Heat Stroke: आपके हार्ट, किडनी और लीवर को फेल कर सकती है लू, शरीर के अलर्ट को ऐसे पहचानें


नई दिल्‍ली. जून के महीने में तापमान 40 के पास जाने के बाद भीषण गर्मी पड़ रही है. जिसकी वजह से अस्‍पतालों में हीट स्‍ट्रोक या लू लगने के मामले सामने आ रहे हैं. हालांकि दोपहर की गर्मी में काम करने या बाहर रहने के कारण लू के शिकार हो रहे कई बार इसे हल्‍के में ले लेते हैं और बाद में गंभीर बीमारियों से घिर जाते हैं. स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों की मानें तो लू लगना या हीट स्‍ट्रोक कई गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है. लू लगने पर अगर समय से इलाज नहीं कराया तो यह हार्ट, किडनी और लीवर को फेल करने के साथ ही कोमा, ब्रेन में सूजन, एक्‍यूट रेस्पिरेटरी डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम, मेटाबोलिक डिस्‍फंक्‍शन, नर्व डैमेज आदि का कारण बन सकता है. वहीं हीट स्‍ट्रोक के बाद इन बीमारियों को पैदा होने में ज्‍यादा समय भी नहीं लगता है.

दिल्‍ली स्थित जीबी पंत अस्‍पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. सुनील एम रहेजा कहते हैं कि इस भीषण गर्मी के मौसम में लू लगना या हीट इलनेस बहुत सामान्‍य बात है. गर्मी लगने के कारण कई सारी परेशानियां हो सकती हैं. आमतौर पर शुरुआत में लोगों को मांसपेशियों में ऐंठन, पेट में दर्द, उल्‍टी, चक्‍कर आना, जी मिचलाना आदि की समस्‍याएं हो सकती हैं. वहीं समस्‍या बढ़ने पर शरीर का तापमान 104-105 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है. शरीर के अंदर का कूलिंग सिस्‍टम काम करना बंद कर देता है. जिसकी वजह से कई समस्‍याएं हो सकती हैं.

डॉ. रहेजा कहते हैं कि हीट स्‍ट्रोक या लू लगने पर शरीर अलर्ट देता है. शरीर में तेज बुखार के साथ हीट स्‍ट्रोक के अन्‍य लक्षण नजर आने लगते हैं और मरीज की हालत खराब हो रही है इसका पता चल जाता है. ऐसी स्थिति में अगर समय रहते उस अलर्ट को पहचान कर इलाज न किया जाए तो शरीर का कोई भी महत्‍वपूर्ण अंग खराब हो सकता है. हीट स्‍ट्रोक के कारण ब्रेन, हार्ट, किडनी, लिवर या अन्‍य कोई भी अंग फेल हो सकता है. मरीज कौमा में जा सकता है. उसका ब्‍लड प्रेशर गिर सकता है. सबसे जरूरी बात है कि जैसे ही मरीज के शरीर का तापमान गर्मी के मौसम में 104 डिग्री फारेनहाइट से ज्‍यादा बढ़े, तभी उसे हीट स्‍ट्रोक का मरीज मानकर इलाज शुरू कर देना चाहिए.

जैसे ही दिखाई दें ये लक्षण, हो जाएं सावधान
. इस मौसम में 104 डिग्री फारेनहाइट से ज्‍यादा बुखार हो और यह बढ़ता जाए.
. पेट या मांसपेशियों में क्रेंप या खिंचाव जैसा महसूस हो
. व्‍यक्ति को बेचैनी बढ़े और सोचने-समझने की क्षमता खत्‍म होने लगे.
. त्‍वचा पर लाल-लाल चकत्‍ते पड़ने लगें.
. शरीर में ऊर्जा खत्‍म हो जाए, बीपी लो हो जाए, मरीज को थकान हो.
. मरीज के शरीर में पानी की कमी और उल्टियां हों.
. सिरदर्द, बेहोशी या दौरे पड़ने लगें.
. सांस और दिल की धड़कन तेज तेज चले.
. पेशाब बिल्‍कुल न आना या लंबे समय से पेशाब न आना.

हार्ट, किडनी और लीवर पर ऐसे पड़ता है असर
हीट स्‍ट्रोक होने पर शरीर में खून का फ्लो या गति कम हो जाती है. जिसकी वजह से शरीर के अन्‍य अंगों तक खून को पहुंचाने और शरीर को सही तापमान पर लाने के लिए हार्ट को ज्‍यादा ताकत लगानी पड़ती है. इससे हार्ट पर दवाब बढ़ता है और हार्ट फेल होने की संभावना बढ़ जाती है. वहीं इस दौरान शरीर में पानी की भी कमी हो जाती है, जिसकी वजह से ब्‍लड प्रेशर गिरने लगता है. ब्‍लड प्रेशर गिरने के कारण किडनी फंक्‍शन घटने लगता है. हीट इलनेस के कारण, इसपर काम करने वाले कई मेटाबोलिक सिस्‍टम बंद होने लगते हैं. मसल्‍स के टिश्‍यू ब्रेक होने लगते हैं और किडनी फेल होने का खतरा पैदा हो जाता है. इसके अलावा हार्ट फेल्‍योर या शॉक लगने के तुरंत बाद भी किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके साथ ही मरीज कोमा में जा सकता है या ब्रेन में सूजन की शिकायत भी हो सकती है.

हीट स्‍ट्रोक में ये करें सबसे पहले काम
डॉ. रहेजा कहते हैं कि अगर किसी को हीट स्‍ट्रोक हुआ है या लू लगी है तो आसपास के लोगों को तत्‍काल इसे समझकर कदम उठाने की जरूरत होती है. तत्‍काल मरीज को ठंडी जगह पर ले जाएं. उसके ऊपर ठंडा पानी डाल सकते हैं या उसे तत्‍काल नहला सकते हैं. मरीज को ऐसी जगह पर लिटाएं जहां कूलर या एसी लगा हो. उसके शरीर पर कपड़े कम कर दें और ढीले कपड़े पहनाएं. इसके साथ ही उसे तुरंत ठंडा पानी, ओआरएस घोल या नींबू पानी, नारियल पानी, बेल या मौसमी आदि फलों का जूस पीने के लिए दिया जाए ताकि डिहाइड्रेशन को कंट्रोल किया जा सके. अगर मरीज घबराए, बेचैन हो या अन्‍य कोई भी असामान्‍य गतिविधि हो और कुछ भी चिंताजनक लक्षण दिखाई दे तो तुरंत डॉक्‍टर के पास ले जाएं क्‍योंकि हीट स्‍ट्रोक के मामलों में देरी करने पर मरीज को बड़ा झटका लग सकता है और शरीर को बड़ा नुकसान हो सकता है.

Tags: Heart attack, Heat stress, Heat Wave, Kidney disease

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