लता जी ‘यहीं रहीं’, इसे ऐसे ही पढ़िए, आज भी, आगे भी… क्योंकि हमारे पास एक चांद है, एक सूरज है, तो एक ही लता मंगेशकर हैं…


‘लता जी नहीं रहीं…’ इसे इस तरह मत पढ़िए. बल्कि ‘लता जी, यहीं रहीं…’ ऐसे पढ़िए. आज भी और आगे भी. क्योंकि लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) कोई ‘नहीं रहने वाला’ नाम नहीं है. बल्कि, ‘यहीं रहने वाला’ नाम है. शायद इसीलिए एक बार मशहूर शायर, गीतकार, लेखक जावेद अख्तर ने कहा था, ‘हमारे पास एक चांद है, एक सूरज है, तो एक लता मंगेशकर भी हैं.’ यानी जैसे चांद और सूरज शाश्वत हैं. वैसे ही, लता जी भी. तमाम मिसालें हैं इसकी, जो उनकी ऐसी शख्सियत को पुख्ता करती हैं. मसलन…

लता मंगेशकर, गुरुओं की सीख को गांठ बांधकर रखने वाली
लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की किताबी शिक्षा नहीं हुई. लेकिन उनकी संगीत शिक्षा छह साल की उम्र से शुरू होकर जीवन के आखिरी वक्त तक चली. बताते हैं कि उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने पहले-पहल उन्हें राग ‘पूरिया धनाश्री’ सिखाते हुए कहा था ‘जिस तरह कविता में शब्दों का अर्थ होता है, वैसे ही गीत में सुरों का मतलब होता है. गाते समय दोनों अर्थ उभरने चाहिए.’ उन्होंने एक और सीख दी, उसी समय, ‘गाते समय सोचो कि तुम्हें अपने पिता या गुरु से बेहतर गाना है.’ हमेशा रियाज करने और सीखते रहने की सीख तो जैसी सभी गुरु देते हैं, दी हीं.

इसी तरह, मशहूर संगीतकार और लता जी के शुरुआत गुरुओं में से एक गुलाम हैदर (Ghulam Haider) ने भी उन्हें सबक दिया, ‘लता, गाने के जो बोल हैं, उनको पहले समझो. इसके लिए तुम्हें थोड़ी हिंदी और उर्दू आनी चाहिए. जो नायिका का दुख है, उसे अपना समझो, जो उसकी खुशी है, वो महसूस करो. फिर देखो तुम्हारे गायन का कितना प्रभाव पड़ता है.’ लता जी ने ऐसी तमाम सीखें जिंदगीभर अपनी गांठ से बांधकर रखीं. ऐसे कि एक वक्त गाना छोड़ दिया, लेकिन रियाज नहीं छोड़ी. जहां से जो मिला, सीखना नहीं छोड़ा. किसी और के लिखे शब्दों के अर्थ को ऐसे उभारना भी नहीं छोड़ा कि वे आगे फिर उनके अपने होते गए.

लता मंगेशकर, और के लिखे शब्दों को अपना बना लेने वाली
लता मंगेशकर के व्यक्तित्व का अगला पहलू मशहूर शायर, गीतकार, लेखक गुलजार (Gulzar) बताते हैं, दो किस्सों से, ‘हम ‘घर’ के एक गाने की रिहर्सल पंचम (RD Burman) के साथ कर रहे थे. इस गीत ‘आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं’ में आगे आने वाली लाइन ‘आपकी बदमाशियों के ये नए अंदाज हैं’ के बारे में पंचम परेशान था. उसने मुझसे कहा, ‘शायरी में ‘बदमाशी’ कैसे चलेगी? ये लता दीदी गाने वाली हैं.’ मैंने कहा- तुम रखो, लता जी को पसंद नहीं आया तो हटा देंगे.’ लता जी से रिकॉर्डिंग के बाद पूछा ‘गाना ठीक लगा आपको? ‘हां अच्छा था.’ ‘वह बदमाशियों वाली लाइन?’ ‘अरे, वही तो अच्छा था इस गाने में. उसी शब्द ने तो कुछ अलग बनाया इस गाने को.’ लता जी का यह गाना ध्यान होगा, वहां गाते हुए वे खनकदार हंसी में बदमाशियों वाले शब्द का इस्तेमाल करती हैं और उसकी अभिव्यक्ति को और बढ़ा देती हैं. ऐसे ही एक बार ‘देवदास’ (Devdas) के एक गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त मेरे गीत में आई हुई पंक्ति ‘सरौली से मीठी लागे’ के बारे में वे बोलीं, ‘ये सरौली क्या है?’ ‘सरौली एक आम है, बहुत सुर्ख होता है, हम बचपन में उसे चूस-चूस कर खाते थे. क्या गाने से इसे निकाल दूं’, मैंने पूछा. ‘अरे नहीं! इसे ऐसे ही रहने दीजिए, मैं बस इसलिए पूछ रही हूं कि जानना चाहती थी कि इसकी मिठास कितनी होती है.’

