नई दिल्ली. चीनी सामान (Chinese Products) के बारे में अक्सर कहा जाता है कि यह ‘यूज एंड थ्रो’ है, लेकिन चीन का कर्ज प्रेमचंद के जमींदारों से भी बड़ा ज़ुल्म है. इस कर्ज के मकड़जाल में कई कई देश घिर कर अब अपना सिर पीट रहे हैं. इनमें पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, यूएई और सिंगापुर जैसे देश भी शामिल हैं. 100 देशों को ‘बेल्ट एंड रोड’ योजना से जोड़ने का सपना सजाने वाले चीन ने कई देशों की नींद उड़ा दी है. अमेरिका के डॉलर डिप्लोमेसी जहां आर्थिक रूप से कमजोर देशों को अपने पक्ष में करने की थी, वहीं चीन का कर्ज़ अपने दोस्तों को भी भिखारी बनाकर छोड़ता है. इसका सबसे ताजा उदाहरण श्रीलंका है.
श्रीलंका बीते दो दशक से चीन से आर्थिक मदद ले रहा था. हालांकि, श्रीलंका सरकार को लगातार विशेषज्ञों और विरोधियों ने चेतावनी भी दी थी, लेकिन अब हालत यह है कि श्रीलंका चीन के कर्ज में इस कदर डूबा है की उसकी सड़कों पर आंदोलन हो रहे हैं. रोजमर्रा की चीजें दुकानों से गायब हैं. डीजल की बिक्री बंद है. पेट्रोल की कीमतें आसमान से भी ऊपर पहुंच चुकी है. देश भर में 15 -15 घंटे बिजली की कटौती की जा रही है. किरासन तेल के लिए हजारों लोग कतार में खड़े हैं.
भीषण आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका में ‘राजपक्षा सरकार’ के खिलाफ प्रदर्शन भी होने लगे हैं. (AP)
चीनी कर्ज का महाजंजाल
2009 में तमिल अलगाववादियों के साथ संघर्ष खत्म होने के बाद श्रीलंका ने अपने विकास के लिए चीनी कर्ज़ का सहारा लिया. LTTE से संघर्ष के दौरान श्रीलंका भले ही आर्थिक तौर पर बच गया हो उसके बाद चीन ने उसे अपने चंगुल में फंसा लिया. श्रीलंका को अपना हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए 2017 में चीन को सौंपना पड़ा, क्योंकि वह चीनी कर्ज नहीं उतार पाया.
श्रीलंका पर चीन का कितना कर्ज?
श्रीलंका के ऊपर फिलहाल 45 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज हो गया है. यहां कोलंबो से गॉल की तरफ जाने वाली चीनी सड़क भले ही मखमली चादर में लिपटी हो, लेकिन वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इस देश का विदेशी कर्ज साल 2019 में जीडीपी का 70 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि 2010 में यह केवल 39% था. श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से घटकर 1 अरब डॉलर का रह गया है. श्रीलंका के ऊपर 5 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज़ है, जिसमें अकेले चीन का हिस्सा करीब 20 % है.
विपक्ष ने देश में भोजन, ईंधन और दवाओं की बिगड़ती कमी पर उनके इस्तीफे की मांग कर दी है. (AP)
चीन के चक्कर में कौन-कौन देश भिखारी बनने के कगार पर है
चीन ने करीब 45 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज बांट रखा है. यह कर्ज उन देशों को दिया गया है जहां का केंद्रीय ढांचा कमजोर है और सरकार इनके इस षड्यंत्र को नहीं समझ पाई. आर्थिक मामलों के जानकार हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं, श्रीलंका के अलावा पाकिस्तान भारत का ऐसा पड़ोसी देश है जो चीन के चक्कर में भिखारी बन चुका है. आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के ऊपर 20 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, जिसमें करीब 4 अरब डॉलर चीन का दिया हुआ है. पाकिस्तान को लाहौर ऑरेंड लाइन के लिए चीन को 56 मिलियन डॉलर चुकाने हैं, इनमें 45 मिलियन डॉलर है इसी साल के अंत तक देने हैं. इस कर्ज के बोझ तले पाकिस्तान बुरी तरह से दब चुका है, वहां की सत्ता हिल चुकी है. लोग हाहाकार कर रहे हैं.
चीन कैसे जाल में फंसाता है?
बीते नवंबर में ही खबर आई थी कि युगांडा के एकमात्र एयरपोर्ट कंपाला के एन्टेबे एयरपोर्ट को चीन ने अपने कब्जे में ले लिया है. युगांडा ने 2015 में 2% के ब्याज दर पर चीन से करीब 200 मिलियन डॉलर कर्ज लिया था. इस कर्ज की शर्त ऐसी थी कि उसे बदलवाने के लिए युगांडा के प्रतिनिधि मंडल ने कई बार चीन का दौरा किया फिर भी चीन नहीं माना.
श्रीलंका में भोजन के लिए लाइन में लगे लोग. फोटोः AFP
लाओस को क्यों अपना पावर ग्रीड चीन को बेचना पड़ा?
2 साल पहले ही चीन के कर्ज को चुकाने के लिए लाओस को अपना एक पावर ग्रिड चीन को बेचना पड़ा. चीन ने एक रेल नेटवर्क बनाकर लाओस को फंसाया था. चीन की बेल्ट एंड रोड पॉलिसी दरअसल कोई चैरिटी नहीं है. वह कमजोर देशों को विकास का सपना दिखाकर अपने षड्यंत्र में फंसाता है.
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श्रीलंका को चीन ने कोलंबो के पास हॉन्गकॉन्ग की तरह 1 पोर्ट सिटी बनाकर देने का सपना दिखाया है. चीन का दावा है कि अगले 25 साल में पोर्ट सिटी बंद कर तैयार हो जाएगी, जहां हजारों फ्लाइट्स इंडस्ट्री और बाकी सुविधाएं होंगी. लेकिन, श्रीलंका को जो झटका इस बार लगा है उसे अब समझ में आने लगा है उसका असली दोस्त भारत ही है और बाकी सब षड्यंत्र.
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