अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली
Published by: पूजा त्रिपाठी
Updated Sat, 19 Feb 2022 12:49 AM IST
सार
अनुच्छेद 22(5) के तहत एक बंदी का मौलिक अधिकार है कि किस आधार पर उसे नजरबंद रखने का आदेश दिया गया है। इसकी सूचना जल्द से जल्द मिलनी चाहिए।
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विस्तार
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि अगर एक बंदी, अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में हस्ताक्षर करने या लिखने में सक्षम है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह उस भाषा से पूर्ण रूप से परिचित है। इसे भी देखना होगा कि क्या उसे आधार को जानने के लिए पर्याप्त ज्ञान है या नहीं।
पीठ ने कहा कि जहां तक हिरासत के आदेश में केवल संदर्भ में दस्तावेजों का संबंध है, बंदी को हिरासत में लिए जाने के कारणों को नहीं बताया जाना पूर्वाग्रह होगा। तस्करी विरोधी कानून के तहत याचिकाकर्ता के बेटे को एहतियात के तौर पर अवैध हिरासत में लिए जाने के खिलाफ एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई में पीठ ने यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि अगर हिरासत में रखे गए बंदी को केवल मौखिक रूप से हैं समझाया जाता है तो इसे पूर्ण नहीं माना जा सकता है। आदेश में अदालत ने आगे कहा कि अगर कोई बंदी निरक्षर है तो सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि उसे हिरासत में लेने के आधार को उस भाषा में समझाया जाना चाहिए, जिसे वह समझता है।
अनुच्छेद 22(5) के तहत एक बंदी का मौलिक अधिकार है कि किस आधार पर उसे नजरबंद रखने का आदेश दिया गया है। इसकी सूचना जल्द से जल्द मिलनी चाहिए। अदालत ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता का पुत्र 10 वीं कक्षा में ड्रॉप-आउट था और हिंदी स्कूल में पढ़ता था। उसे हिरासत में रखने का आधार गया, इसपर आदेश उस भाषा में नहीं दी गई, जिसे वह समझता है। यह संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन है।