Maharashtra: ठाणे के ही एक और शिंदे ने भी की थी शिवसेना में बगावत, लेकिन राज ठाकरे के सिवा कोई बागी नहीं बना पाया पार्टी


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महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी विधायक और मंत्री एकनाथ शिंदे एक ऐसे नेता के तौर पर सामने आए हैं, जो शिवसेना से बगावत के चलते पूरे देश में चर्चित हो गए हैं। लेकिन एकनाथ शिंदे से पहले भी एक और शिंदे शिवसेना में बाला साहब के राज में बगावत कर चुके थे। यह शिंदे भी एकनाथ शिंदे की तरह ठाणे से ही ताल्लुक रखते थे। महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों के मुताबिक शिवसेना से बगावत करने वालों में नेता तो कई शामिल रहे। लेकिन राज ठाकरे एक ऐसे नेता रहे जो बागी होने के बाद अपनी पार्टी बनाने और बचाकर चलाने में कामयाब रहे। बाकी कोई भी नेता अपनी अलग पार्टी नहीं बना सका। ज्यादातर नेता किसी दूसरी पार्टी के साथ होकर अपना राजनीतिक सफर आगे बढ़ाने लगे।

मारोतराव शिंदे ने की थी बगावत

महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र शितोले कहते हैं कि शिवसेना में बगावत कोई नई नहीं है। वे कहते हैं कि शिवसेना जब अपने शुरुआती दौर में पूरे महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे की अगुवाई में एकछत्र राज्य करने की ओर बढ़ रही थी तो 1970 में इसी ठाणे से एकनाथ शिंदे की तरह एक और शिंदे जिनका नाम मारोतराव शिंदे था वह भी बागी हो गए थे। शितोले कहते हैं दरअसल बगावत की है कहानी तब लिखी गई जब शिवसेना की स्थापना को महज एक साल ही हुआ था। शिवसेना की स्थापना के कुछ समय बाद ठाणे नगर पालिका का चुनाव होना था। और उस चुनाव में शिवसेना ने ठाणे के कद्दावर नेता मारोतराव शिंदे पर दांव लगा कर नगर पालिका का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की। शितोले कहते हैं उस दौरान कुछ ऐसी राजनैतिक उठापटक हुई कि शिंदे को शिवसेना से बगावत करनी पड़ी और शिंदे कांग्रेस की मदद से ठाणे के नगर पालिका अध्यक्ष बनाए गए। वरिष्ठ पत्रकार शितोले का कहना है कि इस घटनाक्रम का वर्तमान परिपेक्ष में किसी तरीके का कोई लेना देना नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है कि कैसे ठाणे में बगावती तेवर दिखाए जाते रहे हैं। वह कहते हैं, ठाणे एक ऐसा गढ़ है जो न सिर्फ नेताओं की बड़ी नर्सरी है बल्कि महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक धुरियों में से एक बड़ी पॉलिटिकल धुरी भी मानी जाती है। चूंकि महाराष्ट्र की राजनीति में आए भूचाल के पीछे ठाणे के कद्दावर विधायक एकनाथ शिंदे ही हैं। इसलिए 1970 के ठाणे के शिंदे का जिक्र होना लाजिमी है।

राज ठाकरे को बदलना पड़ा पार्टी के झंडे का रंग

सुरेंद्र शितोले कहते हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना से बगावत करने वाले नेताओं की तो लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं जो लोगों की जुबान पर अभी भी चढ़े हुए हैं। जिसमें 1985-86 के दौर में बालासाहेब ठाकरे से बगावत करने वाले वरिष्ठ नेता छगन भुजबल का नाम शामिल है। इसके अलावा नारायण राणे और राज ठाकरे जैसे बड़े कद्दावर नाम शिवसेना के बागी नेताओं में शुमार किए जाते हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में कहा जाता है कि 2006 में शिवसेना से बगावत कर बाला साहब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने ही अपनी पार्टी का एक अस्तित्व बनाया था। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ अपनी पार्टी की राजनीतिक पारी शुरू करने वाले राज ठाकरे ने शुरुआती दौर में तो सर्व-धर्म-सर्व समाज की बात करते हुए न सिर्फ अपने झंडे में कई रंगों को समाहित किया था, बल्कि उसी विचारधारा पर चले भी थे। लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा पर आक्रामक रूप से अगुवाई करने वाले बाला साहब ठाकरे के चलते महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को न सिर्फ अपनी रणनीति बदलनी पड़ी बल्कि झंडे का रंग भी बदलना पड़ा था।

