UP Elections 2022: दल-दल घूमें, जहां टिकट मिला वहीं के हो लिए, हर पार्टी के प्रत्याशियों की एक अलग कहानी


सार

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा हर चुनाव में होता है। पांच साल तक पार्टी के लिए काम करने वाले जमीनी दावेदारों को ऐसी दशा में महज सहानुभूति ही मिलती है।
 

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भारतीय जनता पार्टी हो या समाजवादी पार्टी। बहुजन समाज पार्टी हो या कांग्रेस। सभी पार्टियों ने ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दिया है जो सुबह किसी पार्टी में थे, दोपहर को किसी दल में चले गए, टिकट को लेकर दाल नहीं गली तो शाम को किसी और दल में पहुंचकर टिकट ले आए और चुनावी मैदान में उतर गए। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ऐसे एक नहीं कई नेताओं की कहानियां हैं जो सुबह कुछ थे शाम को कुछ और अगले दिन कुछ हो गए। 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा हर चुनाव में होता है। पांच साल तक पार्टी के लिए काम करने वाले जमीनी दावेदारों को ऐसी दशा में महज सहानुभूति ही मिलती है।

भाजपा ने पूर्व अफसरों पर भी लगाया दांव
भारतीय जनता पार्टी ने 2017 के चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता हासिल की थी। लेकिन इस बार 2022 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को प्रत्याशी चुनने पड़े तो पार्टी ने प्रशानिक अधिकारियों से लेकर दूसरे दलों के बड़े नेताओं को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। पार्टी ने ईडी के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह और कानपुर के पुलिस कमिश्नर आईपीएस असीम अरुण को जहां रातों-रात टिकट देकर चुनावी मैदान में खड़ा कर दिया। ईडी के राजेश्वर सिंह तो 31 जनवरी को वीआरएस लेते हैं और 1 फरवरी को सीधे पार्टी कार्यालय जाकर भाजपा में शामिल होते हैं और टिकट लेकर सीधे चुनावी मैदान में पहुंच जाते हैं।

समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद सुशीला सरोज के दामाद और समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक मनीष रावत को जब सपा ने टिकट नहीं दिया तो वह फूट-फूट कर रोए और बाद में भाजपा की सदस्यता ले ली। भाजपा ने मनीष रावत को सिधौली से टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। ऐसे ही आगरा में सपा के पूर्व विधायक धर्मराज जनवरी के दूसरे सप्ताह में भारतीय जनता पार्टी में शामिल होते हैं और दो दिन बाद उनका टिकट फाइनल हो जाता है। समाजवादी पार्टी के विधायक सुभाष राय का पार्टी ने टिकट काट दिया तो वह भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद पार्टी ने उनको विधानसभा का टिकट देकर मैदान में उतार दिया। 

ऐसा हाल सिर्फ भारतीय जनता पार्टी का ही नहीं है। समाजवादी पार्टी ने भी इस बार दूसरे दलों से आने वालों को टिकट बांटे हैं। उत्तर प्रदेश में एक जिला है अंबेडकर नगर। यहां पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। यहां की चार विधानसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी से आए प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है। इसमें राकेश पांडे, त्रिभुवन दत्त, लालजी वर्मा और रामअचल राजभर जैसे नेता शामिल हैं। इसी तरीके से समाजवादी पार्टी में स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी, दारा सिंह चौहान, रोशन लाल वर्मा, बृजेश प्रजापति, भगवती सागर, विनय शंकर तिवारी और अमरनाथ मौर्या जैसे नाम शामिल हैं, जो चुनाव से पहले किसी और दाल में थे, मौका मिला तो समाजवादी पार्टी में आए और टिकट लेकर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। सिर्फ यही नाम नहीं बल्कि बसपा छोड़कर सपा में आई माधुरी वर्मा, असलम राईनी, हर गोविंद भार्गव भी पार्टी बदल कर आए और अब समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं।

कांग्रेस के नोमान मसूद कांग्रेस से इस कदर नाराज हुए कि वो राष्ट्रीय लोक दल में चले गए। मसूद को उम्मीद थी कि वहां टिकट मिलेगा और वह चुनावी समर में उतरेंगे, लेकिन मंशा पर पानी फिर गया। इस पर वह बसपा में चले गए। पार्टी ने उनको टिकट दे दिया। अब वह हाथी की जय-जयकार करते हुए चुनावी समर में हैं। 

अवस्थी राजनीतिक पर्यटन कर भाजपा में लौटे
इसी तरीके से लखीमपुर खीरी में भारतीय जनता पार्टी के धौराहरा से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी को अंदाजा था कि इस बार पार्टी उनको टिकट नहीं देगी। इसलिए वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। अवस्थी को अनुमान था कि यहां सपा टिकट तो दे देगी लेकिन मामला उल्टा पड़ गया। समाजवादी पार्टी ने अवस्थी को टिकट नहीं दिया। नतीजतन भाजपा से सपा में जाने की प्रक्रिया को अवस्थी राजनीतिक पर्यटन बता कर वापस भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। बाला प्रसाद अवस्थी इससे पहले बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं। 

अली कांग्रेस से सपाई हुई लेकिन फिर कांग्रेस में आ गए
इसी तरीके से कांग्रेस के प्रत्याशी युसूफ अली टिकट न मिलने से नाराज समाजवादी पार्टी के झंडे के नीचे आ गए। युसूफ अली को उम्मीद थी कि सपा उनको टिकट देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। युसूफ अली फिर कांग्रेस में आ गए।

