कॉन्‍टेक्‍ट या कॉस्‍मेटिक लेंस भी छीन सकते हैं आंखों की रोशनी, AIIMS की ऑप्‍थेल्‍मोलॉजिस्‍ट ने बताई वजह


नई दिल्‍ली. आंखों का रंग बदलने से लेकर सुंदर दिखने और चश्‍मा हटाने के लिए लेंस लगाने का चलन भारत में तेजी से बढ़ रहा है. यहां तक कि छोटे शहरों और कस्‍बों में भी जहां आई-क्‍लीनिक्‍स नजर के लिए कॉन्‍टेक्‍ट लेंस वहीं ब्‍यूटी सलून कॉस्‍मेटिक लेंस लगाने का काम कर रहे हैं लेकिन यह चीज परेशानी तब बनती है जब लेंस के कारण आंखों में कई तरह का संक्रमण और बीमारियां पैदा हो जाती है और लोग बड़े अस्‍पतालों की तरफ रूख करते हैं. रिसर्च एंड मार्केट्स की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2019 से 2025 तक कॉन्‍टेक्‍ट लेंसेंज का राजस्‍व के लिहाज से कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट 7.5 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. लिहाजा यह तय है कि भारत के लोग चश्‍मों को छोड़कर लेंस के इस्‍तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैं. हालांकि स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों की मानें तो लेंस उपयोगी है लेकिन सावधानी और एहतियात की कमी से आंख को नुकसान भी पहुंच सकता है.

दिल्‍ली एम्‍स स्थित राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑप्‍थेल्मिक साइंसेज में प्रोफेसर ऑप्‍थेल्‍मोलॉजी डॉ. राधिका टंडन बताती हैं, आंख की पुतली यानि कॉर्निया बहुत ही साफ और पारदर्शी होती है. इसमें कभी-कभी संक्रमण या सूजन की शिकायत हो जाती है. जिसके बाद कैरेटाइटिस बीमारी जन्‍म लेती है. यह संक्रमण कई तरह के कीटाणुओं की वजह से होता है. आंख को चोट लगने, किसी नुकीली चीज से खरोंच लगने या आंख में संक्रमित या गंदा पानी जाने से भी हो सकता है. इसके अलावा कैरेटाइटिस होने की एक वजह कॉन्‍टेक्‍ट या कॉस्‍मेटिक लेंस भी देखी गई है. अगर इन लेंस को पहनते वक्‍त सावधानी और हाइजीन का ध्‍यान नहीं रखा गया तो ये हानिकारक हो सकते हैं. कई बार कॉन्‍टेक्‍ट लेंस संक्रमित होते हैं, उनका सॉल्‍यूशन भी कंटामिनेटेड हो सकता है या लेंस के रखरखाव के वक्‍त भी लेंस से कीटाणु चिपक सकते हैं. ऐसे में जब लेंस को पुतली पर लगाते हैं तो वह कॉर्निया को संक्रमित कर सकता है.

लेंस लगाते वक्‍त लोग ये करते हैं कमियां
डॉ. राधिका बताती हैं कि जिस प्रकार लोग दिनभर चश्‍मे का इस्‍तेमाल करते हैं लेकिन रात को सोते वक्‍त चश्‍मा निकालकर रख देते हैं, ठीक उसी तरह सावधानी से कॉन्‍टेक्‍ट लेंस का भी इस्‍तेमाल करना होता है लेकिन लेंस को इस्‍तेमाल करते वक्‍त अक्‍सर कुछ कमियां कर देते हैं जो आंखों में बीमारी का कारण बन जाता है. कैरेटाइटिस के अधिकांश मामलों में देखा गया है कि लोग रातभर आंख में लेंस लगा रहने देते हैं या लेंस लगाकर ही सो जाते हैं. या फिर बहुत लंबे समय तक लेंस लगाकर रखते हैं, जैसे अधिकतम 24 घंटे या एक दिन से भी ज्‍यादा तो इससे इन्‍फेक्‍शन का खतरा बढ़ जाता है. लेंस लगाकर सोते से आंखों में हाइपोक्सिया यानि ऑक्‍सीजन की कमी हो जाती है. इससे कॉर्निया का एपीथिलिया अस्‍वस्‍थ हो जाता है. इससे आंख में हल्‍का डिफेक्‍ट आ सकता है. साथ ही आंख के आसपास रहने वाले कीटाणू भी कॉर्निया को नुकसान पहुंचाने लगते हैं.

प्रोफेसर बताती हैं कि सिर्फ कुछ ही लेंस ऐसे होते हैं, जिन्‍हें लंबे समय तक पहनने के लिए बनाया जाता है लेकिन उनके साथ भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सलाह दी जाती है कि कॉन्‍टेक्‍ट लेंस सीमित समय के लिए पहना जाए.

