Maharashtra Political Crisis : विधानसभा उपाध्यक्ष के हाथों में अब उद्धव सरकार का भविष्य, कई विकल्पों पर विचार के बाद होगा फैसला


हिमांशु मिश्र, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Sat, 25 Jun 2022 06:00 AM IST

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महाराष्ट्र में जारी महासंग्राम के बीच अब सबकी निगाहें विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि झिरवाल के भावी रुख पर टिक गई हैं। दरअसल इस पूरे विवाद का निपटारा उन्हें ही करना है। झिरवाल ने अगर एकनाथ शिंदे के अगुवाई वाले बागी विधायकों के समूह को अलग गुट के रूप में मान्यता दे दी तो राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार इतिहास बन जाएगी।

सीएम ठाकरे के लिए भी अपनी पार्टी बचाना मुश्किल हो जाएगा। इसके उलट अगर झिरवाल ने बागी विधायकों के समूह को अलग गुट के रूप में मान्यता नहीं दी तो पूरा मामला अदालती खींचतान में उलझेगा। दिलचस्प तथ्य यह है कि देश के अलग-अलग राज्यों में विधायकों के बागी बनने के कारण कई बार राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बनी है।

हर बार इससे जुड़ी गुत्थी को सुलझाने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष ने निभाई है। पहली बार विधानसभा अध्यक्ष की जगह उपाध्यक्ष की भूमिका सर्वोपरि होगी। वह इसलिए कि नाना पटोले के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद विस अध्यक्ष पद से दिए गए इस्तीफे के कारण झिरवाल ही सदन संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

नरहरि के पास कई विकल्प
विधानसभा उपाध्यक्ष सबसे पहले यह तय करेंगे कि बागी विधायकों के समूह को अलग गुट के रूप में मान्यता दें या उद्धव की मांग के अनुरूप चुनिंदा विधायकों पर कार्रवाई करते हुए चौधरी को सदन का नेता घोषित कर दें। पहली स्थिति में बागी विधायकों को अलग गुट के रूप में मान्यता मिलते ही उद्धव सरकार अल्पमत में आ जाएगी। इसके इतर अगर चुनिंदा विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की तो बागी गुट इस तथ्य के साथ अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

शिंदे गुट ने 37 विधायकों के समर्थन का दावा किया
शिंदे गुट ने उपाध्यक्ष को पत्र लिख कर 37 विधायकों के समर्थन का दावा किया है। यह संख्या शिवसेना के कुल 55 विधायकों का दो तिहाई है। इस गुट ने शिंदे को अपना नेता बताते हुए भरत गोगोवले को मुख्य सचेतक के रूप में मान्यता देने की मांग की है। ठाकरे ने पत्र लिख कर 18 बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ अजय चौधरी को सदन का नेता बनाने की मांग की है।

विश्वास-अविश्वास प्रस्ताव पर चुप्पी
दूसरी स्थिति में भाजपा या बागी गुट राज्यपाल की शरण में जा कर उनसे उद्धव सरकार को बहुमत साबित करने का निर्देश देने की गुहार लगा सकता है। या फिर विधानसभा में भाजपा या विरोधी गुट सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है।

ऑडियो क्लिप में भाजपा सरकार बनने का दावा
सियासी घमासान के बीच एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ है, जिसमें सूबे में जल्द भाजपा सरकार बनने का दावा किया जा रहा है। क्लिप में शिवसेना के बागी विधायक शहाजीबापू पाटिल और एक कार्यकर्ता के बीच बातचीत का दावा किया गया है। क्लिप में पाटिल कह रहे हैं, सब कुछ तय हो चुका है। देवेंद्र फडणवीस सीएम और एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री बनेंगे। हमने करीब-करीब लड़ाई जीत ली है। हमारे साथ 7 मंत्रियों सहित कुल 40 विधायक हैं।

विस्तार

महाराष्ट्र में जारी महासंग्राम के बीच अब सबकी निगाहें विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि झिरवाल के भावी रुख पर टिक गई हैं। दरअसल इस पूरे विवाद का निपटारा उन्हें ही करना है। झिरवाल ने अगर एकनाथ शिंदे के अगुवाई वाले बागी विधायकों के समूह को अलग गुट के रूप में मान्यता दे दी तो राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार इतिहास बन जाएगी।

सीएम ठाकरे के लिए भी अपनी पार्टी बचाना मुश्किल हो जाएगा। इसके उलट अगर झिरवाल ने बागी विधायकों के समूह को अलग गुट के रूप में मान्यता नहीं दी तो पूरा मामला अदालती खींचतान में उलझेगा। दिलचस्प तथ्य यह है कि देश के अलग-अलग राज्यों में विधायकों के बागी बनने के कारण कई बार राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बनी है।

हर बार इससे जुड़ी गुत्थी को सुलझाने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष ने निभाई है। पहली बार विधानसभा अध्यक्ष की जगह उपाध्यक्ष की भूमिका सर्वोपरि होगी। वह इसलिए कि नाना पटोले के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद विस अध्यक्ष पद से दिए गए इस्तीफे के कारण झिरवाल ही सदन संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

नरहरि के पास कई विकल्प

विधानसभा उपाध्यक्ष सबसे पहले यह तय करेंगे कि बागी विधायकों के समूह को अलग गुट के रूप में मान्यता दें या उद्धव की मांग के अनुरूप चुनिंदा विधायकों पर कार्रवाई करते हुए चौधरी को सदन का नेता घोषित कर दें। पहली स्थिति में बागी विधायकों को अलग गुट के रूप में मान्यता मिलते ही उद्धव सरकार अल्पमत में आ जाएगी। इसके इतर अगर चुनिंदा विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की तो बागी गुट इस तथ्य के साथ अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।



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