आज (25 अप्रैल) ‘वर्ल्ड मलेरिया डे 2022’ (World Malaria Day 2022) है. मच्छर जनित इस रोग के प्रति आज भी लोगों में जागरूकता की कमी है. लोग मच्छरों के काटने को हल्के में लेते हैं, लेकिन मलेरिया के कुछ प्रकार खतरनाक साबित हो सकते हैं. ऐसे में ‘विश्व मलेरिया दिवस’ पर मलेरिया के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है. कई कार्यक्रम, अभियान चलाए जाते हैं. हर साल इस दिवस को सेलिब्रेट करने के लिए एक खास थीम रखी जाती है. इस वर्ष मलेरिया डे की थीम ‘हार्नेस इनोवेशन टू रेड्यूस मलेरिया डिजीज बर्डन एंड सेव लाइव्स’ है.
मलेरिया एनोफेलीज मच्छर के काटने से होता है. मलेरिया में नजर आने वाले लक्षणों को शुरुआत में ही डॉक्टर से दिखा लिया जाए, तो व्यक्ति कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो सकता है. इसका इलाज एलोपैथी के साथ ही आयुर्वेद के जरिए भी किया जाता है, जो मलेरिया के मरीजों को जल्दी स्वस्थ होने में काफी मददगार साबित हो सकता है. आइए जानते हैं ‘वर्ल्ड मलेरिया डे’ के उपलक्ष में नेशनल प्रेसिडेंट, इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (आयुष) और मेडिकल सुपरिटेंडेंट, आयुर्वेदिक पंचकर्मा हॉस्पिटल (प्रशांत विहार, उत्तरी दिल्ली नगर निगम) के डॉ. आर. पी. पाराशर से मलेरिया के कुछ आयुर्वेदिक उपचार और बचाव के उपायों के बारे में…
मलेरिया के आयुर्वेदिक उपचार
- यदि आपको मलेरिया हुआ है, तो इसमें सप्तपर्ण, गिलोय, हरड़, दालचीनी, सौंठ, हल्दी और तुलसी आदि औषधियों का सेवन करना काफी प्रभावी होता है. इन्हें मिलाकर आप काढ़ा बनाएं और दिन में तीन बार मलेरिया से ग्रस्त मरीज को पिला सकते हैं.
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- इसके अलावा, आयुष 64 नामक दवा, जिसका प्रयोग कोरोना के दौरान बड़े पैमाने पर किया गया है. यह भी मलेरिया में लाभकारी है. इसमें मुख्य रूप से 4 दवाएं होती हैं- सप्तपर्ण, कुटकी, लता करंज और किरात तिक्त.
- षडंगपानीय, जो 6 दवाओं का मिश्रण है, वह सभी प्रकार के बुखार में प्रयोग किया जाता है. इससे बुखार की तपन, बेचैनी बार-बार प्यास लगने जैसी शिकायतों के साथ-साथ वायरस के नियंत्रण में भी तुरंत लाभ मिलता है. इसमें मुस्तक, पर्पटक, उशीर, लाल चंदन, सौंठ, उदीच्य नामक 6 दवाओं का प्रयोग किया जाता है.
मलेरिया से बचाव के उपाय
- देश में मलेरिया की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इलाज के साथ-साथ कुछ बचाव के उपायों पर भी खास ध्यान देना बहुत आवश्यक है. इसके लिए कई प्रकार की दवाओं को जलाकर उनका धूपन (fumigation) करते हैं, जिससे वातावरण के कीटाणु नष्ट होते हैं. धूपन के लिए मुख्य रूप से अगर, तगर, लोबान, गुग्गुल आदि दवाओं का प्रयोग किया जाता है.
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- इसके अलावा, मलेरिया के नियंत्रण में सबसे मुख्य भूमिका नीम की सिद्ध हो सकती है. इस बारे में रिसर्च की जरूरत है, जिसकी तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए.
- नीम एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुणों के साथ-साथ एंटीफंगल गुणों से युक्त होता है. नीम की पत्तियों को धूपन के लिए भी में प्रयोग ला सकते हैं. नीम के तेल और नीम के एक्सट्रैक्ट को यदि छिड़काव के तौर पर प्रयोग करें, तो इससे मच्छर तो खत्म होंगे ही, पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
- मलेरिया नियंत्रण में अब तक प्रयोग की जाने वाली जितनी भी इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड दवाइयां हैं, वे मच्छरों को तो खत्म करती हैं, लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं. उनसे भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण होता है, लेकिन नीम से इस तरह का कोई प्रदूषण नहीं होगा.
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