Bhojpuri- पर्यावरण विशेष: पर्यावरण बचा लीं जदि अपना लइका पोता खातिर खुशहाल भविष्य चाहत बानी


जलवायु परिवर्तन के चलते भी दुनिया में सब कुछ उथल-पुथल हो गइल बा. घाम होता त एतना कि आदमी, जानवर सभके झोंकर देsता, बरखा एतना होता कि जहवाँ सैकड़ो साल से अल्पवर्षा के इतिहास रहल बा, उहवाँ बाढ़ आ जाता. ओसहीं ठंडी लोग के हाँड़ कंपकंपा देता. ई सब मनुष्य के करनी धरनी ह.

जीव के ई प्रजाति जेकरा के आदमी कहल जाला, सबसे लोभी होला. एह धरती पर जदी सबसे ढेर केहू अत कइले बा त ऊ आदमिए बा. पर्यावरण दिवस बीतल ह, हर साल बीतेला बाकिर हमनी के ओकरा खातिर कवनो विशेष प्रयोजन नइखी जा करत. एसी लागत बा गर्मी से बचे खातिर आ उहे एसी हानिकारक गैस छोड़ के गर्मी बढ़ा रहल बा. कहे के माने जवना डाढ़ी पर बइठल बानी जा, उहे काटियो रहल बानी जा. समय त हालांकि निकल गइल बा हाथ से, बाकिर जेतने बाचल बा, जदि ओकरा दरम्यान हमनी के पर्यावरण बचावे के पुरजोर कोशिश ना कइनी जा त बुझीं अगिला पीढ़ी के त जीवन दूर बा, हमनिए के जीवन काल में धरती प्रलय के गाल में समा जाई.

विद्वान लोग के कहनाम बा, “हमारा वर्तमान आने वाली पीढ़ी से लिया हुआ कर्ज है, जिसका हमें सूद समेत मूल चुकाना है”. हमनी के जवन धरती पर आज बानी जा ऊ सच में आवे वाला भविष्य के धरती ह, हमनी के ई फर्ज बनत बा कि एकरा के जेतना बेहतर हो सके बना के अगिला पीढ़ी के सौंपी जा. बाकिर महाराज, सब उल्टा हो रहल बा. हमनी के पिछला पीढ़ी धरती के लगातार दोहन करत गइल अउरी ओही के लकम हमनियो के लगा गइल. अब हमनियो का अपना लइका बच्चा के पर्यावरण रक्षा के पाठ ना पढ़ा के उल्टा ओकर अधिकतम दोहन के शिक्षा दे रहल बानी जा.

पूजा पाठ आ लोक में पर्यावरण

ई सब हम आज के दोष गिना रहल बानी जवन समस्त विश्व के सभ्य कहल जाए वाला प्राणियन में बा. जबकि एकरा से बढ़िया त अभियो जंगल में रहे वाला आदिवासी बाड़ें. ऊ जंगले से खालें अउरी ओकरा के बचावे खातिर सब कुछ लुटा भी देलें. पर्यावरण रक्षा साँचो में जीवन रक्षा ही बा. हालांकि हमनी के संस्कृति में प्रकृति आ पर्यावरण के रक्षा खातिर अनगिनत नियम आ प्रचलन बा. हमनी इहाँ पीपर पुजाला, बर पुजाला, नीम, तुलसी, आँवला के पूजा होला. रउआ जानते होखब, ब्रह्म स्थान अक्सर पीपर के पेड़ के नीचे होला. हर गाँव में रउआ एगो पीपर के पुरान पेड़ मिल जाई जहवाँ बरम बाबा के स्थान होई. बरगद के पेड़ तर वट सावित्री व्रत के पूजा होला, गाँव के सोहागिन भाँवर देली. निमिया के डाढ़ पर त देवी मैया के झूलुए लागेला. तुलसी के पौधा त हर घर में रउआ मिल जाई आ रोज भोर-भिनुसारे माई-काकी आ भउजी नहा धो के जल ढारेली. सांझी के ओहिजा दिया बराई. तुलसी बियाह भी होला. हर पूजा-पाठ में, भोग परसाद में तुलसी के पतई चहबे करी. अरे महाराज, जब केहू परलोक सिधारे जाला त ओकरा मुंह में गंगा जल आ तुलसी के पतई डलाला.

