टाइप 2 डायबिटीज मरीजों में हार्ट डिजीज के रिस्क की पहचान कर सकता है जीन मैप – स्टडी


Gene Map May Identify Heart Disease Risk : अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (AHA) के रिसर्चर्स द्वारा की गई नई स्टडी में पता चला है कि टाइप-2 डायबिटीज (type 2 diabetes) के मरीजों के जीन मैप (Gene Map) से उनमें हाई ब्लड प्रेशर के रिस्क का पहले अनुमान लगाया जा सकता है. इससे उन्हें फ्यूचर में हार्ट डिजीज (Heart Disease) या स्ट्रोक (Stroke) जैसी समस्याओं से बचाव के लिए उपाय करने में आसानी होगी. रिसर्चर्स का मानना है कि जीन मैप टूल (Gene Map Toll)  टाइप2 डायबिटीज के नए मरीजों या प्री-डायबिटिक (यानी वो मरीज जो डायबिटीज होने की कगार पर है) के इलाज में एक जरूरी गाइड हो सकता है. आपको बता दें कि पहले की कई स्टडीज में ये साबित हो चुका है कि टाइप2 डायबिटीज के वयस्क रोगियों में सामान्य या हेल्दी लोगों की तुलना में हार्ट अटैक या स्ट्रोक का रिस्क दोगुना होता है. हार्ट से जुड़ी बीमारियों के जोखिम वाले कारकों में ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर जैसे संकेतक (Indicators) शामिल हैं.

इस स्टडी में रिसर्चर्स ने यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या टाइप 2 डायबिटीज के रोगियों में जेनेटिक वैरिएंट्स हाई ब्लड प्रेशर और बाद में उसकी वजह से होने वाले हार्ड डिजीज या स्ट्रोक से जुड़े हैं. क्या इसका इस्तेमाल रिस्क के लेवल का पता लगाने में किया जा सकता है. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘हाइपरटेंशन (Hypertension)’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

क्या कहते हैं जानकार
इस स्टडी के प्रमुख ऑथर और बर्मिघम स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बामा (University of Alabama) में कार्डियोजनोमिक्स क्लीनिक प्रोग्राम (cardiogenomics clinic program) के निदेशक डॉ पंकज अरोरा (Dr.Pankaj Arora)  के अनुसार, हाई बीपी का बढ़ा हुआ जेनेटिक रिस्क  टाइप2 डायटिबटीज के कुछ रोगियों में हार्ट अटैक, स्ट्रोक या कार्डियोवस्कुलर डिजीज के कारण मौत का ज्यादा खतरा पैदा करता है. हमने यह पता करने की कोशिश की कि क्या यह जनेटिक रिस्क स्कोर टाइप 2 डायबिटीज से पीडि़त उन लोगों की पहचान कर सकता है, जिन्हें कार्डियोवस्कुलर डिजीज का ज्यादा खतरा हो और क्या ब्लड शुगर पर कड़ा नियंत्रण रखने के असर जनेटिक हाइपरटेंशन रिस्क और कार्डियोवस्कुलर डिजीज के रूप में सामने आएगा.

यह भी पढ़ें-
जानिए क्या है ‘ड्राई आईज’ के लक्षण और कोविड से इसका क्या है लिंक

डॉ अरोरा और उनके सहयोगियों ने इस स्टडी लिए एक्शन टू कंट्रोल कार्डियोवस्कुलर रिस्क इन डायबिटीज (Action to Control Cardiovascular Risk in Diabetes) के लिए दर्ज किए गए 6,335 प्रतिभागियों के उपलब्ध आनुवंशिक डेटा (genetic data) का इस्तेमाल किया.

यह भी पढ़ें-
मन की सेहत को बेहतर रखने के ये हैं 5 सबसे अहम उपाय

स्टडी में क्या निकला
एक जनेटिक मैप में 1000 से ज्यादा नॉर्मल जनेटिक वैरिएंट (more common genetic variant) का बीपी पर पड़ने वाले असर की तुलना डीएनए (DNA) से करके प्रतिभागियों के जनेटिक रिस्क का आंकलन किया गया. स्टडी में प्रतिभागियों के डीएनए और बीपी के लिए जिम्मेदार ज्ञात जनेटिक रिस्क स्कोर का संबंध मिला. रिसर्चर्स ने पाया कि जिन लोगों में औसत जनेटिक रिस्क स्कोर (Average Genetic Risk Score) ज्यादा था, उनमें बढ़ती हर डिग्री से हार्ट डिजीज या स्ट्रोक का खतरा 12% बढ़ा था. जनेटिक रिस्क का कार्डियोवस्कुलर (cardiovascular) मामले से भी वही संबंध था और ये हालत तब थी जब ब्लड शुगर (blood sugar) कंट्रोल करने के लिए रोगी दवाएं भी ले रहे थे. हालांकि रिसर्चर्स का मानना है कि इन निष्कर्षों को व्यापक (Comprehensive) बनाने के लिए टाइप 2 डायबिटीज रोगियों में जेनेटिक रिस्क स्कोर का और भी मूल्यांकन की करने की जरूरत है.

Tags: Health, Health News, Lifestyle

image Source

Enable Notifications OK No thanks