बहुजन समाज पार्टी ने भी बाहर से आने वाले प्रत्याशियों की रोक टोक के लिए कोई बैरियर नहीं लगाया। पार्टी दे दो बाहर से आने वाले प्रत्याशियों के लिए टिकट तक बदल दिए। फिरोजाबाद से जहां शाजिया हसन धामपुर से मूलचंद चौहान और कुंदरकी से मोहम्मद रिजवान समेत कई नाम बहुजन समाज पार्टी की लिस्ट में शामिल हैं। 

सपा छोड़ कांग्रेस में आए रावत, पा गए टिकट
समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक लखनऊ के मलिहाबाद इलाके के पूर्व विधायक इंदल सिंह रावत को जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। रावत की आस्था कांग्रेस में जाग गई। पार्टी ने कांग्रेस के प्रति जागी उनकी आस्था का सम्मान करते हुए मलिहाबाद से टिकट दे दिया। कुछ दिनों पहले तक समाजवादी पार्टी का झंडा बुलंद करने वाले इंदल सिंह रावत अब कांग्रेस की नीतियों का गुणगान करते हुए चुनावी मैदान में हैं। 
पटेल ने पकड़ी अपना दल की राह
समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद नागेंद्र पटेल ने 3 फरवरी की सुबह अपना दल की सदस्यता ले ली। पार्टी ने उसी दिन शाम को पटेल को चायल से प्रत्याशी बना दिया। 

राजनैतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि दलबदल करने वालों को टिकट मिलने का सिलसिला कोई नया नहीं है। पिछले विधानसभा और लोकसभा के चुनावों पर अगर आप नजर डालेंगे तो ऐसे कई प्रत्याशी मिल जाएंगे, जो ऐन मौके पर दल बदल कर चुनाव लड़ने आ जाते हैं। कहते हैं पार्टियों के लिहाज से यह प्रक्रिया ठीक हो सकती है, क्योंकि उनको मैच जिताऊ कैंडिडेट ही चाहिए होता है। लेकिन शुक्ला मानते हैं कि ऐसे माहौल में पांच साल तक एक ही पार्टी में काम करने वाला कोई मजबूत दावेदार निश्चित तौर पर टिकट नहीं पा पाता है और वह फिर से पार्टी में आस्था जताते हुए आगे काम करता रहता है। अलग-अलग दलों से आकर टिकट पाने वाले प्रत्याशियों के बारे में सभी दलों के नेताओं का कहना है कि उनको जिताऊ कैंडिडेट चाहिए। सरकार बनने पर ना सिर्फ कार्यकर्ताओं का सम्मान बढ़ता है बल्कि उनका समायोजन भी किया जाता है। पार्टी के प्रवक्ताओं का कहना है कि ऐसा नहीं है कि सारे प्रत्याशी बाहरी हैं।

विस्तार

भारतीय जनता पार्टी हो या समाजवादी पार्टी। बहुजन समाज पार्टी हो या कांग्रेस। सभी पार्टियों ने ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दिया है जो सुबह किसी पार्टी में थे, दोपहर को किसी दल में चले गए, टिकट को लेकर दाल नहीं गली तो शाम को किसी और दल में पहुंचकर टिकट ले आए और चुनावी मैदान में उतर गए। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ऐसे एक नहीं कई नेताओं की कहानियां हैं जो सुबह कुछ थे शाम को कुछ और अगले दिन कुछ हो गए। 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा हर चुनाव में होता है। पांच साल तक पार्टी के लिए काम करने वाले जमीनी दावेदारों को ऐसी दशा में महज सहानुभूति ही मिलती है।

भाजपा ने पूर्व अफसरों पर भी लगाया दांव

भारतीय जनता पार्टी ने 2017 के चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता हासिल की थी। लेकिन इस बार 2022 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को प्रत्याशी चुनने पड़े तो पार्टी ने प्रशानिक अधिकारियों से लेकर दूसरे दलों के बड़े नेताओं को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। पार्टी ने ईडी के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह और कानपुर के पुलिस कमिश्नर आईपीएस असीम अरुण को जहां रातों-रात टिकट देकर चुनावी मैदान में खड़ा कर दिया। ईडी के राजेश्वर सिंह तो 31 जनवरी को वीआरएस लेते हैं और 1 फरवरी को सीधे पार्टी कार्यालय जाकर भाजपा में शामिल होते हैं और टिकट लेकर सीधे चुनावी मैदान में पहुंच जाते हैं।

समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद सुशीला सरोज के दामाद और समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक मनीष रावत को जब सपा ने टिकट नहीं दिया तो वह फूट-फूट कर रोए और बाद में भाजपा की सदस्यता ले ली। भाजपा ने मनीष रावत को सिधौली से टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। ऐसे ही आगरा में सपा के पूर्व विधायक धर्मराज जनवरी के दूसरे सप्ताह में भारतीय जनता पार्टी में शामिल होते हैं और दो दिन बाद उनका टिकट फाइनल हो जाता है। समाजवादी पार्टी के विधायक सुभाष राय का पार्टी ने टिकट काट दिया तो वह भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद पार्टी ने उनको विधानसभा का टिकट देकर मैदान में उतार दिया। 



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