अभ‍िषेक बच्‍चन ने क्‍यों कहा- हम आराध्‍या को घर पर छुपाकर नहीं रख सकते, उसे ये सब समझना होगा


अभ‍िषेक बच्‍चन (Abhishek Bachchan) पिछली दफा ‘बॉब बिस्‍वास’ में अनूठे अंदाज में नजर आए थे। बड़े पर्दे से कुछ साल की दूरी के बाद उन्‍होंने 2018 में ‘मनमर्जियां’ से वापसी की। इसके बाद चाहे ‘लूडो’ हो या ‘द बिग बुल’ या फिर ‘बॉब बिस्‍वास’ और अब ‘दसवीं’, (Dasvi Movie) वह हर फिल्म में नए-नए अवतार में दर्शकों को चौंका रहे हैं। अभ‍िषेक बच्‍चन की अगली फिल्म ‘दसवीं’ के ट्रेलर ने हर नजर को रुकने पर मजबूर किया। वो इस फिल्‍म में ऐसे किरदार में हैं, जो जेल से ही हाई-स्कूल की परीक्षा पास करने की जिद लिए बैठा है। किरदार के लिहाज से सोने पर सुहागा ये कि उनका ये किरदार भ्रष्ट हरियाणवी मुख्‍यमंत्री भी है। ऐसे में बोली से लेकर चाल-ढाल तक, अभ‍िषेक ने सबकुछ बदलने में खूब मेहनत की है। ‘नवभारत टाइम्‍स’ से खास बातचीत में अभिषेक बच्‍चन ने अपनी प्रफेशनल और पर्सनल लाइफ तक कई अनछुए पहलुओं पर खास बातचीत की है। बात बेटी आराध्‍या बच्‍चन (Aaradhya Bachchan) को लेकर भी हुई, तब पापा अभ‍िषेक ने कहा कि वो फिल्‍मी फैमिली से हैं और बेटी को घर में छुपाकर नहीं रह सकते।

फिल्म ‘मनमर्जियां’ से वापसी करने के बाद से आप ‘लूडो’, ‘द बिग बुल’, ‘बॉब बिस्वास’ और अब ‘दसवीं’ हर फिल्म में एकदम अलग अवतार में नजर आ रहे हैं। ज्यादा कॉन्फिडेंट और निडर कलाकार के तौर पर उभरे हैं। इस बदलाव का राज क्या है?
मैं नहीं बदला हूं। शायद थोड़ा-बहुत बदलाव होगा, लेकिन हमारे जो दर्शक हैं, वो बदल गए हैं। आज के टाइम में एक ऐक्टर ने जो काम पहले किया है, उसे दोहराना शुरू कर दे, तो लोग बहुत जल्द उससे बोर हो जाएंगे। आजकल इतने ऑप्शन हैं सिनेमाघर में, टीवी पर, ओटीटी पर कि आपको हमेशा खुद को री- इंवेंट करना ही पड़ेगा। यह अब अनिवार्य सा हो गया है। आज की जो ऑडियंस है, वह बहुत जल्द आपसे बोर हो जाएगी, अगर आप हर फिल्म में कुछ अलग न दिखाएंगे। बाकी, ये है कि ऐसे-ऐसे किरदार मिल रहे हैं। ये वक्त अच्छा है। आज इतने तरह के किरदारों को दर्शक पसंद कर रहे हैं। बीस साल पहले ऐसा नहीं होता था। अब ऐक्टर्स को स्लॉट नहीं किया जाता है, बल्कि ऑडियंस चाहती है कि आप हर बार कुछ अलग दिखाएं।

आपको लगता है कि ऑडियंस की पसंद में इस बदलाव के पीछे ओटीटी का बड़ा हाथ है?
बिल्कुल, लेकिन सिर्फ ओटीटी का नहीं है। आज लोगों का एक्सपोजर बहुत बढ़ा है। जब मैंने 2000 में करियर शुरू किया था, तो केबल सैटेलाइट आ चुका था। उसके जरिए बाहर के देशों का एंटरटेनमेंट, उनका सिनेमा इंडिया में आना शुरू हो गया। आप अस्सी के दशक में देखें, तो हमारे लिए सिनेमा का मतलब सिर्फ भारतीय सिनेमा था। फिर, केबल टीवी आने के बाद लोगों ने देखना शुरू किया कि अच्छा, बाहर के शहर ऐसे होते हैं। वहां का कल्चर ऐसा होता है, जो पर्दे पर भी दिखने लगा। वहीं, अब ओटीटी की वजह से हम फ्रेंच, ईरानी, जापानी हर तरह की फिल्म एक बटन दबाकर देख सकते हैं, तो ऑडियंस के पास अब पूरी दुनिया के मनोरंजन का विकल्प है, इसलिए वे इंडियन सिनेमा से भी उसी क्वॉलिटी की उम्मीद रखते हैं।


‘दसवीं’ का गंगाराम चौधरी आपके एकदम उलट हैं। उनको समझने, उसमें ढलने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ी?
जब इसकी स्क्रिप्ट मेरे पास आई थी, तो ये किरदार इतनी बारीकी से लिखा हुआ था कि मुझे ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी। आज के समय की ये बहुत अच्छी बात है कि राइटिंग पर बहुत ध्यान और जोर दिया जा रहा है, जो दिया जाना चाहिए। पहले तो लोग चल पड़ते थे कि चलो, सब लोग मिल बांटकर पिक्चर बनाते हैं। बाकी, इस करैक्टर का जो चाल-ढाल है, जो लहजा है, उसके लिए हमने डेढ़ से दो महीने तैयारी में लगाए थे। मुझे याद है, जो हमारी डाइलेक्ट कोच थीं, सुनीता जी, जो खुद हरियाणवी हैं, उन्होंने मुझसे कहा था कि हमारे जो मर्द होते हैं, वे बेफिक्र होते हैं। हमेशा ताव में रहते हैं। वे प्यार से बात करें या गुस्सा करें, उनका टोन वैसे ही होगा। उनका एक एटीट्यूड रहता है तो बस वो मिजाज लेकर आना है। जैसे, चौधरी चलेगा भी तो चौड़ा होकर चलेगा। कुछ बोलेगा भी तो कॉन्फिडेंस के साथ। ये कुछ चीजें थीं, बाकी सब तो तुषार (डायरेक्टर) ने इतना अच्छे से लिखा था कि ज्यादा मुश्किल नहीं हुई।


