विश्व रेडियो दिवस: खरीदार नहीं बचे तो बेचने वालों ने बदल लिया कारोबार…फिर भी अनमोल निशानी की तरह है रेडियो


सार

एक समय था, जब जिन घरों में रेडियो रहता था, वहां लोग समाचार, गाने, कृषि संबंधित जानकारी सुनने के लिए पहुंच जाते थे। समाचारों पर चर्चा किया करते थे। महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करते थे।

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एक वक्त था, जब रेडियो हमारे जीवन का सबसे अहम हिस्सा हुआ करता था। देश-दुनिया की खबरों के अलावा फिल्मी गीत और संगीत सुनने के लिए लोग इसे हमेशा अपने पास रखते थे, लेकिन पहले टेलीविजन और उसके बाद मोबाइल ने रेडियो के रंग को फीका कर दिया। सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ में तो पुराने मॉडल के रेडियो बेचने वाली लगभग सभी दुकानें बंद हो चुकी हैं। रेडियो ठीक करने वाले भी अब इक्का-दुक्का ही रह गए हैं।

पिछले करीब 40 वर्षों से सेक्टर-17 में रेडियो ठीक करने का काम करने वाले इलेक्ट्रो वॉयस-17 के मालिक कुलवंत सिंह बताते हैं कि जब देश में मनोरंजन के साधन कम थे, तब रेडियो ही लोगों का सहारा था। समय के साथ इसका रंग भले ही फीका पड़ गया है, लेकिन इसका महत्व कम नहीं हुआ है। रेडियो के शौकीन लोगों की संख्या अभी भी काफी है। मांग भी बहुत है। उनके पास सिर्फ चंडीगढ़ से ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से लोग अपने पुराने रेडियो को ठीक कराने आते हैं। हाल ही में मनाली से एक व्यक्ति 25-30 साल पुराना रेडियो ठीक कराने उनके पास आया था। उन्होंने कारण पूछा तो बताया कि ये रेडियो उनके पिता की निशानी है और वह इसे हमेशा अपने पास रखना चाहते हैं। 

कुलवंत सिंह ने बताया कि अभी भी चुनिंदा लोग रेडियो खरीदने के लिए पहुंचते हैं। हालांकि ज्यादातर बुजुर्ग ही होते हैं। युवाओं को इसकी अहमियत का अंदाजा नहीं है। अब ट्रेंड बदल रहा है। लोग रेडियो को सिर्फ सुनने के लिए ही नहीं, बल्कि सजावट के तौर पर या पिता-माता, दादा-दादी की याद में संजो कर रखना चाहते हैं।

चंडीगढ़ में कभी रेडियो के लिए मशहूर थीं ये दुकानें 

  • सेक्टर-23 की बूथ मार्केट में कोने की दुकान ‘बड़े की दुकान’ के नाम से मशहूर थी। लोग दुकान के मालिक को बड़े के नाम से ही जानते थे और वो सिर्फ रेडियो को ठीक करने का काम करते थे, लेकिन बाद उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी।
  • किसी समय सेक्टर-18 का धीमान रेडियो काफी मशहूर हुआ करता था। यहां रेडियो की मरम्मत का काम होता, लेकिन रेडियो सुनने वाले खत्म हुए तो इस दुकान के संचालक को भी अपना काम बंद करना पड़ा।
  • सेक्टर-17 में दीपक रेडियो को हर कोई जानता है। इसके संचालक वर्षों से रेडियो के लिए मशहूर हैं लेकिन समय बदलने के साथ उन्होंने अपने काम को बदल लिया है। इन दिनों वह पेन ड्राइव व म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े काम कर रहे हैं।
  • सेक्टर-17 स्थित मेलोडी ऑवर में आज भी रेडियो मौजूद हैं। हालांकि पुराने रेडियो एक-दो ही हैं। कर्मचारियों ने बताया कि इनके खरीददार भी बहुत कम हैं। 
  • सेक्टर-18 के इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में भी किसी समय ज्यादातर दुकानदार रेडियो और ऑडियो प्लेयर बेचने और उनकी मरम्मत का काम करते थे लेकिन रेडियो की घटती लोकप्रियता की वजह से सभी दुकान मालिकों ने अपना व्यवसाय बदल लिया।

रेडियो को खा गया मोबाइल

एक समय था, जब जिन घरों में रेडियो रहता था, वहां लोग समाचार, गाने, कृषि संबंधित जानकारी सुनने के लिए पहुंच जाते थे। समाचारों पर चर्चा किया करते थे। महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले तो वधू के साथ विदाई में रेडियो भी दिया जाता था, लेकिन आज मनोरंजन के तमाम साधनों के बीच रेडियो की उपयोगिता खत्म सी हो गई है जबकि यह आम जनता और देश के कोने-कोने तक पहुंचने वाला मनोरंजन का सबसे सस्ता माध्यम है। इसे सुनने के लिए न तो कोई कीमत अदा करनी पड़ती है और न ही कोई सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है लेकिन मोबाइल ने रेडियो को खा लिया है। रेडियो अब लोगों के मोबाइल में ही समा गया है।

इसलिए 13 फरवरी को मनाया जाता है रेडियो दिवस

देश में रेडियो का इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है। जब देश में मनोरंजन के साधन बहुत कम थे, तब रेडियो ही लोगों एकमात्र सहारा था। वर्ष 2011 में यूनेस्को ने विश्व स्तर पर रेडियो दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इसके लिए 13 फरवरी का दिन चुना गया, क्योंकि 13 फरवरी 1946 से संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने रेडियो प्रसारण की शुरुआत की थी।

