पोस्ट कोविड असर: ‘गंभीर’ कोरोना से रिकवर होने वालों में हार्ट से लेकर किडनी तक की परेशानी, एम्स के अध्ययन में मिली जानकारी


न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Vikas Kumar
Updated Fri, 11 Feb 2022 10:35 PM IST

सार

नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. राकेश यादव बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद पोस्ट कोविड का असर काफी गंभीर हुआ है। एम्स में अभी भी वे मरीज उपचार कराने आ रहे हैं जिन्हें पिछले साल डेल्टा वेरिएंट की वजह से कोविड हुआ था और उस दौरान उन्हें आईसीयू तक में रखना पड़ा था।

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कोरोना संक्रमण की वजह से आईसीयू, वेंटिलेटर या फिर ऑक्सीजन थैरेपी लेने के बाद ठीक हुए लोगों का जीवन कई चुनौतियों से घिरा हुआ है। रिकवर होने के चलते घर आने के बाद भी इन्हें शारीरिक तौर पर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। 

चिकित्सीय तौर पर इसे पोस्ट कोविड असर माना जाता है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इन दिनों ऐसे लोगों में दो अवस्था देखने को मिल रही हैं। एक वह लोग जो पहले से बीमार हैं और संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती हुए। यह लोग संक्रमण से ठीक होने के बाद पुरानी बीमारियों से परेशान हैं क्योंकि संक्रमण की वजह से इनका पुराना उपचार बाधित हुआ है। साथ ही प्रतिरक्षा तंत्र भी कमजोर हुआ। इसी तरह दूसरा वर्ग उन लोगों का है जिन्हें पुरानी बीमारी के बारे में नहीं पता था लेकिन संक्रमण से ठीक होने के कुछ समय बाद इनमें दिल, किडनी और ब्लॉकेज इत्यादि की परेशानियां देखने को मिल रही हैं। ऐसे लोगों में पोस्ट कोविड का असर एक साल बाद भी मिल रहा है। 

इन दोनों ही अवस्था पर दिल्ली एम्स, मैक्स साकेत और लोकनायक अस्पताल के चिकित्सीय अध्ययन मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित हुए हैं। इसी तरह के मामले दूसरे देशों में भी मिल रहे हैं। 
अमेरिकी डॉक्टरों ने इसकी जानकारी एक चिकित्सीय अध्ययन में की है जिसे हाल ही में मेडिकल जर्नल नेचरल मेडिसिन में प्रकाशित भी किया गया है।  

संक्रमण ने दिल कर दिया कमजोर
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. राकेश यादव बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद पोस्ट कोविड का असर काफी गंभीर हुआ है। एम्स में अभी भी वे मरीज उपचार कराने आ रहे हैं जिन्हें पिछले साल डेल्टा वेरिएंट की वजह से कोविड हुआ था और उस दौरान उन्हें आईसीयू तक में रखना पड़ा था। डॉ. यादव ने कहा कि पिछले कुछ समय से ऐसे भी नए मरीज सामने आ रहे हैं जिनमें ब्लॉकेज की परेशानी है। ऐसे लोगों में कोरोना संक्रमण का इतिहास भी मिल रहा है। 

एक साल बाद तक मिला है असर
साकेत स्थित मैक्स अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. संदीप बुद्घिराजा बताते हैं कि पिछले वर्ष ही पोस्ट कोविड का असर जानने के लिए उनके यहां एक चिकित्सीय अध्ययन हुआ था। इसमें पता चला कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद एक वर्ष तक पोस्ट कोविड से जुड़ी परेशानियां लेकर लोग ओपीडी या फिर इमरजेंसी में भर्ती हुए हैं। चूंकि उस दौरान महामारी को आए करीब डेढ़ वर्ष पूरा हुआ था। ऐसे में यह भी आशंका है कि कोरोना से ठीक होने वालों में एक साल से भी अधिक समय तक दूसरी बीमारियों को लेकर जोखिम बना रहता है। 

ओमिक्रॉन के बारे में कुछ पता नहीं
सफदरजंग अस्पताल के डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि देश में अभी तक कोरोना की तीन लहर आई हैं। दूसरी लहर में डेल्टा वेरिएंट वजह बना था और अब ओमिक्रॉन आया। इस महामारी का सबसे बुरा असर डेल्टा वेरिएंट के रुप में हमने देखा है। उसी दौरान पोस्ट कोविड और बाकी परेशानियों को लेकर अध्ययन हुए हैं लेकिन ओमिक्रॉन के बारे में अभी कुछ पता नहीं है। आगामी दिनों में चिकित्सीय अध्ययनों के जरिए यह पता चलेगा कि ओमिक्रॉन संक्रमण की चपेट में आकर ठीक होने वालों का जीवन बाद में कैसा है?