छगन भुजबल और नारायण राणे भी रहे बागी

महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक और वर्धा विश्वविद्यालय से जुड़े रहे प्रोफ़ेसर डीआर पनवलकर कर कहते हैं कि कभी शिवसेना के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले छगन भुजबल ने भी बाला साहब ठाकरे के साथ बगावत कर कांग्रेस का दामन थामा था। इसी तरह लंबे समय तक शिवसेना में शामिल रहे वर्तमान में मोदी सरकार के मंत्री नारायण राणे भी शिवसेना से बगावत कर अलग हो गए थे। नारायण राणे ने महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष नाम की एक पार्टी भी बनाई थी। लेकिन उन्होंने पार्टी के गठन के एक साल के दरमियान ही भारतीय जनता पार्टी में उसको मर्ज कर दिया था।

महाराष्ट्र की राजनीति के ताजा घटनाक्रमों को जोड़कर देखते हुए वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डीआर पनवलकर कहते हैं कि बागी विधायक फिलहाल इस स्थिति में नहीं हैं कि नई पार्टी का गठन कर सकें। हालांकि उनका कहना है तमाम कानूनी-दांवपेच के बाद इसकी संभावनाएं बनती दिख रही है, लेकिन यह अब निर्भर करता है कि बागी नेता एकनाथ शिंदे किस तरीके का राजनीतिक कदम उठाते हैं। फिलहाल शुरुआती दौर में जो नजर आ रहा है उसमें एक चीज स्पष्ट दिख रही है कि शिवसेना को समर्थन देने वाली दो विधायकों वाली प्रहार पार्टी के माध्यम से आने वाले दिनों में महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रमों को और आगे बढ़ाया जा सकता है।

प्रहार पार्टी की भूमिका अहम

सूत्रों का कहना है कि विपक्षी पार्टी के तौर पर भाजपा तो मांग कर चुकी है कि फ्लोर टेस्ट किया जाए क्योंकि सत्ता दल के साथ विधायकों की संख्या कम हो चुकी है। लेकिन इससे ज्यादा मजबूत स्थिति तब और बनेगी जब खुद सत्तापक्ष में शामिल और इस वक्त विरोधी गुट के साथ जुड़े हुए प्रहार पार्टी के मुखिया बच्चू कडू राज्यपाल को सरकार के अल्पमत में होने की लिखित सूचना देंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार में शामिल अगर कोई राजनैतिक दल राज्यपाल को सरकार के अल्पमत में आने की सूचना देता है, तो वह ज्यादा संवैधानिक और वजनदार प्रक्रिया मानी जाती है। ऐसे में अनुमान तो यही लगाया जा रहा है कि अगले दो से तीन-दिन महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण हैं।

विस्तार

महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी विधायक और मंत्री एकनाथ शिंदे एक ऐसे नेता के तौर पर सामने आए हैं, जो शिवसेना से बगावत के चलते पूरे देश में चर्चित हो गए हैं। लेकिन एकनाथ शिंदे से पहले भी एक और शिंदे शिवसेना में बाला साहब के राज में बगावत कर चुके थे। यह शिंदे भी एकनाथ शिंदे की तरह ठाणे से ही ताल्लुक रखते थे। महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों के मुताबिक शिवसेना से बगावत करने वालों में नेता तो कई शामिल रहे। लेकिन राज ठाकरे एक ऐसे नेता रहे जो बागी होने के बाद अपनी पार्टी बनाने और बचाकर चलाने में कामयाब रहे। बाकी कोई भी नेता अपनी अलग पार्टी नहीं बना सका। ज्यादातर नेता किसी दूसरी पार्टी के साथ होकर अपना राजनीतिक सफर आगे बढ़ाने लगे।

मारोतराव शिंदे ने की थी बगावत

महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र शितोले कहते हैं कि शिवसेना में बगावत कोई नई नहीं है। वे कहते हैं कि शिवसेना जब अपने शुरुआती दौर में पूरे महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे की अगुवाई में एकछत्र राज्य करने की ओर बढ़ रही थी तो 1970 में इसी ठाणे से एकनाथ शिंदे की तरह एक और शिंदे जिनका नाम मारोतराव शिंदे था वह भी बागी हो गए थे। शितोले कहते हैं दरअसल बगावत की है कहानी तब लिखी गई जब शिवसेना की स्थापना को महज एक साल ही हुआ था। शिवसेना की स्थापना के कुछ समय बाद ठाणे नगर पालिका का चुनाव होना था। और उस चुनाव में शिवसेना ने ठाणे के कद्दावर नेता मारोतराव शिंदे पर दांव लगा कर नगर पालिका का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की। शितोले कहते हैं उस दौरान कुछ ऐसी राजनैतिक उठापटक हुई कि शिंदे को शिवसेना से बगावत करनी पड़ी और शिंदे कांग्रेस की मदद से ठाणे के नगर पालिका अध्यक्ष बनाए गए। वरिष्ठ पत्रकार शितोले का कहना है कि इस घटनाक्रम का वर्तमान परिपेक्ष में किसी तरीके का कोई लेना देना नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है कि कैसे ठाणे में बगावती तेवर दिखाए जाते रहे हैं। वह कहते हैं, ठाणे एक ऐसा गढ़ है जो न सिर्फ नेताओं की बड़ी नर्सरी है बल्कि महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक धुरियों में से एक बड़ी पॉलिटिकल धुरी भी मानी जाती है। चूंकि महाराष्ट्र की राजनीति में आए भूचाल के पीछे ठाणे के कद्दावर विधायक एकनाथ शिंदे ही हैं। इसलिए 1970 के ठाणे के शिंदे का जिक्र होना लाजिमी है।

