मिशन 2024: अब प्रदेशों के ‘राजवंशों’ पर है ‘भगवा’ टोली की टेढ़ी नजर, वंशवाद मुक्त भारत बना भाजपा के लिए सुखद अहसास!


ख़बर सुनें

भाजपा ने ‘मिशन 2024’ की तैयारी शुरु कर दी है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भाजपा ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस राह पर उसे काफी हद तक सफलता मिल रही है। भाजपा ने कांग्रेस पार्टी और उसके सिपहसालारों को खासा नुकसान पहुंचाया है। मिशन 2024 के लिए अब पार्टी ने वैसा ही अभियान विभिन्न प्रदेशों में भी शुरू कर दिया है। खासतौर से उन राज्यों में, जहां पर ‘राजवंशी’ परंपरा से शासन चल रहा है। इस मुहिम में उत्तर एवं दक्षिण भारत के कई राज्यों के राजवंशों पर ‘भगवा टोली’ की टेढ़ी नजर है।
 

पार्टी अब ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ से दो कदम आगे बढ़कर ‘वंशवाद मुक्त भारत’ के प्लान पर काम कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कह चुके हैं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अब लुप्त होने की कगार पर है। वंशवाद की राह पर चल रहे क्षेत्रीय दलों के पास भी सिद्धांतों और नीतियों का घोर संकट है।

किसान आंदोलन से विपक्ष को नहीं मिला फायदा

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों में आपसी दूरी का भरपूर फायदा भाजपा को मिल रहा है। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद के साथ ही कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे पर फोकस कर रखा था। भाजपा को अपने इस एजेंडे में कामयाबी भी मिल रही है। किसान आंदोलन एक वर्ष से अधिक समय तक चला। जब पांच राज्यों के चुनाव सिर पर आए तो केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। खास बात ये रही कि भाजपा ने इसका फायदा विपक्ष को नहीं लेने दिया। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा ने दोबारा से सत्ता में वापसी की। पीएम मोदी ने पार्टी के 42वें स्थापना दिवस पर कहा था, अभी इस देश में राजनीति करने के दो ही तरीके हैं। एक, परिवार की भक्ति वाली राजनीति से जुड़ जाएं और दूसरा, राष्ट्रभक्ति की भावना से भर कर की गई राजनीति से। राष्ट्रीय स्तर पर और कुछ राज्यों में ऐसे दल हैं जो परिवारवाद के लिए काम करते हैं। वहां भ्रष्टाचार होता है, मगर उसे वंशवाद की आढ़ में छिपा देते हैं। ऐसे लोग, संसद से लेकर स्थानीय निकाय तक, अपना प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास करते हैं।  

भाजपा का दक्षिण भारत पर जोर

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का हैदराबाद में होना, कई इशारे करती है। पार्टी का प्रयास है कि 2024 में दक्षिण भारत में वंशवाद को आगे बढ़ा रहे कई किले ढाह दिए जाएं। इससे पहले पार्टी ने जम्मू कश्मीर में वंशवाद पर गहरी चोट की है। वहां भाजपा द्वारा नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को खासा नुकसान पहुंचाने का दावा किया जा रहा है। हरियाणा में इनेलो से अलग हुई जजपा, भाजपा के साथ सरकार में शामिल है। यह पार्टी भी एक दर्जन विधायकों का आंकड़ा नहीं छू सकी। पंजाब में अकाली दल, जो कि एक मजबूत क्षेत्रीय दल रहा है, इस बार उसे भी जमीन दिखा दी गई। उत्तर प्रदेश में बसपा का हाल किसी से छुपा नहीं है। दोनों लोकसभा उपचुनाव हारने के बाद ‘सपा’ की स्थिति का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। महाराष्ट्र में शिवसेना, सत्ता से बाहर हो चुकी है। बिहार में भी क्षेत्रीय दलों को धीरे-धीरे निशाने पर लिया जा रहा है। तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के लिए दोबारा से सत्ता वापसी आसानी नहीं दिखाई दे रही। कर्नाटक के बाद अब भाजपा, दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों में पांव पसारने की रणनीति पर काम कर रही है। आने वाले समय में महाराष्ट्र जैसा घटनाक्रम अगर दूसरे राज्यों में भी दोहराया जाता है तो इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं होगी।