विस्तार

कोरोना संक्रमण की वजह से आईसीयू, वेंटिलेटर या फिर ऑक्सीजन थैरेपी लेने के बाद ठीक हुए लोगों का जीवन कई चुनौतियों से घिरा हुआ है। रिकवर होने के चलते घर आने के बाद भी इन्हें शारीरिक तौर पर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। 

चिकित्सीय तौर पर इसे पोस्ट कोविड असर माना जाता है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इन दिनों ऐसे लोगों में दो अवस्था देखने को मिल रही हैं। एक वह लोग जो पहले से बीमार हैं और संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती हुए। यह लोग संक्रमण से ठीक होने के बाद पुरानी बीमारियों से परेशान हैं क्योंकि संक्रमण की वजह से इनका पुराना उपचार बाधित हुआ है। साथ ही प्रतिरक्षा तंत्र भी कमजोर हुआ। इसी तरह दूसरा वर्ग उन लोगों का है जिन्हें पुरानी बीमारी के बारे में नहीं पता था लेकिन संक्रमण से ठीक होने के कुछ समय बाद इनमें दिल, किडनी और ब्लॉकेज इत्यादि की परेशानियां देखने को मिल रही हैं। ऐसे लोगों में पोस्ट कोविड का असर एक साल बाद भी मिल रहा है। 

इन दोनों ही अवस्था पर दिल्ली एम्स, मैक्स साकेत और लोकनायक अस्पताल के चिकित्सीय अध्ययन मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित हुए हैं। इसी तरह के मामले दूसरे देशों में भी मिल रहे हैं। 

अमेरिकी डॉक्टरों ने इसकी जानकारी एक चिकित्सीय अध्ययन में की है जिसे हाल ही में मेडिकल जर्नल नेचरल मेडिसिन में प्रकाशित भी किया गया है।  

संक्रमण ने दिल कर दिया कमजोर

नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. राकेश यादव बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद पोस्ट कोविड का असर काफी गंभीर हुआ है। एम्स में अभी भी वे मरीज उपचार कराने आ रहे हैं जिन्हें पिछले साल डेल्टा वेरिएंट की वजह से कोविड हुआ था और उस दौरान उन्हें आईसीयू तक में रखना पड़ा था। डॉ. यादव ने कहा कि पिछले कुछ समय से ऐसे भी नए मरीज सामने आ रहे हैं जिनमें ब्लॉकेज की परेशानी है। ऐसे लोगों में कोरोना संक्रमण का इतिहास भी मिल रहा है। 

एक साल बाद तक मिला है असर

साकेत स्थित मैक्स अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. संदीप बुद्घिराजा बताते हैं कि पिछले वर्ष ही पोस्ट कोविड का असर जानने के लिए उनके यहां एक चिकित्सीय अध्ययन हुआ था। इसमें पता चला कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद एक वर्ष तक पोस्ट कोविड से जुड़ी परेशानियां लेकर लोग ओपीडी या फिर इमरजेंसी में भर्ती हुए हैं। चूंकि उस दौरान महामारी को आए करीब डेढ़ वर्ष पूरा हुआ था। ऐसे में यह भी आशंका है कि कोरोना से ठीक होने वालों में एक साल से भी अधिक समय तक दूसरी बीमारियों को लेकर जोखिम बना रहता है। 

ओमिक्रॉन के बारे में कुछ पता नहीं

सफदरजंग अस्पताल के डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि देश में अभी तक कोरोना की तीन लहर आई हैं। दूसरी लहर में डेल्टा वेरिएंट वजह बना था और अब ओमिक्रॉन आया। इस महामारी का सबसे बुरा असर डेल्टा वेरिएंट के रुप में हमने देखा है। उसी दौरान पोस्ट कोविड और बाकी परेशानियों को लेकर अध्ययन हुए हैं लेकिन ओमिक्रॉन के बारे में अभी कुछ पता नहीं है। आगामी दिनों में चिकित्सीय अध्ययनों के जरिए यह पता चलेगा कि ओमिक्रॉन संक्रमण की चपेट में आकर ठीक होने वालों का जीवन बाद में कैसा है?



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