3 Days Weekend Countries: बेल्जियम से पहले इन देशों में भी लागू हुआ था तीन दिन का वीकेंड, जानें कहां-क्या हुआ?


सार

संयुक्त अरब अमीरात चार दिनों के कार्यदिवस को लागू करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। हालांकि, यह अवधि चार के बजाय साढ़े चार दिन की होगी।

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दुनिया के अलग-अलग देशों में अब हफ्ते में चार दिन काम करने की नीति पर विचार शुरू हो गया है। कुछ देशों ने ट्रायल के तौर पर ‘फोर डे वीक’ कार्य नीति को अपना भी लिया है। इनमें एक नाम बेल्जियम का जुड़ा है, जहां सरकार ने इस नीति को हरी झंडी दे दी है। बेल्जियम की सरकार जल्द ही देश के श्रम कानून में बड़े बदलाव करने वाली है। इतना हीं नहीं, अब कर्मचारियों को यह भी अधिकार होगा की वह अपने काम की तय अवधि खत्म होने के बाद ऑफिस के किसी संदेश को इग्नोर भी कर सकते हैं। बेल्जियम के अलावा भी कई ऐसे देश हैं जिन्होंने कर्मचारियों को राहत देते हुए अपने यहां कार्यदिवस में कटौती की है। अमर उजाला आपको बता रहा है कौन हैं वे देश और कितनी कारगर है हफ्ते में चार दिन काम की नीति…

यूएई नीति को लागू करने वाला इकलौता देश 

संयुक्त अरब अमीरात ऐसा पहला देश है, जहां हफ्ते में पांच दिन से कम काम करने का नियम लागू हुआ है। हालांकि, यह अवधि चार दिन के बजाय साढ़े चार दिन की रखी गई है। यूएई में यह नीति इस साल 1 जनवरी से लागू हो चुकी है। प्रशासन ने कहा था कि कर्मचारियों के काम और व्यक्तिगत जीवन में सामंजस्य बनाने को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया गया। अब देश में सोमवार से गुरुवार तक कार्य का समय सुबह 7.30 से लेकर दोपहर 3.30 तक का है। वहीं, शुक्रवार को कार्य का समय सुबह 7.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक निर्धारित किया गया है।  

इन देशों ने किया ट्रायल-: 

 

2018 में न्यूजीलैंड में अपनाई गई नीति

साल 2018 के मार्च महीने में न्यूजीलैंड की एक ट्रस्ट कंपनी ने अपने कर्मचारियों से हफ्ते में केवल चार दिन काम कराने पर ट्रायल शुरू किया। आठ हफ्ते तक चले इस ट्रायल के अंत में सामने आया कि कंपनी की उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई और कर्मचारियों के तनाव का स्तर भी कम हुआ। ट्रस्ट ने इसके बाद अपने कर्मचारियों को हफ्ते में केवल चार दिन ही काम करने को कहा। 

साल 2019 में माइक्रोसॉफ्ट जापान ने किया ट्रायल

चार दिन के कार्य की नीति पर ट्रायल करने वाले पहले कुछ देशों में जापान भी शामिल है। यहां माइक्रोसॉफ्ट ने साल 2019 में हफ्ते में चार दिन कार्य की नीति का ट्रायल किया था। इसके नतीजों के अनुसार कर्मचारियों की उत्पादकता में करीब 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसके अलावा कंपनी ने बिजली आदि के खर्च में भी कमी दर्ज की थी। ट्रायल के अंत में 92 फीसदी कर्मचारी इस नीति से खुश नजर आए थे। वर्तमान में जापान की पैनासोनिक और फार्मा कंपनी शियानोगी अपने कर्मचारियों को तीन दिन की छुट्टी दे रही है।  

