आखिर क्यों गिर रहे हैं भारतीय शेयर बाजार? हर निवेशक को जानने चाहिएं ये कारण


नई दिल्ली. आप सोच रहे होंगे कि भारतीय शेयर बाजार पिछले कुछ महीनों से क्यों गिर रहे हैं? सेंसेक्स 2022 में ही 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दिखा चुका है. इसी तरह निफ्टी में भी लगभग इसी समय के दौरान इतनी ही गिरावट आई है. आज, 12 मई, गुरुवार को भी निफ्टी और सेंसेक्स गैपडाउन खुले और फिर और गिर गए. खबर लिखे जाने तक (2:35 बजे तक) सेंसेक्स 1280 और निफ्टी 418 अंकों की गिरावट के साथ ट्रेड कर रहे थे. दरअसल, यह गिरावट केवल भारत के शेयर बाजार ही नहीं है, दुनियाभर के बाजारों में इसी तरह का संकट है.

चूंकि ये संकट दुनियाभर के तमाम बाजारों में है तो इसके लिए किसी एक देश के हालातों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. इसे ग्लोबल संकट कहा जाए तो गलत नहीं. और इसमें कोई एक फैक्टर काम नहीं कर रहा है, बल्कि कई अलग-अलग फैक्टर हैं. तो इस खबर में आपको उन तमाम फैक्टर्स के बारे में बताएंगे, जो फिलहाल बाजार को सिर उठाने नहीं दे रहे.

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रूस-यूक्रेन का संकट
इसी साल 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता था, जोकि रूस को नागवार गुजरा. नाटो ने यूक्रेन को पीछे से सपोर्ट किया, लेकिन खुलकर यूक्रेन की तरफ से मैदान में नहीं उतरा. माना जा रहा था कि 10-15 दिनों में मामला शांत हो जाएगा. लेकिन एक महीना बीता, फिर दो और लगभग 3 महीने पूरे होने को हैं, मगर अभी तक कोई हल नहीं निकला है.

इस संकट के चलते दुनियाभर में महंगाई बढ़ने लगी. क्रूड ऑयल के दाम आसमान छूने लगे. गेहूं के बड़े उत्पादकों में शामिल यूक्रेन इस बार दूसरे देशों को गेहूं नहीं दे पाएगा. ऐसे में महंगाई लगतार बढ़ रही है. महंगाई के चलते दुनियाभर की सरकारें इकॉनमी के लेकर कड़े फैसले लेने को मजबूर हैं, जो सीधा-सीधा बाजारों को प्रभावित कर रहे हैं. रूस-यूक्रेन संकट अगर और लंबा खिंचा तो बाजार में और गिरावट की भी संभावना है.

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अमेरिका की महंगाई दर
जैसा कि आप जानते ही हैं कि भारतीय बाजार अमेरिका शेयर बाजार को काफी फॉलो करते हैं. लेकिन नैस्डैक 30 मार्च 2022 में ही 20 फीसदी से अधिक गिर चुका है. ऐसे में भारतीय बाजारों में भी नकारात्मकता बनी हुई है. दरअसल, अमेरिकी बाजारों के गिरने की मुख्य वजह वहां की महंगाई दर है, जोकि अपने 40 सालों के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है.

ऐसे में अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पास ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के अलावा दूसरा को विकल्प बचा नहीं था. फेड दो बार आधा-आधा फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है. अमेरिका में ब्जाय दरें बढ़ने से भारत सहित उभरते बाजारों में बड़े निवेशकों की दिलचस्पी कम हुई है. विदेशी फंडों को लगातार बाजारों के खींचा जा रहा है.

मनीकंट्रोल की एक खबर के मुताबिक, फॉरेन इनवेस्टर्स पिछले साल से ही भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. अब उन्होंने बिकवाली और बढ़ा दी है. इस साल अब तक फॉरेन फंडों ने इंडियन मार्केट्स में 1,44,565 करोड़ रुपये की बिकवाली की है. सिर्फ मई महीने में वे 17,403 करोड़ रुपये की बिकवाली कर चुके हैं. हालांकि म्यूचुअल फंड्स जैसे घरेलू बड़े निवेशकों ने खरीदारी कर बाजार को संभालने की कोशिश की है.

अब आगे क्या?
रूस-यूक्रेन के संकट का समाधान शायद जल्द नहीं होने वाला. लेकिन अमेरिका में महंगाई में मामूली गिरावट जरूर आई है. लेकिन एक्सपर्ट्स इसे अभी बहुत पॉजिटिव नहीं मानते. मार्च में अमेरिका में महंगाई की दर 8.5 फीसदी थी. बुधवार को अमेरिका में अप्रैल की महंगाई दर का आंकड़ा 8.3 फीसदी आया है, जोकि अनुमान (8.1 फीसदी) से अधिक है. ऐसे में समझा जा रहा है कि आने वाले समय में फेडरल रिजर्व आक्रामक रूप से इंटरेस्ट रेट बढ़ा सकता है.

यही वजह रही कि बुधवार को अमेरिकी बाजारों में एक बार फिर बड़ी गिरावट आई. इसका असर इंडिया सहित दूसरे मार्केट्स पर पड़ा है. उधर, डॉलर दो दशक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. इसकी वजह भी अमेरिका में इंटरेस्ट रेट बढ़ना है. डॉलर में मजबूती का असर भी भारत सहित उभरते बाजारों पर पड़ रहा है. दुनिया की प्रमुख 6 करेंसियों के बास्केट के मुकाबले डॉलर इंडेक्स बढ़कर 103 के पार निकल गया है. यह भारत सहित तमाम उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ठीक नहीं है.

Tags: Share market, Stock market

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