे चरण के चुनाव से ठीक पहले आतंक के मुद्दे की एंट्री होना सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन चुका है। चुनावी पंडितों का मानना है कि इससे चुनाव का समीकरण बदल भी सकता है। जानिए कैसे…? 



Source link

Enable Notifications OK No thanks