राज ठाकरे को बदलना पड़ा पार्टी के झंडे का रंग

सुरेंद्र शितोले कहते हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना से बगावत करने वाले नेताओं की तो लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं जो लोगों की जुबान पर अभी भी चढ़े हुए हैं। जिसमें 1985-86 के दौर में बालासाहेब ठाकरे से बगावत करने वाले वरिष्ठ नेता छगन भुजबल का नाम शामिल है। इसके अलावा नारायण राणे और राज ठाकरे जैसे बड़े कद्दावर नाम शिवसेना के बागी नेताओं में शुमार किए जाते हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में कहा जाता है कि 2006 में शिवसेना से बगावत कर बाला साहब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने ही अपनी पार्टी का एक अस्तित्व बनाया था। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ अपनी पार्टी की राजनीतिक पारी शुरू करने वाले राज ठाकरे ने शुरुआती दौर में तो सर्व-धर्म-सर्व समाज की बात करते हुए न सिर्फ अपने झंडे में कई रंगों को समाहित किया था, बल्कि उसी विचारधारा पर चले भी थे। लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा पर आक्रामक रूप से अगुवाई करने वाले बाला साहब ठाकरे के चलते महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को न सिर्फ अपनी रणनीति बदलनी पड़ी बल्कि झंडे का रंग भी बदलना पड़ा था।

छगन भुजबल और नारायण राणे भी रहे बागी

महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक और वर्धा विश्वविद्यालय से जुड़े रहे प्रोफ़ेसर डीआर पनवलकर कर कहते हैं कि कभी शिवसेना के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले छगन भुजबल ने भी बाला साहब ठाकरे के साथ बगावत कर कांग्रेस का दामन थामा था। इसी तरह लंबे समय तक शिवसेना में शामिल रहे वर्तमान में मोदी सरकार के मंत्री नारायण राणे भी शिवसेना से बगावत कर अलग हो गए थे। नारायण राणे ने महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष नाम की एक पार्टी भी बनाई थी। लेकिन उन्होंने पार्टी के गठन के एक साल के दरमियान ही भारतीय जनता पार्टी में उसको मर्ज कर दिया था।

महाराष्ट्र की राजनीति के ताजा घटनाक्रमों को जोड़कर देखते हुए वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डीआर पनवलकर कहते हैं कि बागी विधायक फिलहाल इस स्थिति में नहीं हैं कि नई पार्टी का गठन कर सकें। हालांकि उनका कहना है तमाम कानूनी-दांवपेच के बाद इसकी संभावनाएं बनती दिख रही है, लेकिन यह अब निर्भर करता है कि बागी नेता एकनाथ शिंदे किस तरीके का राजनीतिक कदम उठाते हैं। फिलहाल शुरुआती दौर में जो नजर आ रहा है उसमें एक चीज स्पष्ट दिख रही है कि शिवसेना को समर्थन देने वाली दो विधायकों वाली प्रहार पार्टी के माध्यम से आने वाले दिनों में महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रमों को और आगे बढ़ाया जा सकता है।

प्रहार पार्टी की भूमिका अहम

सूत्रों का कहना है कि विपक्षी पार्टी के तौर पर भाजपा तो मांग कर चुकी है कि फ्लोर टेस्ट किया जाए क्योंकि सत्ता दल के साथ विधायकों की संख्या कम हो चुकी है। लेकिन इससे ज्यादा मजबूत स्थिति तब और बनेगी जब खुद सत्तापक्ष में शामिल और इस वक्त विरोधी गुट के साथ जुड़े हुए प्रहार पार्टी के मुखिया बच्चू कडू राज्यपाल को सरकार के अल्पमत में होने की लिखित सूचना देंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार में शामिल अगर कोई राजनैतिक दल राज्यपाल को सरकार के अल्पमत में आने की सूचना देता है, तो वह ज्यादा संवैधानिक और वजनदार प्रक्रिया मानी जाती है। ऐसे में अनुमान तो यही लगाया जा रहा है कि अगले दो से तीन-दिन महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण हैं।



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