देहरादून. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव ( Uttarakhand Elections 2022) के लिए सोमवार यानी 14 फरवरी को वोटिंग होगी. इस बार भाजपा और कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी प्रतिष्ठा दांव है. हालांकि कांग्रेस पिछले साल जुलाई में उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने के केवल छह महीने बाद पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) के सामने सत्ता में वापसी के लिए ‘करो या मरो’ का युद्ध लड़ रही है. जबकि धामी के सामने कांग्रेस की अगुवाई कर रहे हरीश रावत (Harish Rawat) जैसे महारथी के खिलाफ भाजपा का सफल नेतृत्व करते हुए फिर से सरकार बनाने की चुनौती है. राज्य की हर सीट पर अलग लड़ाई के साथ बड़े चेहरों के बीच टक्कर है. सच कहा जाए तो उत्तराखंड में कई सीटों पर महामुकाबला देखने को मिल रहा है.
सोमवार को उत्तराखंड के सभी 13 जिलों की 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा. भाजपा, सपा, आम आदमी पार्टी और बसपा समेत सभी दलों के 632 कैंडिडेट्स मैदान में हैं. वहीं, चुनाव आयोग ने पूरी तैयारियां कर ली हैं. इस दौरान राज्य के हर पोलिंग बूथ पर पुलिस बल का सख्त पहरा रहेगा.
भाजपा ये बड़े चेहरे हैं मैदान में
इस बार भाजपा ने खटीमा विधानसभा से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत उनके सभी कैबिनेट मंत्रियों को टिकट दे दिया है. इनमें श्रीनगर से धनसिंह रावत, नरेंद्र नगर से सुबोध उनियाल, मसूरी से गणेश जोशी, हरिद्वार ग्रामीण से स्वामी यतीश्वरानंद, कालाढूंगी से बंसीधर भगत, गदरपुर से अरविंद पांडे, सोमेश्वर से रेखा आर्य, चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज के नाम प्रमुख हैं. साथ ही भाजपा ने हरिद्वार से प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक , ऋषिकेश से स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल और रायपुर सीट से चर्चित विधायक उमेश काउ को मैदान में उतारा है. यही नहीं, टिहरी सीट पर भाजजा ने कांग्रेस से बागी होकर आने वाले किशोर उपाध्याय को टिकट दिया है, तो नैनीताल सीट पर भी कांग्रेस से आईं सरिता आर्य पार्टी की उम्मीदवार हैं. वहीं, डोईवाला सीट पर बृजमोहन गैरोला, हरक सिंह रावत की सीट रही कोटद्वार से ऋतु खंडूरी और डीडीहाट से बिशन सिंह चुफाल भाजपा के बड़े नाम हैं.
कांग्रेस के मैदान में हैं ये प्रमुख नाम
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार रामगनर की जगह लालकुआं से मैदान में हैं. वहीं, कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गणेश गोदियाल श्रीनगर से, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह चकराता से, हरीश रावत की बेटी और महिला कांग्रेस की महासचिव अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव मैदान में हैं. यही नहीं, भाजपा से कुछ ही समय पहले कांग्रेस में शामिल हुए कुछ चेहरों को भी कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिए हैं. इनमें टिहरी सीट पर सिटिंग विधायक धनसिंह नेगी, लैंसडौन सीट पर भाजपा सरकार में मंत्री रहे हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति, बाजपुर सीट पर यशपाल आर्य, नैनीताल सीट पर उनके बेटे संजीव आर्य, हल्द्वानी से इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित, किच्छा से तिलकराज बेहड़, जागेश्वर से गोविंद सिंह कुंजवाल और सल्ट से रणजीत रावत जैसे कुछ और दिग्गजों पर भी नजर रहेगी.
ये हैं आम आदमी पार्टी के खास चेहरे
वहीं, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल गंगोत्री सीट से चुनाव मैदान में हैं. वहीं, यमुनोत्री से मनोज शाह, कालाढूंगी से मंजू तिवारी, रुद्रपुर से नंदलाल, जागेश्वर से तारादत्त पांडे, भीमताल से सागर पांडे, नैनीताल से भुवन आर्य, गदरपुर से जरनैल सिंह काली और किच्छा से कुलवंत सिंह जैसे नाम शामिल हैं.
