बच्‍चे हो सकते हैं कोरोना के सुपर स्‍प्रेडर, इन बातों का ध्‍यान रखें पेरेंट्स


नई दिल्‍ली. देश में कोरोना (Corona) के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि राहत की बात यह है कि अभी तक संक्रमण के ज्‍यादातर मामलों में गंभीरता नहीं देखी जा रही है. कोरोना का हल्‍का संक्रमण और कम लक्षणों के चलते बहुत कम लोग हैं जिन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती करना पड़ रहा है. इस बार कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) काफी संक्रामक है. ऐसे में न केवल बड़ों को बल्कि अभी तक कोरोना वैक्‍सीनेशन (Corona Vaccination) से वंचित रहे बच्‍चों को भी संक्रमण होने का काफी खतरा है. हालांकि बच्‍चों को लेकर विशेषज्ञों का कुछ और ही कहना है. विशेषज्ञों का मानना है कि न केवल कोरोना से बच्‍चों में संक्रमण (Corona Infection in Children) होने का डर है बल्कि बच्चों द्वारा संक्रमण फैलने का भी खतरा है. बच्‍चे आज कम लक्षणों वाले इस रोग के सुपर स्‍प्रेडर (Super Spreader) बन सकते हैं.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज स्थित मॉलीक्‍यूलर बायोलॉजी यूनिट के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट और जाने माने वायरोलोजिस्ट प्रोफेसर डॉ. सुनीत कुमार सिंह कहते हैं कि बच्‍चों के सुपर स्‍प्रेडर बनने से तात्‍पर्य यह है कि अगर आप कोरोना का पुराना डेटा देखें और एनालाइज करें तो ऐसे में अगर कोरोना मृत्‍युदर और क्रॉनिक स्थिति देखें तो सामने आया है कि इस बीमारी से वही लोग ज्‍यादा मरे हैं जिनकी उम्र ज्‍यादा थी. कोरोना की वजह से बुजुर्गों का मोर्टेलिटी रेट कही ज्‍यादा रहा है. वहीं अगर गंभीर मरीजों की बात की जाए और उनकी बात की जाए जो कोरोना के बाद अस्‍पताल पहुंचे तो ये वे लोग थे जो कोमोरबिड (Comorbid) थे यानि पहले से किसी न किसी गंभीर बीमारी जैसे, कैंसर (Cancer), अस्‍थमा, हार्ट, लिवर या किडनी (Liver or Kidney) रोगों से जूझ रहे थे. वहीं असिम्‍टोमैटिक वे लोग हैं जिनमें वायरस का रेप्लिकेशन जरूरत से ज्‍यादा होता है. इनमें लक्षण प्रकट नहीं होते. इसके कई इम्‍यूनोलॉजिकल (Immunological) कारण हो सकते हैा. इसमें होता यह है कि वे वायरस की शेडिंग ज्‍यादा करते हैं. फिर चाहे वह खांसने के दौरान हो या छींकने के दौरान या तेज बोलने के दौरान हो. इससे दूसरे लोग जल्‍दी वायरस (Virus) के शिकार होते हैं.

डॉ. सुनीत कहते हैं कि इस बीमारी में मानव से मानव वेरिएशन काफी होता है और यह भी स्‍थाई नहीं होता. यह भी बदलता रहता है. किसी मरीज में बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं और किसी में बिल्‍कुल नहीं होते. इम्‍यूनोलॉजिक कारणों में भी कई वजहें हैं. मसलन जिसको वायरस प्रभावित नहीं कर रहा है या लक्षण सामने नहीं आ रहे हैं उसकी शारीरिक स्थिति कैसी है? शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसी है? वह अन्‍य रोगों से पीड़‍ित है या नहीं है. ऐसे में जो युवा वर्ग था या जो बच्‍चे थे उनमें देखा गया कि उन्‍हें कोरोना का इन्‍फेक्‍शन तो हुआ लेकिन इस दौरान उनमें लक्षण सामने नहीं आए और न हीं वे मॉडरेट या सीवियर स्थिति में पहुंचे लेकिन वायरस उनके अंदर मौजूद था. वे वायरस की शेडिंग (Virus Shading) काफी ज्‍यादा कर रहे थे और लोगों को संक्रमित कर रहे थे.

डॉ. सुनीत कहते हैं कि लक्षण न होने के चलते ये पता भी नहीं चल पाता है कि कौन वायरस का प्रसार कर रहा है. यही वजह है कि बच्‍चे सुपर स्‍प्रेडर बन जाते हैं और सभी के संपर्क में रहने के चलते कोरोना जैसे वायरस को फैला रहे होते हैं. इनके संपर्क में आए अन्‍य लोग भी शक नहीं कर पाते हैं क्‍योंकि ऐसा कोई विशेष लक्षण इनमें दिखाई भी नहीं देता है. इसलिए बच्‍चों के सुपर स्‍प्रेडर बनने की संभावना सबसे ज्‍यादा है.

पेरेंट्स रखें ये ध्‍यान, करें बच्‍चों का बचाव
स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस के फैलाव या संक्रमण को कम करने के लिए जरूरी है कि बच्‍चों का खास ध्‍यान रखा जाए. न केवल बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से बल्कि खुद को और अन्‍य लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए भी जरूरी है कि बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य और व्‍यवहार पर विशेष फोकस किया जाए. बच्‍चों को भीड़ में जाने से रोक जाए. अभिभावक कोशिश करें कि जहां भी बच्‍चों को ले जाएं इन्‍हें मास्‍क पहनाएं. बार बार हाथ धोने की आदत डालें. बच्‍चों को कोरोना बीमारी, इसके लक्षणों और इसके फैलने के तरीकों को लेकर जागरूक करें. इन्‍हें कोविड अनुरूप व्‍यवहार बताएं और उसका पालन कराएं. किसी भी सार्वजनिक समारोह में जाने से बचें. बच्‍चे में अगर सर्दी या जुकाम-खांसी के हल्‍के लक्षण भी दिखाई दें तो तत्‍काल चिकित्‍सक के पास ले जाएं और कोरोना जांच कराएं.

Tags: Corona Virus, COVID 19, Omicron, Omicron variant

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