यूके में पायलट प्रोजेक्ट

इसी साल जनवरी में यूनाइटेड किंगडम में 4 दिवसीय कार्य सप्ताह के का ट्रायल शुरु हुआ है। इस ट्रायल में करीब 30 कंपनी और संगठन हिस्सा ले रहे हैं। इस ट्रायल के अंतर्गत आने वाले 6 महीनों तक कंपनियां अपने कर्मचारियों को 3 दिन का साप्ताहिक अवकाश दिया करेंगी। जरूरी बात यह भी है कि ये अवकाश बिना काम के घंटों और वेतन में बदलाव के दिया जाएगा। स्कॉटलैंड की सत्तारूढ़ पार्टी स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने अपने चुनावी अभियान में भी इस बात का वादा किया था। 

स्पेन में भी हुआ ट्रायल 

बीते साल स्पेन में भी हफ्ते में केवल चार दिन के कार्य का ट्रायल किया गया था। इस ट्रायल में देश की कई कंपनियों ने हिस्सा लिया था। इसका कारण कोरोना महामारी के दौरान बढ़ी बेरोजगारी से निजात पाना और कर्मचारियों को राहत देना था।

आइसलैंड में साल 2015 से 2019 के बीच ऐसा ही एक ट्रायल किया गया था। इसमें देश के 2500 कर्मचारियों को बिना वेतन काटे हफ्ते में 3 दिन का अवकाश दिया गया था। परिणाम में सामने आया कि ज्यादातर मामलों में कर्मचारियों की उत्पादकता समान रही या काफी बढ़ गई थी।

भारत में क्या है तैयारी?

चार दिनों तक कार्य की नीति के लिए भारत में भी सुगबुगाहट जारी है। आने वाले समय में यहां भी कर्मचारियों को हफ्ते में तीन दिनों का अवकाश मिल सकता है। हालांकि, 3 दिन के अवकाश के बाद कर्मचारियों के काम के घंटों में बढ़ोतरी की जा सकती है। अनुमान के मुताबिक इस नीति के लागू होने के बाद कार्यावधि को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे तक का किया जा सकता है। खबरों के मुताबिक इसी साल सरकार नए लेबर कोड को लागू कर सकती है। 

क्या हैं 3 दिन अवकाश के फायदे?

विशेषज्ञों के मुताबिक 3 दिन के अवकाश से कई फायदे हो सकते हैं। इस नीति से कर्मचारियों को राहत तो मिलेगी ही बल्कि कंपनी की उत्पादकता में भी बढ़ोतरी देखी जा सकती है। ज्यादा छुट्टी लेकर कर्मचारी नए उत्साह के साथ कार्य करेंगे। इसके अलावा कंपनी के संसाधनों के इस्तेमाल में भी कमी आएगी। कर्मचारी लंबी छुट्टी के साथ अपने परिवार और समाज की ओर भी ज्यादा ध्यान दे पाएंगे। 

रोजगार भी बढ़ेंगे

3 दिन अवकाश की नीति से कंपनियों की उत्पादकता तो बढ़ेगी ही, साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। दुनियाभर में बढ़ रही बेरोजगारी को ध्यान में रखते हुए यह नीति काफी कारगर साबित हो सकती है। इसके अलावा खुश कर्मचारी कंपनियों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकते हैं। कंपनी की ओर से बेहतर सुविधा मिलने पर कर्मचारी कंपनी छोड़ने के बारे में कम सोचेंगे। इससे कंपनियों में कर्मचारियों की कमी, बार-बार भर्ती और नए कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने में लगने वीले समय की भी बचत होगी। 

