महाराष्ट्र सियासत: एक म्यान की दो तलवारें..! क्यों अनफ़िट हुए उद्धव ठाकरे?


ख़बर सुनें

उद्धव की असहज उप-‘स्थिति’!

अंग्रेजी में एक कहावत है, जिसका अर्थ है – समान रुचियों वाले या समान प्रकार के लोग,  समूह बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं। बाल ठाकरे की प्रवृत्ति, विचार और नीति में कोई अंतर नहीं था। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कई मुद्दों पर उनकी असहमति भी हुई, मगर शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने बीजेपी की प्रवृत्ति, विचार और नीति को बड़ा स्थान दिया।

साल 2000 के दशक में लोग कहते थे-

बाल ठाकरे की प्रवृत्ति और उद्धव ठाकरे की प्रवृत्ति में कोई मेल नहीं दिखा। उद्धव ठाकरे का चेहरा सॉफ्ट हिन्दुत्व की छवि में भी फिट नहीं बैठ पाया। वह सही पार्टी में गलत या एक अन-फिट नेता की तरह ही दिखाई दिए। हालांकि कई बार अपनी रैलियों में उन्होंने ऊंची आवाज में गर्जना करने की कोशिशें भी कीं – मगर फिर वही हुआ – उनके सौम्य व्यक्तित्व पर ऊंची आवाज कभी रास ही नहीं आई।

वहीं दूसरी तरफ उनके चचेरे भाई राज ठाकरे आवाज-अंदाज के लिहाज से बाल ठाकरे जैसे दिखे। मगर राज और उद्धव दोनों में एक समानता भी है। राजनीति, पार्टी और सत्ता चलाने का अनुभव इन दोनों में ही कम है।

बाल ठाकरे के दौर में भी राजनीतिक फैसलों के लिए शिवसेना सरकार बीजेपी नेताओं की बात को गंभीरता से लेती थी। प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे दोनों की महाराष्ट्र के राजनीतिक फैसलों में अहम भूमिका निभाते रहे। हालांकि तब मुख्यमंत्री भी शिवसेना का हुआ करता था।
 

 

चाल, चेहरा और चरित्र की समझ

उद्धव ठाकरे ने अपनी ढाई साल पुरानी सरकार खोई, विधायक खोए और यहां तक कि अपने कैबिनेट मंत्री भी खोए। उद्धव ने अपने राजनीतिक फैसलों के लिए शरद पवार में गुरु पा लिया। हालांकि सभी जानते हैं कि शरद पवार और बाल ठाकरे में भी गाढ़ी दोस्ती थी। मगर बाल ठाकरे की प्रवृत्ति शरद पवार से अलग थी और उनकी अपनी बुद्धि भी थी।

बीजेपी के साथ 2019 का महाराष्ट्र चुनाव जीतने के बावजूद उद्धव ने बीजेपी की बजाए एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन एक बात वह समझ नहीं पाए।

शिवसेना का चाल, चरित्र और चेहरा – तीनों हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा से आता है। मोदी की बीजेपी का चाल, चरित्र और चेहरा भी हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद से आता है। बीजेपी और शिवसेना एक म्यान में दो तलवारों की तरह हैं, एक ही लोहे से बने और एक जैसे ही धारदार।

लेकिन बाल ठाकरे और वाजपेयी इतने समझदार थे कि वह जानते थे कि यह दुनिया की एक मात्र ऐसी दो तलवारें हैं जो सिर्फ एक ही म्यान में रहने के लिए बनी हैं। उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की यह तलवार साझा म्यान से निकाल कर अपने ही पैर मारी।

अब नतीजा सामने है – मगर भविष्य खत्म नहीं हुआ है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

विस्तार

उद्धव की असहज उप-‘स्थिति’!

अंग्रेजी में एक कहावत है, जिसका अर्थ है – समान रुचियों वाले या समान प्रकार के लोग,  समूह बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं। बाल ठाकरे की प्रवृत्ति, विचार और नीति में कोई अंतर नहीं था। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कई मुद्दों पर उनकी असहमति भी हुई, मगर शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने बीजेपी की प्रवृत्ति, विचार और नीति को बड़ा स्थान दिया।


साल 2000 के दशक में लोग कहते थे-

वाजपेयी, एक गलत पार्टी में सही इंसान हैं। ऐसा इसलिए भी कहा जाता रहा क्योंकि वाजपेयी को हमेशा एक सॉफ्ट हिंदुत्व वाला चेहरा माना गया।


बाल ठाकरे की प्रवृत्ति और उद्धव ठाकरे की प्रवृत्ति में कोई मेल नहीं दिखा। उद्धव ठाकरे का चेहरा सॉफ्ट हिन्दुत्व की छवि में भी फिट नहीं बैठ पाया। वह सही पार्टी में गलत या एक अन-फिट नेता की तरह ही दिखाई दिए। हालांकि कई बार अपनी रैलियों में उन्होंने ऊंची आवाज में गर्जना करने की कोशिशें भी कीं – मगर फिर वही हुआ – उनके सौम्य व्यक्तित्व पर ऊंची आवाज कभी रास ही नहीं आई।

वहीं दूसरी तरफ उनके चचेरे भाई राज ठाकरे आवाज-अंदाज के लिहाज से बाल ठाकरे जैसे दिखे। मगर राज और उद्धव दोनों में एक समानता भी है। राजनीति, पार्टी और सत्ता चलाने का अनुभव इन दोनों में ही कम है।

बाल ठाकरे के दौर में भी राजनीतिक फैसलों के लिए शिवसेना सरकार बीजेपी नेताओं की बात को गंभीरता से लेती थी। प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे दोनों की महाराष्ट्र के राजनीतिक फैसलों में अहम भूमिका निभाते रहे। हालांकि तब मुख्यमंत्री भी शिवसेना का हुआ करता था।

 

बाल ठाकरे भी अटल बिहारी वाजपेयी और प्रमोद महाजन के राजनीतिक कौशल को स्वीकार करते थे। कुछ मुद्दों पर अपनी स्थिति साफ करने के बावजूद शिवसेना और बाल ठाकरे का चित्त बीजेपी की प्रवृत्ति से मिलता था। बाल ठाकरे इस बात को अच्छी तरह समझते थे। यह उनके राजनीतिक कौशल का भी नमूना था। वह जानते थे कि निभेगी तो बीजेपी के साथ ही।

 



Source link

Enable Notifications OK No thanks