लता मंगेशकर, संघर्ष और साधना का हर पड़ाव पार करने वाली
लता जी (Lata Mangeshkar) के संघर्ष की शुरुआत हुई 12-13 साल की उम्र से, जब उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर निधन होता है. उसके बाद सबसे बड़ी होने के नाते तीन छोटी बहनों- मीना, आशा, ऊषा और सबसे छोटे भाई ह्रदयनाथ सहित परिवार की जिम्मेदारी लता के कंधों पर आ जाती है. यह संघर्ष आगे भी जारी रहा. इसके साथ साधना भी. वह भी ऐसी कि इनके गुरुओं को इन पर अपने से ज्यादा भरोसा हो चला. एक किस्सा है इसका भी. लता जी अपने काम की जरूरतों को देखते हुए इंदौर, मध्य प्रदेश से परिवार सहित मुंबई आ गईं थीं. वहां हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के भिंडीबाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान से गायिकी की शिक्षा ले रहीं थीं. तभी वहीं, उन पर गुलाम हैदर की नजर पड़ी. उन्होंने लता की प्रतिभा पहचान ली. उन्हें गाने के मौके दिए और दिलवाए भी. उस वक्त शशधर मुखर्जी ‘शहीद’ फिल्म बना रहे थे. गुलाम हैदर चाहते थे कि वे इसमें लता को गाने का मौका दें. पर मुखर्जी ने यह कहते हुए लता को गवाने से मना कर दिया कि ‘आवाज बहुत पतली’ है. गुलाम हैदर (Ghulam Haider) नाराज़ हो गए. चुनौती दे आए, ‘एक वक्त आएगा, जब तुम्हारे जैसे संगीतकार इस लड़की (लता) के पैरों पर गिरकर इससे अपनी फिल्मों में गाने की गुजारिश करेंगे.’

गुलाम हैदर की बात सच हुई. उनकी ही 1948 में आई फिल्म ‘मजबूर’ में लता का गाया गीत ‘दिल मेरा तोड़ा, ओ मुझे कहीं का न छोड़ा’ हिट हो गया. सफलता का पहला मील का पत्थर. उसी समय एक और फिल्म आई ‘महल.’ इसके एक गीत ‘आएगा आने वाला’ की रिकॉर्डिंग के बारे में लता जी ने खुद एक बार बताया, ‘इसकी रिकॉर्डिंग के दौरान माइक्रोफोन कमरे के बीच में रखा था. मुझे कमरे के एक कोने से गाते हुए माइक तक पहुंचना था. ताकि दूर से पास आती आवाज का सही इफेक्ट मिल सके. गाने और माइक तक पहुंचने की टाइमिंग इतनी सटीक रखी थी कि माइक के पास पहुंचने तक मुखड़ा शुरू हो जाए. करीब 22-23 की कोशिश के बाद इसकी सही रिकॉर्डिंग हो पाई.’

ऐसी संघर्ष-साधना ने महज दो साल के भीतर ही 1950 तक लता जी को फिल्म संगीत के ऊंचे पायदान पर ला खड़ा किया. उसके बाद शशधर मुखर्जी भी लता के पास लौटे और उनके जैसे न जाने कितने फिल्मकार-संगीतकार भी. वह सब इतिहास है.