लेंस की वजह से जा सकती है आंख की रोशनी
डॉ. बताती हैं कि ये बात सही है कि कॉन्टेक्ट लेंस के इस्‍तेमाल से संक्रमण का खतरा होता है. हालांकि विजन की खूबी के चलते इनका उपयोग किया जाता है. जहां तक खतरे की बात है तो लेंस लंबे समय तक पहनने, ठीक से रख-रखाव रखने, सफाई में लापरवाही करने से आंख के कॉर्निया को वायरल, बैक्टीरियल या पैरासिटिक इंफेक्शन का खतरा रहता है. इससे मुख्य रूप से कैरेटाइटिस, कार्नियल संक्रमण और कार्नियल अल्सर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. पुतली को नुकसान होने पर विजन में कमी आने से लेकर आंख की रोशनी पूरी तरह भी खत्म हो सकती है.

चश्‍मे की जगह इसलिए लेंस की सलाह देते हैं डॉक्‍टर
डॉ. राधिका कहती हैं कि जिन लोगों की दोनों या एक आंख का नंबर बहुत ज्‍यादा होता है, एक चश्‍मे से देखने में परेशानी महसूस करते हैं, चश्‍मे से भी इमेज साफ नहीं दिखती या किसी कारण से चश्‍मा इस्‍तेमाल करने में दिक्‍कतों का सामना करते हैं तो ऐसे लोगों को चश्‍मे की बजाय नजर वाला कॉन्‍टेक्‍ट लेंस लगाने की सलाह दी जाती है. लेकिन यहां ध्‍यान देने वाली बात यह है कि यह लेंस भी लोगों को अधिकतम 8 या 10 घंटे तक ही लगातार पहनने के लिए कहा जाता है. इससे ज्‍यादा पहनने या साफ-सफाई का ध्‍यान न रखने पर यह आंख को नुकसान पहुंचा सकता है. वहीं जो लोग लेंस को लेकर सावधानी नहीं बरत पाते, चाहे वे बच्‍चे हों या बहुत व्‍यस्त रहने वाले बुजुर्ग और व्‍यस्‍क हों, तो उन्‍हें चश्‍मे की ही सलाह दी जाती है.

लेंस के लिए पेशेंट एजुकेशन जरूरी
डॉ. कहती हैं कि लेंस एक मेडिकेटेड प्रक्रिया है. इसके लिए पेशेंट एजुकेशन जरूरी होती है. लेंस लगाने के दौरान उसके इस्‍तेमाल के तरीके से लेकर इसके फायदे और नुकसान भी बताना भी इसका हिस्‍सा है. लेंस लगाने से पहले और बाद में मरीज को ट्रेनिंग भी दी जाती है कि लेंस कैसे पहनें, कैसे उतारें, कैसे साफ करें, क्‍या सावधानी रखें. कई मरीज जो अस्‍पतालों में आते हैं वे लेंस के उपयोग के दौरान जानकारी की कमी के चलते इन्‍फेक्‍शन का शिकार होते देखे गए हैं. इसलिए जानकारी होना बहुत जरूरी है. अगर लेंस को पहनने पर कोई परेशानी होती है तो तत्‍काल किसी ऑप्‍थेल्‍मोलॉजिस्‍ट को दिखाएं. इंतजार से संक्रमण बढ़ सकता है.

लेंस को फेंके नहीं, डॉक्‍टर के पास लेकर जाएं
डॉ. राधिका कहती हैं कि अगर किसी व्‍यक्ति को कॉन्‍टेक्‍ट लेंस पहनने के बाद आंख में परेशानी, दर्द या धुंधला दिखाई देने जैसी कोई परेशानी होती है तो उसे लेंस को तुरंत निकाल देना चाहिए. अगर एक आंख में लेंस से दिक्‍कत हुई है तो फिर दूसरी आंख में भी नहीं पहनना चाहिए. इसके अलावा जब भी वह आंखों के डॉक्‍टर के पास दिखाने के लिए जाए तो उन लेंसेज को फेंकने के बजाय अपने साथ लेकर जाए. ताकि डॉक्‍टर उसका कल्‍चर करा सकें और किस प्रकार का इन्‍फेक्‍शन है इसकी जानकारी कर सकें. इतना ही नहीं अगर मरीज को दवा से आराम नहीं पड़ रहा है तो उसका कल्‍चर के आधार पर उचित एंटी माइक्रोबायल इलाज शुरू कर सकें और दवा की सलाह दे सकें.

Tags: Eyes, Health, Health News

image Source

Enable Notifications OK No thanks