Kailash Kher Exclusive: राम कृपा से मिला पहला ब्रेक, मुझे अपना छोटा बेटा मानती थीं रहमान साहब की मां


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7 जुलाई 1973 को उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में मेरा जन्म हुआ। एक तरह से संगीत विरासत में मिला। मेरे पिता मेहर सिंह खेर गांव में पूजा पाठ करवाते थे और मंदिरों में भजन गाया करते थे। ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ तो बचपन से ही यज्ञ हवन और पूजा पाठ देखता आया हूं। मेरे पिता जी मंदिरों में भजन कीर्तन गाया करते थे।

संगीत मैंने बचपन में उन्हीं से सीखा। उन दिनों फिल्मी गीत क्या होता था, मुझे पता ही नहीं था क्योंकि कभी फिल्मी गाने सुने ही नहीं। बचपन में गुरुकुल में रहा। शुरू से ही आध्यात्मिक माहौल में पला बढ़ा हूं। पत्राचार माध्यम से पढ़ाई की।

संगीत भारती, गंधर्व महाविद्यालय का भी छात्र रहा लेकिन मेरा मानना है कि संगीत एक ऐसी चीज है जो आपको कोई भी संस्थान नहीं सिखा सकता। संगीत जन्म से आता है, बस आपको उसे पालना पोसना आना चाहिए।

साधु संतों का आशीर्वाद 

दिल्ली में एक पारिवारिक मित्र मंजीत सिंह रहते थे। उनका एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का बिजनेस था। उनके साथ अपना बिजनेस शुरू किया, जिससे काफी नुकसान हुआ। उन दिनों मैं डिप्रेशन में भी चला गया। जिंदगी से तंग आकर सुसाइड करना चाहता था। इन सब से किसी तरह से निकलने के बाद पैसे कमाने सिंगापुर और थाईलैंड भी गया।

मन नहीं लगा तो छह महीने में वापस भी लौट आया। इस बार सीधे ऋषिकेश गया। यहां साधु-संतों संग संगत जमी। खूब गाना बजाना होने लगा। अपने मुंह कहना बड़ी बात होगी लेकिन मेरे गाने को सुनकर बड़ा से बड़ा संत झूम उठता था।

सबने आशीर्वाद दिया कि एक दिन मेरा सितारा जरूर बुलंद होगा। कोई आपके काम की तारीफ कर दे, इससे बढ़िया हौसला अफजाई दुनिया में दूसरी नहीं है। बस इसी हौसले को लेकर मैं मुंबई चला आया।

मुंबई का पहला झटका

ये बात ठीक 20 साल पहले की है। ऋषिकेश से मैं यहां  विले पार्ले स्थित एक संन्यास आश्रम का पता लेकर निकला था। ऋषिकेश के एक महामंडलेश्वर स्वामी ने ये पता दिया था तो मैं तो फुल कॉन्फिडेंस में था कि मुंबई में पैर रखने की जगह मिल गई फिर तो सब कुछ हो ही जाएगा। 

यहां आकर महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वर आनंद से मिला तो उन्होंने मेरे सपनों को हकीकत की जमीन पर ला दिया। बोले-

राम कृपा से राम ने दिया पहला ब्रेक

मुंबई मायानगरी है। इसलिए भी क्योंकि यहां बिना मेहनत के किसी को कुछ नहीं मिलता और मेहनत अगर आपने छोड़ी नहीं तो कामयाबी मिलनी पक्की है। मैंने भी यहां दिन रात खूब मेहनत की। खूब साउंड स्टूडियोज के चक्कर काटे। लेकिन आप मानेंगे नहीं ये उन दिनों की बात है जब कोई भी संगीतकार मुझसे मिलने तक को तैयार नहीं होता था।

लेकिन प्रभु राम की कृपा हुई और मेरी मुलाकात संगीतकार राम संपत से हो गई। उन्होंने मुझे यहां पहला ब्रेक एक विज्ञापन गीत गाने के लिए दिया। पहली कमाई मिली पांच हजार रुपये। मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी रकम थी। चेहरे पर पहली बार चिंता की रेखाएं कुछ कम हुईं। माता पिता का आशीर्वाद अब जाकर फलीभूत होना शुरू हुआ। इसके बाद विज्ञापन गीतों (ऐड जिंगल्स) की लाइन ही लग गई।

‘अल्लाह के बंदे’ ने दिलाई पहली बड़ी शोहरत

मुंबई में धीरे-धीरे मेरी आवाज को लोग पहचानने लगे थे। बात साल 2003 की है। संगीतकार विशाल शेखर फिल्म ‘वैसा भी होता है’ के लिए संगीत दे रहे थे।

विशाल का फोन आया तो मैंने पहले यही समझा कि विशाल भारद्वाज ने फोन किया है। खैर हम मिले। विशाल शेखर ने मुझसे ‘अल्लाह के बंदे’ गीत गवाया।  फिल्म तो नहीं चली लेकिन अकेले इस गाने ने घर-घर पहचान बना दी। 

इसके बाद ‘स्वदेस’ का गाना ‘यूं ही चला चल हो’ या ‘मंगल पांडे’ का गाना ‘मंगल मंगल हो’ सबने मेरी मदद की और सिलसिला चल निकला। इन दोनों फिल्मों में गुणी संगीतकार ए आर रहमान ने मेरी आवाज के साथ कामयाब प्रयोग किए। रहमान साहब की मां करीमा बेगम मुझे अपना छोटा बेटा मानती थीं। मैं जब भी उनके घर जाता वह अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाती थीं।