लता मंगेशकर, दिग्गजों को भी सजदे में झुका लेने वाली
लता जी की शालीनता, उनकी विनम्रता अपने आप में मिसाल है. लेकिन उनकी खुद से बनाई शख्सियत इतनी बड़ी है कि बड़े से बड़ा दिग्गज भी उसके सजदे में झुक जाए तो अचरज क्या. मिसालें हैं इसकी भी. जैसे- लता जी की इच्छा रही हमेशा से कि वे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद बड़े गुलाम अली से सीख पातीं. लेकिन बड़े गुलाम अली? कहते हैं कि वे एक बार रियाज कर रहे थे. तभी लता जी का गाना उनके कानों में पड़ा. अपनी रियाज रोक दी. ध्यान से लता जी का गाना पूरा सुना और फिर बोले, ‘कमबख्त, कहीं बेसुरी नहीं होती.’

ऐसे ही पंडित कुमार गंधर्व. बताते हैं कि उन्होंने एक बार पूरा लेख लता जी की गायकी के बारे में लिखा. इसमें वे लिखते हैं, ‘जिस कण या मुरकी को कंठ से निकालने में अन्य गायक-गायिकाएं आकाश-पाताल एक कर देते हैं, उसी कण, मुरकी, तान या लयकारी का सूक्ष्म भेद वह (Lata Mangeshkar) सहज करके फेंक देती हैं.’

इस क्रम में गुलजार याद करते हैं, ‘सलिल दा (Musician Salil Chowdhary) जटिल धुनों को बनाने में माहिर थे. उन्होंने एक बार ‘ओ…सजना बरखा बहार आई’ गाने की ऐसी ही एक जटिल धुन बनाई. लेकिन लता जी तो जैसे बड़ी सहजता से इस पर से टहलती हुईं निकल गईं.’

विश्व प्रसिद्ध वायलिन वादक यहूदी मेन्युहिन (Yehudi Menuhin) को संगीत से ताल्लुक रखने वाला कौन नहीं जानता होगा. वे कहा करते थे, ‘काश! मेरी वायलिन आपकी गायिकी की तरह बज पाती.’

लता मंगेशकर, सरोकारों से भी सरोकार रखने वाली
साल 1963 के दशक का किस्सा. जनवरी की 27 तारीख. जगह दिल्ली का रामलीला मैदान. भारत-चीन के बीच हुए 1962 के युद्ध के बाद पहला बड़ा आयोजन. कवि प्रदीप ने इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को अपने गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ के जरिए शब्द-श्रद्धांजलि दी. इसे गाने के लिए दिल्ली के आयोजन में लता जी को बुलाया गया. वे शुरू में झिझकीं. पर मसला राष्ट्र से जुड़ा था, इसलिए तैयारी का वक्त कम मिलने के बावजूद गईं और गाया भी. इस तरह कि उनकी आवाज में गीत सुनकर एकबार पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखें भी भीग गईं.

इसके करीब 10 साल बाद 1983 का वाकया. पहली बार क्रिकेट का विश्वकप जीतकर आई भारतीय टीम के सदस्यों का सम्मान किया जाना था. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के पास उस वक्त उतना धन नहीं होता था. इसलिए बीसीसीआई ने राजसिंह डूंगरपुर (Raj Singh Dungarpur) के जरिए लता जी संपर्क किया. ताकि उनसे कोई मदद मिल सके. वे एक बार में ही तैयार हो गईं. उन्होंने उसी साल 17 अगस्त को दिल्ली में एक संगीत कार्यक्रम किया. इसके जरिए भारतीय टीम के लिए 20 लाख रुपए का फंड जुटाकर दे दिया.  ऐसे ही. बताते हैं कि विदेश में पहली बार 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में लता जी ने अपनी प्रस्तुति मात्र इसलिए दी कि विदेश में नेहरू सेंटर की गतिविधियों के लिए धन जुटा सकें.

