लॉर्ड मैकाले का वो स्मरण-पत्र जिसने बदल दी भारत की शिक्षा नीति


क्‍या आपने कभी सोचा है कि भारत के लोग यूके की अंग्रेजी का उपयोग क्यों करते हैं? और इसे किसने शुरू किया? वह व्‍यक्ति हैं थॉमस बैबिंगटन, जिसे लॉर्ड मैकाले (Lord Macaulay) के नाम से भी जाना जाता है। इन्‍हें भारत में अंग्रेजी भाषा और भारतीय शिक्षा का जनक माना जाता है। लॉर्ड मैकाले एक सुयोग्य शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ एवं कुशल प्रशासक थे। इन्‍होंने 10 जून, 1834 को गवर्नर जनरल की काउंसिल के कानूनी सदस्य के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया था। उस समय के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने उनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उन्हें लोक शिक्षा समिति का सभापति नियुक्त कर दिया।

इनका कार्य प्राच्यवादी (oriental literature) तथा पाश्चात्यवादी (westernist) विवाद पर मध्यस्थता करना था। इसी समस्या की कानूनी सलाह के लिए 2 फरवरी, 1835 को लॉर्ड मैकाले ने अपना प्रसिद्ध स्मरण-पत्र (Minute) गवर्नर जनरल की परिषद के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसे गवर्नर विलियम बैंटिक ने स्वीकार करते हुए अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम, 1835 पारित किया। इसने भारत में आधुनिक ब्रिटिश शिक्षा की नींव रखी।

मैकाले के विवरण पत्र का प्रमुख अंश

– इस स्मरण-पत्र (Minute) में पाश्चात्य शिक्षा का समर्थन करते हुए यह प्रावधान किया गया कि, सरकार के सीमित संसाधनों का प्रयोग पश्चिमी विज्ञान तथा साहित्य के अंग्रेजी में अध्यापन हेतु किया जाए।

– सरकार स्कूल तथा कॉलेज स्तर पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी करे तथा इसके विकास के लिये कई प्राथमिक विद्यालयों के स्थान पर कुछ स्कूल तथा कॉलेज खोले जाएं।

– मैकाले ने इसके तहत ‘अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत’ (Downward Filtration Theory) दिया। जिसके तहत, भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था। जिससे, एक ऐसा वर्ग तैयार हो, जो रंग और खून से भारतीय हो, लेकिन विचारों और नैतिकता में ब्रिटिश हो। यह वर्ग सरकार तथा आम जनता के मध्य एक कड़ी की तरह कार्य करे।

– मैकाले ने माना कि, अरबी और संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी अधिक उपयोगी और व्यवहारिक है। जिस प्रकार लैटिन एवं यूनानी भाषाओं से इंग्लैंड में और पश्चिम यूरोप की भाषाओं के रूप में पुनरुत्थान हुआ, उसी प्रकार अंग्रेजी से भारत में होना चाहिए।

मैकाले का विवरण पत्र से भारत को होने वाला नुकसान

– मैकाले ने अपने विवरण पत्र से अंग्रेजी द्वारा पाश्चात्य सभ्यता को इस देश पर थोपने का प्रयास किया, जिससे हम अपनी भारतीय सभ्यता और संस्कृति को तिरस्कृत दृष्टि से देखें और हमें हीन भावना व्याप्त हो।

– मैकाले ने भारतीय भाषाओं को अविकसित और बेकार बताते हुए अपमान किया, फलस्वरूप भारतीय भाषाओं का विकास रुक गया।

– मैकाले ने प्राच्य साहित्य की आलोचना करते हुए कहा था कि, भारतीय संस्कृति और साहित्य की क्षमता यूरोप की किसी एक पुस्तकालय की एक अलमारी के बराबर है। यह मानकर मैकाले ने भारतीय संस्कृति तथा धर्म की महानता व सहिष्णुता का अपमान किया है।

– मैकाले खुले तौर पर धार्मिक तटस्थता की नीति का दावा करते थे, लेकिन उसकी आंतरिक नीति का खुलासा वर्ष 1836 में अपने पिता को लिखे एक पत्र से होता है। जिसमें मैकाले ने लिखा है कि,”मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा की यह नीति सफल हो जाती है तो 30 वर्ष के अंदर बंगाल के उच्च घराने में एक भी मूर्तिपूजक नहीं बचेगा।”

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मैकाले के विवरण पत्र का भारतीय शिक्षा पर प्रभाव

आज के भारतीय शिक्षा की नींव मैकाले के विवरण पत्र 1835 के प्रभाव में पड़ा। भारतीय शिक्षा पर तत्कालीन प्रभाव निम्नलिखित था –

– भारत में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और महाविद्यालय खुलने शुरू हो गए। यह शिक्षा प्रणाली हमारे देश की मूल प्रणाली बन गई। आज भी हमारी शिक्षा इसी माध्यम पर आधारित है।

– अंग्रेजी को सरकारी कार्यों की भाषा घोषित कर दिया गया। मैकाले ने अंग्रेजी भाषा के पक्ष में इतने ठोस सुझाव दिए थे कि, अंग्रेजी भाषा का महत्व बढ़ गया।

– सरकार ने एक आदेश पत्र जारी किया, जिसमें निर्देश दिया गया कि, सरकारी नौकरी में अंग्रेजी का ज्ञान रखने वालों को वरीयता दी जाएगी।

– मैकाले की नीति को जहां एक तरफ लाभकारी माना जाता है, वहीं इससे भारतीय भाषाओं के विकास पर बहुत ही नकारात्‍मक प्रभाव पड़ा। हालांकि, कहा जा सकता है, कि आज के भारतीय शिक्षा के जनक मैकाले ही हैं।

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