अनिल बैजल ने दिया इस्तीफाः दिल्ली को मिलेगा ‘राजनीतिक’ उपराज्यपाल या पूर्व नौकरशाह को फिर मिलेगी कमान? जानें सब कुछ


सार

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में उपराज्यपाल के तौर पर पहले नजीब जंग और उसके बाद अनिल बैजल ने कार्य किया, लेकिन दिल्ली सरकार के साथ उनके रिश्ते हमेशा विवादित रहे।

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दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने निजी कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। 31 दिसंबर 2016 को अपना कार्यकाल शुरू करने वाले बैजल अपने पद पर पांच साल चार महीने रहे। वे उपराज्यपाल के तौर पर अपनी पारी पूरी कर चुके थे और केंद्र सरकार उन्हें दोबारा अवसर देने के मूड में नहीं थी, लिहाजा व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अपने कार्यकाल के दौरान दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के साथ उनके रिश्ते हमेशा विवादों के केंद्र में रहे। नया उपराज्यपाल राजनीतिक पृष्ठभूमि से होगा, या एक बार फिर किसी पूर्व नौकरशाह को अवसर दिया जाएगा, इस पर चर्चा शुरू हो गई है। 

संवैधानिक तौर पर राज्यपाल या उपराज्यपाल का पद गैर-राजनीतिक होता है, लेकिन उनकी भूमिका को सदैव राजनीतिक कोण से देखने की कोशिश होती रही है। विशेषकर यदि केंद्र में किसी अलग दल की सरकार हो तो दूसरे दलों की राज्य सरकारों ने राज्यपालों की भूमिका पर सबसे ज्यादा सवाल खड़े किए।  दिल्ली के संदर्भ में भी यह बात अपवाद नहीं रही और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उपराज्यपालों की भूमिका पर सदैव सवाल खड़ा किया। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में उपराज्यपाल के तौर पर पहले नजीब जंग और उसके बाद अनिल बैजल ने कार्य किया, लेकिन दिल्ली सरकार के साथ उनके रिश्ते हमेशा विवादित रहे। केजरीवाल सरकार ने दोनों ही उपराज्यपालों पर केंद्र की भाजपा सरकार के इशारे पर कार्य करने और सरकार की आवश्यक योजनाओं में अड़ंगा लगाने का आरोप लगाया। 

माना जाता है कि भाजपा अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में ही उलझाकर रखने की रणनीति पर काम कर रही थी और उपराज्यपालों के कार्यकलाप की इसी दृष्टि से व्याख्या की जाती रही। चूंकि, नजीब जंग और अनिल बैजल दोनों ही भाजपा के मंसूबों को पूरा करने में नाकाम रहे, इसलिए माना जा रहा है कि इस बार केंद्र दिल्ली में राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले किसी व्यक्ति को उपराज्यपाल के तौर पर अवसर दे सकती है।

कभी नहीं रहा राजनीतिक पृष्ठभूमि का राज्यपाल
भाजपा के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली में अब तक जितने भी व्यक्ति को उपराज्यपाल के रूप में काम करने का अवसर मिला है, सभी प्रशासनिक पृष्ठभूमि के रहे हैं। इसमें आईएएस और आईपीएस सबसे ज्यादा रहे हैं तो कुछ विदेश सेवा और सुरक्षा बलों से भी रहे हैं। लेकिन किसी राजनीतिक व्यक्ति को अब तक दिल्ली का उपराज्यपाल बनने का अवसर नहीं मिला है। संभवतः इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली का प्रशासनिक ढांचा रहा है जहां कई एजेंसियां कार्य करती हैं।

लेकिन बदले हालात में जिस तरह कश्मीर में मनोज सिन्हा को अवसर दिया गया है, उसी प्रकार दिल्ली में भी किसी मंजे राजनेता को उपराज्यपाल के रूप में कार्य करने का अवसर दिया जा सकता है। माना जा रहा है कि दो से तीन दिनों के अंदर यह निर्णय कर लिया जाएगा। 

विस्तार

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने निजी कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। 31 दिसंबर 2016 को अपना कार्यकाल शुरू करने वाले बैजल अपने पद पर पांच साल चार महीने रहे। वे उपराज्यपाल के तौर पर अपनी पारी पूरी कर चुके थे और केंद्र सरकार उन्हें दोबारा अवसर देने के मूड में नहीं थी, लिहाजा व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अपने कार्यकाल के दौरान दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के साथ उनके रिश्ते हमेशा विवादों के केंद्र में रहे। नया उपराज्यपाल राजनीतिक पृष्ठभूमि से होगा, या एक बार फिर किसी पूर्व नौकरशाह को अवसर दिया जाएगा, इस पर चर्चा शुरू हो गई है। 

संवैधानिक तौर पर राज्यपाल या उपराज्यपाल का पद गैर-राजनीतिक होता है, लेकिन उनकी भूमिका को सदैव राजनीतिक कोण से देखने की कोशिश होती रही है। विशेषकर यदि केंद्र में किसी अलग दल की सरकार हो तो दूसरे दलों की राज्य सरकारों ने राज्यपालों की भूमिका पर सबसे ज्यादा सवाल खड़े किए।  दिल्ली के संदर्भ में भी यह बात अपवाद नहीं रही और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उपराज्यपालों की भूमिका पर सदैव सवाल खड़ा किया। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में उपराज्यपाल के तौर पर पहले नजीब जंग और उसके बाद अनिल बैजल ने कार्य किया, लेकिन दिल्ली सरकार के साथ उनके रिश्ते हमेशा विवादित रहे। केजरीवाल सरकार ने दोनों ही उपराज्यपालों पर केंद्र की भाजपा सरकार के इशारे पर कार्य करने और सरकार की आवश्यक योजनाओं में अड़ंगा लगाने का आरोप लगाया। 

माना जाता है कि भाजपा अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में ही उलझाकर रखने की रणनीति पर काम कर रही थी और उपराज्यपालों के कार्यकलाप की इसी दृष्टि से व्याख्या की जाती रही। चूंकि, नजीब जंग और अनिल बैजल दोनों ही भाजपा के मंसूबों को पूरा करने में नाकाम रहे, इसलिए माना जा रहा है कि इस बार केंद्र दिल्ली में राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले किसी व्यक्ति को उपराज्यपाल के तौर पर अवसर दे सकती है।

कभी नहीं रहा राजनीतिक पृष्ठभूमि का राज्यपाल

भाजपा के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली में अब तक जितने भी व्यक्ति को उपराज्यपाल के रूप में काम करने का अवसर मिला है, सभी प्रशासनिक पृष्ठभूमि के रहे हैं। इसमें आईएएस और आईपीएस सबसे ज्यादा रहे हैं तो कुछ विदेश सेवा और सुरक्षा बलों से भी रहे हैं। लेकिन किसी राजनीतिक व्यक्ति को अब तक दिल्ली का उपराज्यपाल बनने का अवसर नहीं मिला है। संभवतः इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली का प्रशासनिक ढांचा रहा है जहां कई एजेंसियां कार्य करती हैं।

लेकिन बदले हालात में जिस तरह कश्मीर में मनोज सिन्हा को अवसर दिया गया है, उसी प्रकार दिल्ली में भी किसी मंजे राजनेता को उपराज्यपाल के रूप में कार्य करने का अवसर दिया जा सकता है। माना जा रहा है कि दो से तीन दिनों के अंदर यह निर्णय कर लिया जाएगा। 



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