पहला सोलो अलबम ‘कैलासा’

थोड़ा पीछे जाकर अगर अपने संघर्ष के दिनों की कुछ बातें साझा करना चाहूं तो मेरा पहला अलबम साल 2006 में सोनी म्यूजिक कंपनी ने ‘कैलासा’ रिलीज किया। मैंने अपने संघर्ष के दिनों में कई म्यूजिक अलबम बनाए लेकिन उस समय कोई भी म्यूजिक कंपनी मेरे अलबम को रिलीज नहीं करना चाह रही था। और जैसे ही गाने हिट हुए तो यही कंपनियां मुझे बुला बुलाकर गाने देने लगीं।

गाने के वीडियो में भी मैं दिखा और मेरा मानना है कि किसी भी म्यूजिक वीडियो के सुर ताल और दृश्यों के बीच तारतम्यता बेहद जरूरी है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

विस्तार

7 जुलाई 1973 को उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में मेरा जन्म हुआ। एक तरह से संगीत विरासत में मिला। मेरे पिता मेहर सिंह खेर गांव में पूजा पाठ करवाते थे और मंदिरों में भजन गाया करते थे। ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ तो बचपन से ही यज्ञ हवन और पूजा पाठ देखता आया हूं। मेरे पिता जी मंदिरों में भजन कीर्तन गाया करते थे।

संगीत मैंने बचपन में उन्हीं से सीखा। उन दिनों फिल्मी गीत क्या होता था, मुझे पता ही नहीं था क्योंकि कभी फिल्मी गाने सुने ही नहीं। बचपन में गुरुकुल में रहा। शुरू से ही आध्यात्मिक माहौल में पला बढ़ा हूं। पत्राचार माध्यम से पढ़ाई की।

संगीत भारती, गंधर्व महाविद्यालय का भी छात्र रहा लेकिन मेरा मानना है कि संगीत एक ऐसी चीज है जो आपको कोई भी संस्थान नहीं सिखा सकता। संगीत जन्म से आता है, बस आपको उसे पालना पोसना आना चाहिए।

साधु संतों का आशीर्वाद 

दिल्ली में एक पारिवारिक मित्र मंजीत सिंह रहते थे। उनका एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का बिजनेस था। उनके साथ अपना बिजनेस शुरू किया, जिससे काफी नुकसान हुआ। उन दिनों मैं डिप्रेशन में भी चला गया। जिंदगी से तंग आकर सुसाइड करना चाहता था। इन सब से किसी तरह से निकलने के बाद पैसे कमाने सिंगापुर और थाईलैंड भी गया।

मन नहीं लगा तो छह महीने में वापस भी लौट आया। इस बार सीधे ऋषिकेश गया। यहां साधु-संतों संग संगत जमी। खूब गाना बजाना होने लगा। अपने मुंह कहना बड़ी बात होगी लेकिन मेरे गाने को सुनकर बड़ा से बड़ा संत झूम उठता था।

सबने आशीर्वाद दिया कि एक दिन मेरा सितारा जरूर बुलंद होगा। कोई आपके काम की तारीफ कर दे, इससे बढ़िया हौसला अफजाई दुनिया में दूसरी नहीं है। बस इसी हौसले को लेकर मैं मुंबई चला आया।

मुंबई का पहला झटका

ये बात ठीक 20 साल पहले की है। ऋषिकेश से मैं यहां  विले पार्ले स्थित एक संन्यास आश्रम का पता लेकर निकला था। ऋषिकेश के एक महामंडलेश्वर स्वामी ने ये पता दिया था तो मैं तो फुल कॉन्फिडेंस में था कि मुंबई में पैर रखने की जगह मिल गई फिर तो सब कुछ हो ही जाएगा। 

यहां आकर महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वर आनंद से मिला तो उन्होंने मेरे सपनों को हकीकत की जमीन पर ला दिया। बोले-

यहां तो रुकने की व्यवस्था नहीं हो पाएगी। अब मुंबई में रहने की जगह तलाशना भी कम संघर्ष नहीं है। वह भी तब जब जेब में ज्यादा पैसे न हों। एक सस्ते से लॉज में 50 रुपये प्रतिदिन पर रहना शुरू किया। आप समझ सकते हैं संघर्ष के दिनों में 50 रुपये क्या मायने रखते हैं, वह भी 20 साल पहले।


राम कृपा से राम ने दिया पहला ब्रेक

मुंबई मायानगरी है। इसलिए भी क्योंकि यहां बिना मेहनत के किसी को कुछ नहीं मिलता और मेहनत अगर आपने छोड़ी नहीं तो कामयाबी मिलनी पक्की है। मैंने भी यहां दिन रात खूब मेहनत की। खूब साउंड स्टूडियोज के चक्कर काटे। लेकिन आप मानेंगे नहीं ये उन दिनों की बात है जब कोई भी संगीतकार मुझसे मिलने तक को तैयार नहीं होता था।

लेकिन प्रभु राम की कृपा हुई और मेरी मुलाकात संगीतकार राम संपत से हो गई। उन्होंने मुझे यहां पहला ब्रेक एक विज्ञापन गीत गाने के लिए दिया। पहली कमाई मिली पांच हजार रुपये। मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी रकम थी। चेहरे पर पहली बार चिंता की रेखाएं कुछ कम हुईं। माता पिता का आशीर्वाद अब जाकर फलीभूत होना शुरू हुआ। इसके बाद विज्ञापन गीतों (ऐड जिंगल्स) की लाइन ही लग गई।



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