अच्छा, आज अगर आपको उस 23-24 साल के अभिषेक, जो अपना करियर शुरू करने जा रहे हैं, को सलाह देनी हो कि ये करना, ये नहीं करना चाहिए, तो क्या कहना चाहेंगे?
अरे, क्या फायदा इन चीजों के बारे में सोचने का। मैं इन चीजों के बारे में सोचता ही नहीं हूं, क्योंकि वह हो तो नहीं सकता है, तो उसके बारे में सोचकर क्यों अपने आप को टेंशन दें। मेरा मानना है कि हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। सब लोग देखते हैं और मैं झूठ बोलूंगा, अगर मैं कहूं कि मैंने ऐसे कभी नहीं सोचा, लेकिन सोचना नहीं चाहिए। आगे देखो, आगे की सोचो, आगे की प्लानिंग करो।

आपके लिए कई बार कहा गया कि आपको महानायक अमिताभ बच्चन का बेटा होने का फायदा मिला। लेकिन कहीं आपको लगता है कि उस विरासत, उस बच्चन सरनेम की वजह से एक दबाव भी रहा, नुकसान भी हुआ? आप इस विरासत को कैसे देखते हैं?
नहीं, बिल्कुल नहीं। मुझे अपने पिता का बेटा होने पर बहुत बहुत गर्व है। ये विरासत मेरे लिए बहुत ही गर्व की बात है। मैं उनका नाम बहुत ही गर्व और सम्मान के साथ जोड़ता हूं।


आपके घर में तीन और कमाल के ऐक्टर्स हैं, आपके पापा, मम्मी और वाइफ, उनसे आपने सबसे अहम बात क्या सीखी?
उनका प्यार और समर्पण, उन सब चीजों के लिए जो वे करते हैं। सिर्फ प्रफेशनली ही नहीं, पर्सनल जिंदगी में भी उनकी ये खूबियां सीखने वाली हैं।

अपने प्रॉडक्शन हाउस के बैनर तले भी कुछ नया लेकर आ रहे हैं? और ऐश्वर्या के साथ किसी नई फिल्म का कोई प्लान है?
हां, पिछले साल अपने बैनर के तहत हमने एक फिल्म की शूटिंग पूरी की है। उसका पोस्ट प्रॉडक्शन चल रहा है, कुछ महीने में तैयार हो जाएगी, तो आपको दिखाऊंगा। लेकिन ऐश्वर्या के साथ अभी कोई नई फिल्म नहीं है।


आज के पपाराजी कल्चर में स्टार किड्स भी हमेशा कैमरे के फोकस में रहते हैं। हमने देखा है, आराध्या इसे ज्यादा पसंद नहीं करतीं। कभी वो पूछती हैं कि उनकी तस्वीरें क्यों खींची जाती है या वो समझती हैं?
नहीं, वह समझती हैं। उनकी मां ने बहुत ही अच्छे से उन्हें समझाया है तो वह जानती हैं। देखिए आज का समय और समाज ही ऐसा है, जैसे ऐश्वर्या कहती हैं कि आप इससे भाग नहीं सकते। हम उसको (आराध्या को) घर पर छिपाकर तो नहीं रख सकते, तो आपको इसे मान लेना पड़ेगा और आगे बढ़ना पड़ेगा।

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एक पिता के रूप में आप अपनी बेटी को क्या सीख देना चाहेंगे?
यही कि अच्छी इंसान बनो। मेरे माता-पिता ने मुझे ये कहा था कि काम में आप जैसे भी हों, सफल हों या न हों, पर अच्छे इंसान जरूर बनें। ये सबसे जरूरी है। आजकल लोग यह भूलते जा रहे हैं। मेरे दादा जी ने एक कविता लिखी थी, ‘जीवन की आपाधापी में’, अभी हम अपने काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि भइया, ये अचीव करना है, वो करना है कि हम ये भूल जाते हैं कि अंत में कोई याद नहीं रखने वाला है कि आपने कितने पैसे कमाए थे, कितने मशहूर थे। वे यही याद रखेंगे कि आप अच्छे इंसान थे या नहीं। इस पर हमने ध्यान देना बंद कर दिया है कि आप इंसान कैसे हैं। जबकि, जब ये सब खत्म हो जाएगा ना और जब आप ऊपर जाएंगे, तो वहां आपसे ये नहीं पूछने वाले कि बैंक बैलेंस कितना है आपका, यही पूछा जाएगा आपने कर्म क्या किए हैं।

‘दसवीं’ एक पॉलिटिकल कॉमिडी है और आपकी मां और पापा दोनों राजनीति से जुड़े रहे हैं, आपका इस ओर कितना रुझान है?
बिल्कुल भी नहीं। मुझे पॉलिटिक्स समझ में ही नहीं आता। बहुत मुश्किल से ऐक्टिंग समझ रहा हूं मैं, राजनीति तो बहुत दूर की बात है, (हंसते हैं)।



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