ओसहीं आँवरा के पूजा होला. अक्सर जोड़ा पेड़ लगावल जाला. जब आँवरा बड़ हो जाई त ओकर जनेव होला आ फेर बाद में ओकर बियाहो होला. ई सब हमनी के जीवन आ संस्कार में रचल बसल बा. आम के पल्लव हर पूजा पाठ आ विधि में लागेला. रउआ त जानते होखब कि पीपर, बरगद के पेड़ काटल बर्जित बा. जदी कवनो चिरई गोदा चोंच में दबा के ले आइल आ घर के ऊपर गिरा दिहलस. माटी पानी के संसर्ग पड़ल अउरी उ पीपर भा बरगद के पेड़ बन गइल त केहू भुलाइयो के ना काटेला. जदि ओ पेड़ से देवाल टूटे के डर रहि त लोग कवनो जोलहा के बोलवा के कटवा दी बाकिर अपना हाथे ना काटी. एह तरह से हमनी इहाँ पर्यावरण रक्षा खातिर नियम कानून बनावल गइल बाड़ी सन.

ई सब के वैज्ञानिक महत्व से त सभे परिचित बा. बाकिर, एकर सबसे बड़ उद्देश्य जवन बा, उ बा पर्यावरण के रक्षा. सोचीं ऋषि महर्षि आ हमनी के पुरखा पुरनिया केतना दूरद्रष्टा रहे. उ जानत रहे कि प्रकृति बा त ई धरती के अस्तित्व बा. एही से उ पर्यावरण रक्षा खातिर कई गो रीति रिवाज आ पूजा पाठ शुरू कइलस. हालांकि हम कई गो तथाकथित बुद्धिजीवी लोग के ई सब के विरोध करत भी सुनले बानी. दरअसल उ लोग पाश्चात्य परंपरा से संक्रमित बा अउरी आपने संस्कृति भुला रहल बा.

लोकगीतन आ साहित्य में पर्यावरण महत्ता

अपना इहाँ पर्यावरण रक्षा के संस्कार गीतन में भा सामान्य मनोरंजन के संगीत में पिरोवल गइल बा, जइसे एगो गीत बा जेकर प्रसंग बा कि एगो बेटी अपना पिता के घर से विदा हो रहल बिया त उ गोहार करत बिया कि बाबा निमिया के पेड़ जन कटिहा –

बाबा निमिया के पेड़ जिन कटिहा

निमिया प चिरईया के बसेर

बलईया लेऊ बीरन के

बाबा सागरी चिरईया उड़ी जइहें

रहि जइहें निमिया अकेर

अपना इहाँ छठ पूजा त पर्यावरण के ही पूजा मानल जाला. डूबत आ उगत सुरुज के अर्घ, प्रकृति देवी माने छठी माई के पूजा, उनका पूजा में लागे वाला हर एक पदार्थ प्रकृति से ही लिहल रहेला. लोग ताल तलैया, पोखर, बावड़ी एही कारण भी संरक्षित कर के रखेला, ओकर साफ सफाई करेला कि छठ पूजा कर सको. आ देखीं छठ पूजा के हर गितवे प्रकृति प्रेम आ रक्षा के बा.

“कांच ही बांस के बहंगिया, बहँगी लचकत जाए” होखे भा ‘केरवा के पात पर उगेले सुरुजमल झाँके, झुके” होखे, सब गितवे में रउआ प्रकृति के उपासना, ओकरा बड़ाई आ ओकरा से मानव जाति के रक्षा खातिर गोहार के चर्चा मिली. जइसे सनातन परंपरा में आम के पुत्र के दर्जा दिआइल बा आ एही से ओकरा के काटल वर्जित बा. जइसे एगो पारंपरिक गीत के बोल बा, ओकर दू गो लाइन देखीं. बन के रक्षा करे खातिर गोहार कइला जाता.

