World Environment Day: शिमला में नए पौधों को नहीं बढ़ने दे रहे देवदार के पुराने पेड़, जानें पूरा मामला


ख़बर सुनें

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में शहर से सटे जंगलों में नए पौधे बढ़ने की दर लगभग थम गई है। इनका विकास किसी बीमारी से नहीं, बल्कि इन जंगलों के पुराने देवदार के पेड़ों के कारण रुक गया है। देवदार का पौधा हर साल 10 से 12 सेंटीमीटर तक बढ़ता है, लेकिन शहर के कई जंगलों में यह बढ़ोतरी महज एक से दो सेंटीमीटर तक सिमट गई है। वन विभाग के अनुसार शिमला से सटे जंगलों में हजारों पेड़ काफी पुराने हो गए हैं। इनमें कई पेड़ों की आयु 100 साल से भी ज्यादा है। घने जंगल में कई जगह इनकी टहनियों का फैलाव इतना ज्यादा है कि इनके नीचे उगने या लगाए जाने वाले पौधे बढ़ नहीं पा रहे हैं। बड़े पेड़ों के कारण इन्हें कभी धूप नसीब नहीं होती। हवा और पानी की भी कमी हो जाती है।

ऐसे में विकास दर प्रभावित हो रही है। देवदार के एक पेड़ की औसतन आयु 120 साल होती है। हालांकि, शिमला शहर में ही कई जगह ऐसे पेड़ भी हैं, जो 160 साल पुराने हैं। ब्रॉकहॉस्ट सड़क के पास कई हरे पेड़ 160 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। जाखू में भी कई पेड़ 120 साल पुराने हैं। वन विभाग शिमला की डीएफओ अनिता भारद्वाज ने बताया कि पुराने बड़े देवदार के पेड़ों के कारण इनके नीचे नए पौधों की विकास दर कम रह रही है। जो भी खाली वन भूमि बची है, विभाग वहां हर साल नए पौधे लगा रहा है। इस साल भी लोगों के सहयोग से बरसात में नए पौधे रोपे जाएंगे।

चिंताजनक : शहर में रोप रहे 400, कट रहे 800 पेड़
शिमला शहर में जंगलों का क्षेत्र सिमटने लगा है। शहर से सटे जंगलों में पौधे लगाने की तुलना में पेड़ काटने की दर दोगुना है। आंकड़ों पर नजर डालें तो शिमला शहर वन मंडल में हर साल औसतन 400 नए पौधे रोपे जाते हैं। इनकी संख्या कम इसलिए है, क्योंकि शहर में नए पौधे लगाने के लिए खाली वन भूमि की कमी है। इनमें 60-70 फीसदी पौधे ही जीवित रहते हैं। जंगलों से हर साल औसतन 800 पौधे गायब हो रहे हैं। इनमें 50 फीसदी पेड़ वे हैं, जो घरों पर खतरा बनते हैं। निर्माण कार्य और सड़क चौड़ी करने के नाम पर भी पेड़ कट रहे हैं। बरसात और बर्फ से भी दर्जनों पेड़ गिरते हैं। वन विभाग एक पेड़ कटने के एवज में 30 पेड़ लगाने का शुल्क वसूलता है, लेकिन हर साल लाखों रुपये वसूलने के बावजूद शिमला शहर से सटे जंगल में खाली जमीन की कमी के कारण नए पौधे कम लग पाते हैं।

आंकड़ों की नजर में शिमला के जंगल
– शिमला शहर में 842.78 हेक्टेयर वनभूमि पर हैं देवदार के जंगल
– इस वनभूमि पर देवदार समेत कई प्रजातियों के 2.60 लाख पेड़ हैं
– निजी जमीन पर 38 हजार तो अन्य भूमि पर 32 हजार पेड़ हैं

विस्तार

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में शहर से सटे जंगलों में नए पौधे बढ़ने की दर लगभग थम गई है। इनका विकास किसी बीमारी से नहीं, बल्कि इन जंगलों के पुराने देवदार के पेड़ों के कारण रुक गया है। देवदार का पौधा हर साल 10 से 12 सेंटीमीटर तक बढ़ता है, लेकिन शहर के कई जंगलों में यह बढ़ोतरी महज एक से दो सेंटीमीटर तक सिमट गई है। वन विभाग के अनुसार शिमला से सटे जंगलों में हजारों पेड़ काफी पुराने हो गए हैं। इनमें कई पेड़ों की आयु 100 साल से भी ज्यादा है। घने जंगल में कई जगह इनकी टहनियों का फैलाव इतना ज्यादा है कि इनके नीचे उगने या लगाए जाने वाले पौधे बढ़ नहीं पा रहे हैं। बड़े पेड़ों के कारण इन्हें कभी धूप नसीब नहीं होती। हवा और पानी की भी कमी हो जाती है।

ऐसे में विकास दर प्रभावित हो रही है। देवदार के एक पेड़ की औसतन आयु 120 साल होती है। हालांकि, शिमला शहर में ही कई जगह ऐसे पेड़ भी हैं, जो 160 साल पुराने हैं। ब्रॉकहॉस्ट सड़क के पास कई हरे पेड़ 160 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। जाखू में भी कई पेड़ 120 साल पुराने हैं। वन विभाग शिमला की डीएफओ अनिता भारद्वाज ने बताया कि पुराने बड़े देवदार के पेड़ों के कारण इनके नीचे नए पौधों की विकास दर कम रह रही है। जो भी खाली वन भूमि बची है, विभाग वहां हर साल नए पौधे लगा रहा है। इस साल भी लोगों के सहयोग से बरसात में नए पौधे रोपे जाएंगे।

चिंताजनक : शहर में रोप रहे 400, कट रहे 800 पेड़

शिमला शहर में जंगलों का क्षेत्र सिमटने लगा है। शहर से सटे जंगलों में पौधे लगाने की तुलना में पेड़ काटने की दर दोगुना है। आंकड़ों पर नजर डालें तो शिमला शहर वन मंडल में हर साल औसतन 400 नए पौधे रोपे जाते हैं। इनकी संख्या कम इसलिए है, क्योंकि शहर में नए पौधे लगाने के लिए खाली वन भूमि की कमी है। इनमें 60-70 फीसदी पौधे ही जीवित रहते हैं। जंगलों से हर साल औसतन 800 पौधे गायब हो रहे हैं। इनमें 50 फीसदी पेड़ वे हैं, जो घरों पर खतरा बनते हैं। निर्माण कार्य और सड़क चौड़ी करने के नाम पर भी पेड़ कट रहे हैं। बरसात और बर्फ से भी दर्जनों पेड़ गिरते हैं। वन विभाग एक पेड़ कटने के एवज में 30 पेड़ लगाने का शुल्क वसूलता है, लेकिन हर साल लाखों रुपये वसूलने के बावजूद शिमला शहर से सटे जंगल में खाली जमीन की कमी के कारण नए पौधे कम लग पाते हैं।

आंकड़ों की नजर में शिमला के जंगल

– शिमला शहर में 842.78 हेक्टेयर वनभूमि पर हैं देवदार के जंगल

– इस वनभूमि पर देवदार समेत कई प्रजातियों के 2.60 लाख पेड़ हैं

– निजी जमीन पर 38 हजार तो अन्य भूमि पर 32 हजार पेड़ हैं



Source link

Enable Notifications OK No thanks