ऑस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता ब्रैड पिट की नई फिल्म ‘बुलेट ट्रेन’ अगले हफ्ते अमेरिका से पहले भारत में रिलीज होगी। ब्रैड पिट फिल्म निर्माता भी हैं और उनकी बनाई तीन फिल्में ऑस्कर में बेस्ट पिक्चर अवॉर्ड जीत चुकी हैं। भारत से प्रेम करने वाले ब्रैड पिट से अमर उजाला के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल की एक्सक्लूसिव बातचीत।
‘बुलेट ट्रेन’ का नाम सुनकर ही रफ्तार और रोमांच की अनुभूति होती है और इस ट्रेन में अगर कोई किरदार कातिलों से घिर जाए तो इसकी शूटिंग का अनुभव तो वाकई रोचक रहा होगा?
हां। शूटिंग के दौरान तो खैर हम स्टूडियो के अंदर ट्रेन की डिब्बों की शक्ल में बने बक्सों के भीतर ही शूटिंग कर रहे थे। और, वह भी अक्सर अलग अलग। मिले तो भी कुछ समय के लिए। लेकिन, इस फिल्म के प्रचार के लिए हम सब एक साथ दुनिया घूमने निकले तो बहुत मजा आ रहा है। दो साल बाद इतने सैर सपाटे का मौका मिलना और सबके साथ हंसी मजाक कर सकने के लिए इकट्ठा हो सकना ही असली आनंद है।
फिल्म ‘बुलेट ट्रेन’ इसी नाम के जिस लोकप्रिय उपन्यास पर आधारित है, उससे इसका फिल्मी संस्करण कितना अलग होगा?
सच बताऊं तो मैंने अभी तक ये उपन्यास पढ़ा नहीं है। इसके लेखक के प्रति मेरे मन में पूरा सम्मान है और मैं किसी को ये बताकर आहत भी नहीं करना चाहता। लेकिन, मैं ये उपन्यास जल्द से जल्द पढ़ने की कोशिश भी करूंगा। फिल्म की शूटिंग से पहले इसे न पढ़ने की वजह है और वह ये कि मैं फिल्म को इसके निर्देशक के नजरिये से करना चाहता था। कुछ और मेरे मन में इस बीच चलता रहे, उससे एकाग्रता भंग होती है, मेरी भी और दूसरों की भी।
‘डेडपूल 2’ और ‘फास्ट एंड फ्यूरियस: हॉब्स एंड शॉ’ जैसी भारत में भी खूब सफल रहीं फिल्मों के निर्देशक डेविड लीच फिल्म ‘बुलेट ट्रेन’ के निर्देशक हैं, उनके साथ इस फिल्म को बनाने का अनुभव कैसा रहा?
डेविड और मैं बहुत पुराने मित्र हैं। इस फिल्म को बनाना शुरू करने से पहले हमने इसकी मेकिंग पर कई दौर की चर्चाएं कीं। हमने फिल्म के बाकी कलाकारों का चुनाव भी साथ बैठकर ही किया। डेविड का एक्शन फिल्मों का अपना नजरिया है और मुझे खुशी है कि उनकी फिल्में भारत में सबसे कामयाब हॉलीवुड फिल्मों में शामिल रही हैं।
आप भारत में बहुत घूमे हैं, कैसी यादें हैं आपके साथ हमारे देश की?
ओह, भारत एक अद्भुत देश है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक यह लगातार बदलता रहता है। ऐसे विविधतापूर्ण देश कम ही हैं। मेरे जेहन में अब भी उत्तर भारत भ्रमण की यादें बिल्कुल ताजा हैं। वहां मैं तमाम ऐसी जगहों पर गया हूं जहां दिन में भी अंधेरा रहता है। मंदिरों में घंटियां बजाई हैं और वाराणसी का अनुभव तो अलौकिक रहा है। वाराणसी जैसा स्थान मैंने अपने जीवन में पूरी दुनिया में कोई दूसरा नहीं देखा है और अब तक मैंने जितना भी विश्व भ्रमण किया है, उनमें ये शहर मेरे लिए बहुत खास स्थान रखता है।