“आम पुरत हवे, निमिया महतारी

बनवा के कर रछपाल, ए बिरिजबासी”

एगो अउर रक्षा बा जवन सबसे जरूरी बा. ऊ बा धरती के जहर मुक्त कइल. यूरिया आ केमिकल्स के प्रयोग बंद कइल. जैविक खेती कइल. देश के कई गो संस्था एह दिशा में काम कर रहल बाड़ी स. हम खुद अपना मित्र जागो भारत फाउंडेशन के संस्थापक सुयश कुमार उर्फ मुन्ना सिंह के साथे एह अभियान में लागल बानी. सीमैप (केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान ) के भी सहयोग मिल रहल बा. जैविक आ औषधीय खेती के प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग आ बाजार के ठीक से समझे खातिर हमनी के कोंडागांव, छत्तीसगढ़, अम्बिकापुर, मधेपुरा, पुरी उड़ीसा, मेरठ, जयपुर, भरतपुर, नैनीताल, सोनभद्र अउर ना जाने केतना सेंटर पर गइनी जा अउर अब जगह-जगह जागो भारत के सेंटर शुरू भइल बा. दू साल पहिले गाँधी जयंती के 150 साल पूरा भइला पर उनका जयंती 2 अक्टूबर से पुण्यतिथि 30 जनवरी 2020 तक चंपारण से शुरू होके बिहार के विभिन्न जिलन में पूर्व राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा के नेतृत्व में जवन गाँधी सकल्प यात्रा भइल ओह में सांस्कृतिक टीम के नेतृत्व के जिम्मेवारी हमरे रहे. हम कई गो गीत लिखले रहनी जवना के क्षेत्र के हिसाब से मगही, मैथिली, भोजपुरी आ हिन्दी में गायक लोग गावल. जैविक खेती पर लिखल हमार गीत भी खूब लोकप्रिय भइल –

करीं जैविक खेती, करीं जैविक खेती, करीं जैविक खेती

पैदा होई बेसी, करीं जैविक खेती

फसल होई देसी, करीं जैविक खेती

बनल रही ब्यूटी, करीं जैविक खेती

लगब स्वीटी-स्वीटी, करीं जैविक खेती

खेतवो में जहर, फसलवो में जहर

फसलवो में जहर, जिनिगियो में जहर

बंद करीं यूरिया, पोटास वाली खेती, करीं जैविक खेती।

पैदा होई बेसी, फसल होई देसी

बनल रही ब्यूटी, लगब स्वीटी-स्वीटी…करीं जैविक खेती

रासायनिक खेती त कैंसर के घर ह

भारी बेमारी के इहे डगर ह

भोजन में अपना जहर मत मिलाईं, करीं जैविक खेती

पैदा होई बेसी, फसल होई देसी

बनल रही ब्यूटी, लगब स्वीटी-स्वीटी….करीं जैविक खेती

गोबरे के खाद डाले, खेतवा में तेजुआ

कहेला हमनी के साथी ह केंचुआ

त अंग्रेजन के खेती छोड़ के,

करीं अपना पुरखन के खेती, करीं जैविक खेती

पैदा होई बेसी, फसल होई देसी

बनल रही ब्यूटी, लगब स्वीटी-स्वीटी….. करीं जैविक खेती

जैविक खेती सीखे गांधी जी इंदौर गइनी

1935 में जम के तारीफ कइनी

आज के जरूरत बा बस उहे खेती, करीं जैविक खेती

पैदा होई बेसी, फसल होई देसी

बनल रही ब्यूटी, लगब स्वीटी-स्वीटी, करीं जैविक खेती

(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य व सिनेमा के जानकार हैं.)

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