विस्तार

एक वक्त था, जब रेडियो हमारे जीवन का सबसे अहम हिस्सा हुआ करता था। देश-दुनिया की खबरों के अलावा फिल्मी गीत और संगीत सुनने के लिए लोग इसे हमेशा अपने पास रखते थे, लेकिन पहले टेलीविजन और उसके बाद मोबाइल ने रेडियो के रंग को फीका कर दिया। सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ में तो पुराने मॉडल के रेडियो बेचने वाली लगभग सभी दुकानें बंद हो चुकी हैं। रेडियो ठीक करने वाले भी अब इक्का-दुक्का ही रह गए हैं।

पिछले करीब 40 वर्षों से सेक्टर-17 में रेडियो ठीक करने का काम करने वाले इलेक्ट्रो वॉयस-17 के मालिक कुलवंत सिंह बताते हैं कि जब देश में मनोरंजन के साधन कम थे, तब रेडियो ही लोगों का सहारा था। समय के साथ इसका रंग भले ही फीका पड़ गया है, लेकिन इसका महत्व कम नहीं हुआ है। रेडियो के शौकीन लोगों की संख्या अभी भी काफी है। मांग भी बहुत है। उनके पास सिर्फ चंडीगढ़ से ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से लोग अपने पुराने रेडियो को ठीक कराने आते हैं। हाल ही में मनाली से एक व्यक्ति 25-30 साल पुराना रेडियो ठीक कराने उनके पास आया था। उन्होंने कारण पूछा तो बताया कि ये रेडियो उनके पिता की निशानी है और वह इसे हमेशा अपने पास रखना चाहते हैं। 

कुलवंत सिंह ने बताया कि अभी भी चुनिंदा लोग रेडियो खरीदने के लिए पहुंचते हैं। हालांकि ज्यादातर बुजुर्ग ही होते हैं। युवाओं को इसकी अहमियत का अंदाजा नहीं है। अब ट्रेंड बदल रहा है। लोग रेडियो को सिर्फ सुनने के लिए ही नहीं, बल्कि सजावट के तौर पर या पिता-माता, दादा-दादी की याद में संजो कर रखना चाहते हैं।

चंडीगढ़ में कभी रेडियो के लिए मशहूर थीं ये दुकानें 

  • सेक्टर-23 की बूथ मार्केट में कोने की दुकान ‘बड़े की दुकान’ के नाम से मशहूर थी। लोग दुकान के मालिक को बड़े के नाम से ही जानते थे और वो सिर्फ रेडियो को ठीक करने का काम करते थे, लेकिन बाद उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी।
  • किसी समय सेक्टर-18 का धीमान रेडियो काफी मशहूर हुआ करता था। यहां रेडियो की मरम्मत का काम होता, लेकिन रेडियो सुनने वाले खत्म हुए तो इस दुकान के संचालक को भी अपना काम बंद करना पड़ा।
  • सेक्टर-17 में दीपक रेडियो को हर कोई जानता है। इसके संचालक वर्षों से रेडियो के लिए मशहूर हैं लेकिन समय बदलने के साथ उन्होंने अपने काम को बदल लिया है। इन दिनों वह पेन ड्राइव व म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े काम कर रहे हैं।
  • सेक्टर-17 स्थित मेलोडी ऑवर में आज भी रेडियो मौजूद हैं। हालांकि पुराने रेडियो एक-दो ही हैं। कर्मचारियों ने बताया कि इनके खरीददार भी बहुत कम हैं। 
  • सेक्टर-18 के इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में भी किसी समय ज्यादातर दुकानदार रेडियो और ऑडियो प्लेयर बेचने और उनकी मरम्मत का काम करते थे लेकिन रेडियो की घटती लोकप्रियता की वजह से सभी दुकान मालिकों ने अपना व्यवसाय बदल लिया।

रेडियो को खा गया मोबाइल

एक समय था, जब जिन घरों में रेडियो रहता था, वहां लोग समाचार, गाने, कृषि संबंधित जानकारी सुनने के लिए पहुंच जाते थे। समाचारों पर चर्चा किया करते थे। महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले तो वधू के साथ विदाई में रेडियो भी दिया जाता था, लेकिन आज मनोरंजन के तमाम साधनों के बीच रेडियो की उपयोगिता खत्म सी हो गई है जबकि यह आम जनता और देश के कोने-कोने तक पहुंचने वाला मनोरंजन का सबसे सस्ता माध्यम है। इसे सुनने के लिए न तो कोई कीमत अदा करनी पड़ती है और न ही कोई सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है लेकिन मोबाइल ने रेडियो को खा लिया है। रेडियो अब लोगों के मोबाइल में ही समा गया है।

इसलिए 13 फरवरी को मनाया जाता है रेडियो दिवस

देश में रेडियो का इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है। जब देश में मनोरंजन के साधन बहुत कम थे, तब रेडियो ही लोगों एकमात्र सहारा था। वर्ष 2011 में यूनेस्को ने विश्व स्तर पर रेडियो दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इसके लिए 13 फरवरी का दिन चुना गया, क्योंकि 13 फरवरी 1946 से संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने रेडियो प्रसारण की शुरुआत की थी।



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