गायकों के लिए गानों की रॉयल्टी का मसला भी ऐसे ही सरोकारों से जुड़ा. लता जी ने जब यह मुहिम छेड़ी तो संगीत कंपनियों और संगीतकारों ने काफी विरोध किया. यहां तक कि मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi) जैसे उस दौर के बड़े गायक ने भी उनका साथ नहीं दिया. इस पर दोनों का झगड़ा भी हुआ. करीब चार साल तक दोनों ने साथ गाना नहीं गाया. यह बात 1963 से 1967 के बीच की है. लेकिन अंत में चूंकि मकसद लता जी (Lata Mangeshkar) पाक-साफ, इसलिए हाथ भी उनका ही ऊपर रहा. गायकों के साथ गीतकारों को भी रॉयल्टी (मुनाफे में से हिस्सा) मिलना सुनिश्चित हुआ और लता-रफी का साथ भी.

गीतों में शाब्दिक-शुचिता से भी उनका सरोकार रहा, हमेशा. कितना, इसे बयां करता एक वाकया 70 के दशक का है. संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ फिल्म ‘आंखों आंखों में’ के एक गीत की रिकार्डिंग थी. इसकी एक पंक्ति में ‘चोली’ शब्द था. इस पर आपत्ति जताते हुए लता जी ने इसे गाने से मना कर दिया. तब फिल्म निर्माता जे ओमप्रकाश ने गाने के बोल ही बदलवा दिए.

गीत के बोलों के बारे लता जी हमेशा कहतीं, ‘संगीत अश्लील नहीं होता, शब्द अश्लील होते हैं.’ और इसीलिए गुलजार जैसे गीतकार कहते हैं, ‘लता जी के लिए गीत लिखते हुए हमेशा यही लगता है कि कोई सिमली (रूपक) अगर जेहन में है, तो लता जी उस पर किस तरह रिएक्ट करेंगी.’

लता मंगेशकर, रिश्तों के लिए ‘खुदी’ को भी दांव पर लगाने वाली
बहुत छोटी रही होंगी लता जी. छोटी बहन आशा को साथ लेकर स्कूल चली गईं. शिक्षक ने उन्हें डांट दिया. बहन को साथ लाने से मना कर दिया. लता जी ने बहन का हाथ छोड़ने के बजाय स्कूल छोड़ दिया. फिर कभी उस तरफ रुख नहीं किया, जहां उनके रिश्तों की कद्र न हो.

ऐसे ही, भालजी पेंढारकर मराठी फ़िल्मों के बड़े निर्माता-निर्देशक. लता जी के पिता दीनानाथ जी के नजदीकी मित्र. वे एक बार शिवाजी महाराज की ऐतिहासिक कथा पर ‘मोहित्यांची मंजुला’ नाम की फ़िल्म बना रहे थे. उन्होंने अपनी पसंद के संगीत निर्देशकों से संपर्क किया. मगर उस वक़्त सभी कहीं-न-कहीं व्यस्त थे. भालजी पेंढारकर इस फ़िल्म का निर्माण संगीत निर्देशकों के खाली होने तक रोक नहीं सकते थे. तब लता जी ने सुझाव दिया कि वे संगीत बनाने में सहयोग कर सकती हैं. उस समय तक गायकी में लता जी का नाम हो चुका था. भाल जी को लगा कि अगर फिल्म चली नहीं, तो नाहक ही लता जी का नाम खराब हो जाएगा. उन्होंने मना कर दिया. तब लता जी ने दूसरा सुझाव दिया- अगर वे किसी और नाम से संगीत दें तो? यह बात लता जी के ‘भालजी बाबा’ को जम गई. फिर मराठी के ही संत रामदास की कविता से निकालकर एक शब्द चुना गया ‘आनंदघन.’ यह आगे चलकर ‘संगीतकार लता मंगेशकर’ का नाम हो गया. यानी रिश्तों के लिए ओढ़ी गई नई पहचान.