सिर्फ फायदे ही नहीं, कई नुकसान भी

हमने ऊपर 3 दिन अवकाश के फायदों की बात तो काफी कर ली, लेकिन इसके केवल फायदे हैं ऐसी भी बात नहीं है। 5 या 6 दिन के काम में छुट्टी तो कम है लेकिन काम के घंटे भी 8 ही हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर कर्मचारियों को हफ्ते में 3 दिन का अवकाश दिया जाएगा तो काम के घंटों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। मान लें कि कोई कंपनी अभी अपने कर्मचारी को एक दिन का अवकाश देकर दिन में 8 घंटे कार्य करवा रही है। वहीं, तीन दिन के अवकाश में काम के घंटे 12 हो जानें की संभावना है। ज्यादा घंटे काम के कारण कर्मचारियों की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ सकता है। ऐसे में 3 दिन की छुट्टी से जो उत्पादकता बढ़ेगी वो ज्यादा घंटों के कार्य के कारण आगे जाकर कम भी हो सकती है। अब तक किए गए ट्रायल भी बिना काम के घंटों को बढ़ाए और बिना वेतन में कटौती के किए गए हैं।

कंपनियों के लिए मॉडल अपनाना मुश्किल

कार्यदिवस को चार दिन करने के मॉडल को अपनाना कंपनियों के लिए थोड़ा मु्श्किल हो सकता है। कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट झेल रही कंपनियां ज्यादा भर्ती करने में आनाकानी कर सकती है। ज्यादातर मामलों में सरकार इस नीति को सीधे लागू करने के बजाय इसे कंपनियों और कर्मचारियों की आपसी सहमति पर ही छोड़ेगी। यही कारण है कि विभिन्न देशों में कुछ ऐसी कंपनियां हैं जो 3 दिन अवकाश दे रही है और ज्यादातर नहीं। यहां तक की कई विकसित देशों समेत भारत में भी बड़े स्तर पर ऐसी कंपनियां हैं जो अब भी अपने कर्मचारियों को केवल 1 दिन का ही अवकाश दे पा रही हैं। 

कई देशों में उठ रही है मांग

कर्मचारियों के कार्यदिवस को केवल चार दिन का करने के लिए अब विभिन्न देशों से मांग सामने आने लगी है। कई संगठन इसकी पैरवी कर रहे हैं तो किन्हीं देशों में चुनावी पार्टियां अपने मैनिफेस्टो में श्रम कानूनों में ढ़ील देने का वादा कर रही है। हाल ही में न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डर्न ने भी चार दिन के कार्य का समर्थन किया था। 

क्या है सटीक उपाय?

तीन दिन के अवकाश के अपने कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी। शायद यही कारण है कि ज्यादातर देश इसे कंपनी और कर्मचारी के आपसी तालमेल पर छोड़ना ज्यादा सही समझते हैं। भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो साल 2019 में आई आईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि देश में 19.7 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक बिमारी से ग्रसित है। यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि इनमें बड़ी संख्या किसी न किसी कंपनी के कर्मचारियों की भी होगी। कोरोना महामारी के असर के कारण आज दुनियाभर में बेरोजगारी, काम के घंटो में वृद्धि और लोगों की मानसिक स्थिति में समस्या आना जारी है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि बेल्जियम और यूएई द्वारा तीन दिन का अवकाश देने का यह कदम दुनिया को किस ओर ले जाता है।    

विस्तार

दुनिया के अलग-अलग देशों में अब हफ्ते में चार दिन काम करने की नीति पर विचार शुरू हो गया है। कुछ देशों ने ट्रायल के तौर पर ‘फोर डे वीक’ कार्य नीति को अपना भी लिया है। इनमें एक नाम बेल्जियम का जुड़ा है, जहां सरकार ने इस नीति को हरी झंडी दे दी है। बेल्जियम की सरकार जल्द ही देश के श्रम कानून में बड़े बदलाव करने वाली है। इतना हीं नहीं, अब कर्मचारियों को यह भी अधिकार होगा की वह अपने काम की तय अवधि खत्म होने के बाद ऑफिस के किसी संदेश को इग्नोर भी कर सकते हैं। बेल्जियम के अलावा भी कई ऐसे देश हैं जिन्होंने कर्मचारियों को राहत देते हुए अपने यहां कार्यदिवस में कटौती की है। अमर उजाला आपको बता रहा है कौन हैं वे देश और कितनी कारगर है हफ्ते में चार दिन काम की नीति…



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