क्या ओमिक्रॉन के लिए वाकई अलग से वैक्सीन बनाने की जरूरत पड़ेगी? जानिए एक्सपर्ट के जवाब


नई दिल्ली. देश-दुनिया में कोरोना (Corona) का कहर अब भी जारी है. अब भी देश में रोजाना दो लाख के करीब संक्रमण (infection) के नए मामले आ रहे हैं. कोरोना को आए दो साल से ज्यादा का समय हो गया है और जैसे ही इसकी रफ्तार धीमी पड़ती है कोई न कोई नया वेरिएंट आकर पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लेता है. फिलहाल ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron variant) से दुनिया परेशान है. ओमिक्रॉन में संक्रमण की रफ्तार अब तक के सभी वेरिएंट से ज्यादा है और चिंता की बात यह है कि वर्तमान वैक्सीन (Vaccine) का असर इस पर बिल्कुल नहीं हो रहा है. ऐसे में विशेषज्ञों में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि क्या ओमिक्रॉन वेरिएंट के लिए अलग से वैक्सीन बनाने की जरूरत है. हालांकि कुछ कंपनियां ओमिक्रॉन को ध्यान में रखते हुए नई वैक्सीन बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है.

इस मुद्दे को लेकर हाल में नेचर (Nature) पत्रिका ने दुनिया भर के विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और हेल्थ प्रोफेशनलों से बात की है. इस बातचीत में इन विशेषज्ञों की राय इतनी अलग है कि इससे किसी नतीजे पर पहुंचा नहीं जा सकता है. ज्यादातर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है. विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के मुताबिक अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि विश्व के वैज्ञानिक समुदाय को ओमिक्रॉन वेरिएंट को लक्ष्य में रखकर नई वैक्सीन बनाने के लिए अत्यधिक धन और समय की आवश्यकता है या नहीं.

30 से ज्यादा म्यूटेशन
एक्सपर्ट का कहना है कि हो सकता है कि जब तक ओमिक्रॉन से मुकाबले के लिए वैक्सीन आए तब तक ओमिकॉन का संक्रमण पूरी तरह से ढलान पर हो या इसके बाद आने वाला वेरिएंट अब तक से पूरी तरह भिन्न हो. इसलिए फिलहाल इस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है कि ओमिक्रॉन के लिए वैक्सीन बनाने की आवश्यकता है या नहीं. SARS-CoV-2 की सबसे पहले पहचान चीन के वुहान में हुई. तब से लेकर अब तक इसके कई स्ट्रेन आ चुके हैं. प्रारंभिक स्ट्रेन से अलग लगभग 30 से ज्यादा इसके म्यूटेशन आ चुके हैं. ओमिक्रॉन का जैविक रसायन अपने मूल कोरोना वेरिएंट के रसायन से बहुत भिन्न है.

वैक्सीन का असर चिरस्थायी नहीं
ओमिक्रॉन के जैव विज्ञान में बदलाव को देखते हुए शोधकर्ताओं का मानना है कि नया वेरिएंट भी आ सरका है जो दुनिया के कई देशों में ज्यादा प्रभावी हो सकता है. वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर भी चिंता है वैक्सीन के बूस्टर डोज का प्रभाव हमेशा के लिए रहेगा या नहीं. फिलहाल यह कहा जा सकता है कि किसी भी बूस्टर डोज का प्रभाव चिरस्थायी नहीं है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि ब्रिटेन की हेल्थ एजेंसी कहती है कि वैक्सीन की तीसरी खुराक कोरोना होने पर अस्पताल जाने की आशंका को 92 प्रतिशत कम करती है जबकि अमेरिकी हेल्थ एजेंसियां इसे 90 प्रतिशत तक इसे प्रभावी बता रही है. दूसरी तरफ ब्रिटेन में हुए अक अध्ययन में पाया गया कि तीसरी खुराक के 10 सप्ताह बाद अस्पताल जाने की आशंका 92 प्रतिशत से घटकर 83 प्रतिशत तक हो जाती है. इसका मतलब यह है कि वैक्सीन की प्रभावकारिता भी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकती है.

Tags: Corona vaccine, Corona virus cases, COVID 19

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