लता मंगेशकर, रिश्तों में रहकर भी मर्यादा न लांघने वाली
रिश्तों में रहकर मर्यादाएं कैसे निभाई जाती हैं, इसके भी किस्से लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की जिंदगी में हैं. मसलन, क्रिकेटर राजसिंह डूंगरपुर, उनके दिल के बहुत करीब आ गए थे. वे लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर के करीबी दोस्त थे. डूंगरपुर, राजस्थान के तत्कालीन राजा महारावल लक्ष्मण सिंह के सबसे छोटे बेटे. राजसिंह और लता जी की नजदीकियां जब बढ़ीं, तो दोनों ने शादी करने का फैसला किया. राजसिंह ने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया. लेकिन उनके पिता लक्ष्मण सिंह ने साफ इंकार कर दिया. कहा, ‘लड़की शाही परिवार से नहीं है. हम अपने बेटे की शादी एक आम लड़की से नहीं करने दे सकते.’ राजसिंह और लता जी ने उनकी इस भावना का सम्मान किया और अपनी भावनाओं का भी. दोनों ने फिर कभी शादी नहीं की.

इसी तरह, असमिया गायक भूपेन हजारिका के साथ लता जी के संबंध का मामला एक बार सुर्खियों में आया. भूपेन हजारिका की पत्नी प्रियंबदा ने आरोप लगाए कि उनका उनके पति से संबंध-विच्छेद लता मंगेशकर की वजह से हुआ. लता जी को इन आरोपों पर गुस्सा आया. लेकिन उन्होंने फिर भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी.

लता जी के लिए बाला साहेब ठाकरे जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व हमेशा, बस, पिता की तरह रहा. और सचिन तेंदुलकर पुत्र के जैसे, जिसकी फरमाइश पर उन्होंने एक बार गाया, ‘तू जहां-जहां रहेगा, मेरा साया साथ होगा.’ इसी तरह, संगीतकार मदन मोहन उनके राखी-भाई थे. एक किस्सा है, उनका भी. मदन मोहन एक बार लता जी के घर पहुंचे, उस दिन रक्षाबंधन था. मदन मोहन इस बात से बेहद दुखी थे कि उनकी पहली फिल्म में लता नहीं थीं. तब लता जी ने उन्हें दिलासा दी. उन्हें राखी बांधी और वादा किया कि आज से अपने भाई की हर फिल्म में वे गाएंगी. बताते हैं कि मदन मोहन के निधन के बाद उनके संगीत वाली एक फिर 2004 में आई थी, ‘वीर-जारा’. इसके सारे गाने लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने ही गाए

थे.

ऐसी लता जी के लिए ही शायद गुलजार ने लिखा होगा, ‘नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा। मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे..’ पर याद क्यूं नहीं रहेगा, भला? लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar), क्या कोई गुम हो जाने वाला नाम है? खबरें बताने वाले प्रस्तोता आज कह रहे हैं, ‘हम जाने वाले को वापस ला नहीं सकते.’ मगर सवाल ये कि जिसे वे ‘जाने वाला’ कह रहे हैं, क्या वह गया भी है? क्योंकि लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) तो एक नाम है, गंधर्व-लोक से उतरी आवाज का भी. यह आवाज हमारे बीच कल से आज तक रही. और आज से अनंत तक रहने वाली है. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar), सुर-संगीत का भी नाम है. ये सुर, यह संगीत भी, जन्म से मृत्यु तक हमारे संग है. सृष्टि के हर कण में है. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) नाम है, संघर्ष और साधना का, जो सबका अपना और अपने स्तर का होता है. अनुशासन, अथक परिश्रम, सरोकार, शालीनता, सह्रदयता, राष्ट्रीय भावना, क्रिकेट और खान-पान के शौक. ऐसी न जाने कितनी चीजें गिन सकते हैं, जो जब-जब हमारे सामने होंगी, हमें उनमें लता जी दिखेंगी. इसीलिए, यह कहना ठीक नहीं लगता कि ‘लता जी नहीं रहीं’. बल्कि, ये ज्यादा मुफीद बैठता है कि ‘लता जी यहीं रहीं’ हमेशा… हमेशा के लिए.

Tags: Hindi news, Lata Mangeshkar



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