क्‍या है ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी? 9 महीने के इलाज में भी नहीं होती ठीक


नई दिल्‍ली. भारत में हर चौथ व्‍यक्ति ट्यूबरक्‍यूलोसिस यानि टीबी या क्षय रोग से पीड़‍ित है. जानलेवा होने के साथ ही यह एक संक्रामक बीमारी है जो एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति में आसानी से फैलती है. टीबी की बीमारी ब्रेन, गले या लिम्‍फनोड्स में, किडनी या स्‍पाइन में भी हो सकती है लेकिन भारत में फेफड़ो की टीबी के मरीज सबसे ज्‍यादा पाए जाते हैं. टीबी को लेकर जो सबसे बड़ी दिक्‍कत है वह इसके लंबे समय तक चलने वाले इलाज की है, यही वजह है कि लोग बीच में ही दवाएं खाना छोड़ देते हैं जो नुकसानदेह होता है. सामान्‍य तौर पर लोगों को जानकारी है कि टीबी होने पर कम से कम 6 महीने और अधिक से अधिक 9 महीने तक दवाएं खानी पड़ती है लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो यह अवधि बढ़ भी सकती है. अगर कुछ वजहों पर ध्‍यान नहीं दिया गया जो मरीज को दो साल या उससे अधिक समय तक भी दवाएं खानी पड़ सकती हैं.

इंडियन चेस्ट सोसाइटी (Indian Chest Society) के सदस्य और लखनऊ स्थित जाने माने पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. ए के सिंह कहते हैं कि टीबी का इलाज लंबा चलने के पीछे दो वजहें हो सकती हैं. पहली वजह मरीजों की ओर से की जाने वाली लापरवाही और दूसरी वजह रोग की सही पहचान न हो पाना. ज्‍यादातर मामलों में रोग की सही जांच न हो पाने के चलते इलाज का समय बढ़ जाता है. टीबी के बैक्‍टीरिया को मारने के लिए चिकित्‍सक एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज करते हैं लेकिन मरीजों की ओर से लापरवाही करने यानि बीच में दवा खाना छोड़ देने से इलाज को फिर से शुरू करना पड़ता है. ऐसे में इलाज की अवधि 9 महीने से ज्‍यादा हो जाती है.

6-9 महीने चलता है सामान्‍य टीबी का इलाज
डॉ. एके सिंह कहते हैं कि टीबी की बीमारी दो प्रकार की होती है. पहली होती है सामान्‍य टीबी, जिसका इलाज 6 से 9 महीने में पूरा हो जाता है. टीबी के लक्षणों के बाद इस रोग की पहचान होने के तुरंत बाद चिकित्‍सक इलाज के रूप में एंटीबायोटिक्‍स का इस्‍तेमाल करते हैं. यह कोर्स कम से कम 6 महीने और अधिकतम 9 महीने में पूरा हो जाता है. इस अवधि में ट्यूबरक्‍यूलोसिस का बैक्‍टीरिया मर जाता है और मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है. हालांकि इस दौरान मरीज की ओर से दवाओं के सेवन में लापरवाही न किए जाने की सख्‍त हिदायत दी जाती है.

ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी के इलाज में लगता है 9 महीने से ज्‍यादा का समय
डॉ. सिंह कहते हैं कि दूसरे प्रकार की टीबी होती है ड्रग रेजिस्‍टेंट. इसका इलाज 9 महीने से ऊपर और तब तक चलता है जब त‍क कि टीबी के बैक्‍टीरिया की पहचान के साथ ही सही इलाज नहीं मिल जाता है. देखा गया है कि सभी जरूरी जांचों के बावजूद बैक्‍टीरिया को मारने में आ रही बाधा से 2 साल या इससे ज्‍यादा समय तक भी मरीज को दवाओं पर रहना पड़ सकता है. इस टीबी में बैक्‍टीरिया किसी एंटीबायोटिक दवा के प्रति रेसिस्‍टेंट हो चुका होता है और इलाज चलते रहने के बावजूद उसका असर नहीं होता है और मरीज को बीमारी को फायदा नहीं मिलता है. ऐसी स्थिति में डॉक्‍टर को एंटीबायोटिक दवाएं बदलनी पड़ती हैं. डॉ. सिं‍ह कहते हैं कि ड्रग रेसिस्‍टेंट में भी कई मरीजों की टीबी मल्‍टी ड्रग रेसिस्‍टेंट होती है और कई लोगों की एक्‍सट्रीम रेसिस्‍टेंट होती है.

वे बताते हैं कि मल्‍टी ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी होने का मतलब है कि मरीज के शरीर में मौजूद बैक्‍टीरिया कई दवाओं के प्रतिरोधी हो गया है और उस पर इन दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है. वह इन दवाओं के इस्‍तेमाल के दौरान खुद को जिंदा रखने में सक्षम है. ऐसी स्थिति में भी मरीज को इलाज का फायदा नहीं मिलता और दवाएं लंबी चल सकती हैं. इस स्थिति में मरीज की जांच कराई जाती है और पता किया जाता है कि कौन-कौन सी दवाओं के प्रति बैक्‍टीरिया रेसिस्‍टेंट है, जिन दवाओं के प्रति नहीं होता, वे दवाएं शुरू की जाती हैं.

वहीं एक्‍सट्रीम रेसिस्‍टेंट की स्थिति वह होती है जब टीबी का बैक्‍टीरिया सुपर बग बन चुका होता है, यानि इसको खत्‍म करने में कोई भी एंटीबायोटिक दवा सक्षम नहीं होती है. ऐसे मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है.

Tags: Antibiotics, Bacteria, World Tuberculosis Day

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