बसपा और अन्य में भी कुछ नाम खास
इस बार बसपा ने उत्तराखंड में किसी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. बसपा का जनाधार हरिद्वार जिले में अधिक माना जाता है और जिले की 11 में से 8 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. इनमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिशपाल सिंह ज्वालापुर सीट से प्रत्याशी हैं. इसके अलावा रुद्रपुर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे राजकुमार ठुकराल पर नजरें रहने वाली हैं, जो इस सीट से सिटिंग विधायक रहे हैं और बीजेपी से बागी हो गए हैं.
धामी के सामने बड़ी चुनौतियों
सीएम धामी एक नया चेहरा है और उनका छह महीने का कार्यकाल भी अच्छा माना जा रहा है, लेकिन अनुभवी रावत के सामने भाजपा के लिए 60 से अधिक सीटें जिताने का लक्ष्य हासिल करना धामी के लिए आसान नहीं है. वर्ष 2017 के पिछले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए रावत दो सीटों से चुनाव हारने के बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं. कई ओपिनियन पोल सर्वेक्षणों में भी वह मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा उम्मीदवारों के रूप में सामने आए हैं. रावत को उम्मीद है कि भाजपा सरकार के खिलाफ चल रही सत्ता विरोधी लहर का फायदा कांग्रेस को जरूर मिलेगा, जहां भी वह जा रहे हैं वहां प्रदेश में बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आने के बावजूद भाजपा द्वारा पांच साल में तीन मुख्यमंत्री देने, मंहगाई और बेरोजगारी के बढ़ने की बात उठा रहे हैं.
कांग्रेस को इस बात से मिल रही राहत
प्रदेश में बारी-बारी से दोनों पार्टियों के सत्ता में आने की अब तक की परंपरा को देखते हुए भी इस बार कांग्रेस की उम्मीदों को पंख लगे हुए हैं. दूसरी तरफ भाजपा पिछले पांच साल में विभिन्न क्षेत्रों में शुरू हुई विभिन्न विकास परियोजनाओं के कारण अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है.
डबल इंजन की सरकार पर भरोसा
अपनी सभाओं में भाजपा के नेता जनता से ‘डबल इंजन की सरकार’ को एक और मौका देने को कह कहा है जिससे इन परियोजनाओं को पूरा किया जा सके. धामी ने खुद माना कि उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कम समय मिला, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का संतोष है कि उन्होंने अपने कार्यकाल का एक-एक क्षण प्रदेश की 1.25 करोड लोगों की सेवा में लगाया. धामी ने कहा, ‘केवल छह महीने के छोटे से समय में हमने 550 से अधिक निर्णय लिए और उन पर कार्रवाई की. कांग्रेस की पिछली सरकार ने केवल घोषणाएं कीं जो कभी पूरी नहीं हुईं.’
क्या धामी ने सत्ता विरोधी लहर को थाम लिया?
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि अपनी मेहनत और व्यर्थ की बातें न करने वाले द्रष्टिकोण के जरिये धामी ने काफी हद तक अपने दो पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों द्वारा पैदा की गई सत्ता विरोधी लहर को थाम लिया है. हालांकि चुनावों में अपनी पार्टी को दोबारा सत्तासीन करने के अलावा उनके पास दूसरी चुनौती मुख्यमंत्रियों के स्वयं चुनाव में हार जाने की परंपरा को भी तोड़ना है. राजनीतिक विश्लेषक जेएस रावत ने कहा, ‘उत्तराखंड में मुख्यमंत्री कभी भी नहीं जीतते. वर्ष 2002 में नित्यानंद स्वामी हारे, 2012 में भुवनचंद्र खंडूरी हारे और 2017 में हरीश रावत दोनों सीटों से हार गए.’उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी ने चुनाव ही नहीं लड़ा था.
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