कांग्रेस और क्षेत्रीय विपक्षी दलों के बीच नहीं बन पा रहा तालमेल

राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय विपक्षी दलों के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा। इससे भाजपा को फ्रंट फुट पर खेलने का मौका मिल रहा है। ये अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए ने 2004 और 2009 में क्षेत्रीय दलों के सहयोग से ही सत्ता हासिल की थी। राहुल गांधी ने कांग्रेस के चिंतन शिविर में कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियां जातिवादी हैं। कांग्रेस, एक राष्ट्रीय दल है। भाजपा से जिस क्षमता के साथ कांग्रेस लड़ सकती है, वैसे क्षेत्रीय दल नहीं लड़ सकते। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्षी एकता, जिस तरह से तार-तार हो रही है, वह सबके सामने है। विपक्षी दलों की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। हालांकि आज भी इन दलों की ठोस मौजूदगी है, लेकिन मिशन 2024 में ये पार्टियां किस तरह अपनी पहचान बचा कर रखेंगी, अभी ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं दिख रहा। संसद में साल 1996 के दौरान क्षेत्रीय दलों का हिस्सा 50 फीसदी से अधिक रहा था। इसके बाद 1999 के चुनाव में इनकी हिस्सेदारी 48 फीसदी रह गई। वर्ष 2009 में वह हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी तक बढ़ गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों का मत प्रतिशत 13.75 रहा है। लोकसभा में 136 सदस्य, क्षेत्रीय दलों से जीत कर आए।

बिखरा विपक्ष भाजपा के लिए फायदेमंद

राजनीति के जानकार, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते। केवल सरकार बना लेना ही अंतिम मकसद नहीं है। मजबूत विपक्ष, लोकतंत्र के प्रवाह को गति प्रदान करता है। अगर देश में अराजकता का माहौल बनता है तो उस दौरान विपक्ष की भूमिका अहम हो जाती है। आज विपक्षी दल दुविधा में हैं। आठ से ज्यादा राज्यों में भाजपा, किसी तरीके से सत्ता परिवर्तन करा देती है और विपक्ष कुछ नहीं कर पाता। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी भी इस राह पर चली थीं। उन्होंने भी विपक्ष को बिखराव की स्थिति में रखा था। मौजूदा दौर में अगर भाजपा फायदे में है तो उसका जिम्मेदार विपक्ष है। यहां पर विपक्ष को लेकर एक बात कही जाती है कि वह मुद्दों की जमीनी हकीकत से दूर है। न ममता बनर्जी को राहुल गांधी की बात समझ में आती है और न ही ममता को राहुल गांधी की। कोई भी किसी के पीछे नहीं चलना चाहता। ये बिखरापन ही भाजपा का सुखद अहसास है। भाजपा की घेराबंदी करने में विपक्ष पूरी तरह फेल रहा है। मोदी के विरोधियों को कोई प्लेटफार्म नजर नहीं आ रहा। पिछले दिनों जब राहुल गांधी से ईडी ने लंबी पूछताछ की तो विपक्षी दलों के ट्वीट तक नहीं आए। ऐसे में कांग्रेस मुक्त भारत के बाद अब भाजपा की नजर क्षेत्रीय दलों पर है। वह अपने प्लान पर आगे बढ़ रही है।

उपचुनाव में बेअसर रहा अग्निवीर मुद्दा

‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार कहते हैं, सेना भर्ती का मुद्दा गर्म होने पर भी उपचुनाव में उसका कहीं कोई असर देखने को नहीं मिला। केंद्र सरकार काफी हद तक लोगों को यह बताने में सफल हो रही है कि विपक्ष इस मामले में युवाओं को गुमराह कर रहा है। विपक्ष, केंद्र सरकार को प्रभावशाली तरीके से घेरने में सफल नहीं हो सका। वजह, विपक्षी दलों के नेताओं के सुर अलग थे। वे एक मंच पर नहीं दिखे। देश में तीसरा मोर्चा नहीं बन पा रहा, इसकी वजह विपक्षी एकता का अभाव है। आने वाले समय में वंशवाद मुक्त भारत के साथ साथ विपक्ष मुक्त भारत भी हो सकता है। हालांकि ये सब बदलाव इतना आसान नहीं है। अभी कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मजबूत पकड़ है। यहां सारी बात स्वार्थ की है। विपक्षी दल इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। भाजपा, इसी स्थिति का फायदा उठा रही है। उसका प्रयास है कि 2024 में विपक्ष और क्षेत्रीय दल, बहुत ही सीमित भूमिका में सिमट जाएं।

