सिजोफ्रेनिया के जेनेटिक लिंक की दो इंटरनेशनल स्टडीज में हुई पहचान


इंटरनेशनल रिसर्चर्स के एक ग्रुप ने अब तक के सबसे बड़े आनुवंशिक अध्ययनों का नेतृत्व करते हुए बड़ी संख्या में ऐसे खास जीन की पहचान की है, जो सिजोफ्रेनिया में अहम भूमिका निभाते हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, सिजोफ्रेनिया एक सीरियस मेंटल डिसऑर्डर है, जो टीनएज के आखिर या यंग एज की शुरुआत में होता है. दुनिया के प्रति 300 में से एक व्यक्ति इस, बीमारी से पीड़ित है. इस बीमारी में भ्रम, मतिभ्रम और अन्य संज्ञानात्मक कठिनाइयां  होती हैं. इंटरनेशनल कंसोर्टियम एससीएचईएमए (SCHEMA,) की तरफ से ब्राड इंस्टीट्यूट ऑफ एमआईटी और हार्वड के रिसर्चर्स के नेतृत्व में की गई स्टडी के दौरान 10 जीनों  में अत्यंत दुलर्भ प्रोटीन विघटनकारी म्यूटेशन  की पहचान की गई. ये किसी व्यक्ति में सिजोफ्रेनिया के विकास के खतरे को बढ़ाते हैं. कई बार ये खतरा 20 गुना ज्यादा हो जाता है.

यूके की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के साइंटिस्टों के नेतृत्व में साइकाइट्रिक जीनोमिक्स कंसोर्टियम यानी पीजीसी द्वारा की गई एक अन्य स्टडी में 3 लाख 20 हजार 40 लोगों के एक बड़े ग्रुप को शामिल किया गया. इस दौरान अभूतपूर्व संख्या में सिजोफ्रेनिया के आनुवंशिक लिंक की पहचान की गई. जीनोम के विभिन्न क्षेत्रों में इनकी संख्या 287 रही. इसे मानव शरीर का डीएनए ब्लू प्रिंट भी कहा जा सकता है. जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों स्टडी का निष्कर्ष ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं.

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ब्राड इंस्टीट्यूट स्थित स्टेनली सेंटर फॉर साइकाइट्रिक रिसर्च (के तरजिंदर सिंह के अनुसार, साइकेट्रिक डिसऑर्डर बहुत लंबे समय से अबूझ पहेली की तरह है. हार्ट डिजीज या कैंसर के विपरीत हमारे पास इस डिजीज मकैनिज्म के लिए बहुत कम बायोलॉजिकल क्लू (सुराग) उपलब्ध होते हैं.’

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सिजोफ्रेनिया होने की मुख्य वजह
अगर आपके परिवार के किसी सदस्य को कभी भी सिजोफ्रेनिया की शिकायत नहीं रही है तो किसी सामान्य इंसान को ये बीमारी होने की आशंका 1 फीसदी से भी कम होती है. हालांकि अगर किसी के माता-पिता को ये बीमारी हो जाए तो संतान को सिजोफ्रेनिया होने का खतरा 10 फीसदी तक बढ़ जाता है. इसके अलावा अन्य कारणों में दिमाग में केमिकल असंतुलन, परिवार में टेंशन, पर्यावरणीय कारण, तनावपूर्ण अनुभव और ड्रग्स भी हो सकते हैं.

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