विस्तार

भाजपा ने ‘मिशन 2024’ की तैयारी शुरु कर दी है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भाजपा ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस राह पर उसे काफी हद तक सफलता मिल रही है। भाजपा ने कांग्रेस पार्टी और उसके सिपहसालारों को खासा नुकसान पहुंचाया है। मिशन 2024 के लिए अब पार्टी ने वैसा ही अभियान विभिन्न प्रदेशों में भी शुरू कर दिया है। खासतौर से उन राज्यों में, जहां पर ‘राजवंशी’ परंपरा से शासन चल रहा है। इस मुहिम में उत्तर एवं दक्षिण भारत के कई राज्यों के राजवंशों पर ‘भगवा टोली’ की टेढ़ी नजर है।

 

पार्टी अब ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ से दो कदम आगे बढ़कर ‘वंशवाद मुक्त भारत’ के प्लान पर काम कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कह चुके हैं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अब लुप्त होने की कगार पर है। वंशवाद की राह पर चल रहे क्षेत्रीय दलों के पास भी सिद्धांतों और नीतियों का घोर संकट है।

किसान आंदोलन से विपक्ष को नहीं मिला फायदा

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों में आपसी दूरी का भरपूर फायदा भाजपा को मिल रहा है। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद के साथ ही कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे पर फोकस कर रखा था। भाजपा को अपने इस एजेंडे में कामयाबी भी मिल रही है। किसान आंदोलन एक वर्ष से अधिक समय तक चला। जब पांच राज्यों के चुनाव सिर पर आए तो केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। खास बात ये रही कि भाजपा ने इसका फायदा विपक्ष को नहीं लेने दिया। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा ने दोबारा से सत्ता में वापसी की। पीएम मोदी ने पार्टी के 42वें स्थापना दिवस पर कहा था, अभी इस देश में राजनीति करने के दो ही तरीके हैं। एक, परिवार की भक्ति वाली राजनीति से जुड़ जाएं और दूसरा, राष्ट्रभक्ति की भावना से भर कर की गई राजनीति से। राष्ट्रीय स्तर पर और कुछ राज्यों में ऐसे दल हैं जो परिवारवाद के लिए काम करते हैं। वहां भ्रष्टाचार होता है, मगर उसे वंशवाद की आढ़ में छिपा देते हैं। ऐसे लोग, संसद से लेकर स्थानीय निकाय तक, अपना प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास करते हैं।  

भाजपा का दक्षिण भारत पर जोर

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का हैदराबाद में होना, कई इशारे करती है। पार्टी का प्रयास है कि 2024 में दक्षिण भारत में वंशवाद को आगे बढ़ा रहे कई किले ढाह दिए जाएं। इससे पहले पार्टी ने जम्मू कश्मीर में वंशवाद पर गहरी चोट की है। वहां भाजपा द्वारा नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को खासा नुकसान पहुंचाने का दावा किया जा रहा है। हरियाणा में इनेलो से अलग हुई जजपा, भाजपा के साथ सरकार में शामिल है। यह पार्टी भी एक दर्जन विधायकों का आंकड़ा नहीं छू सकी। पंजाब में अकाली दल, जो कि एक मजबूत क्षेत्रीय दल रहा है, इस बार उसे भी जमीन दिखा दी गई। उत्तर प्रदेश में बसपा का हाल किसी से छुपा नहीं है। दोनों लोकसभा उपचुनाव हारने के बाद ‘सपा’ की स्थिति का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। महाराष्ट्र में शिवसेना, सत्ता से बाहर हो चुकी है। बिहार में भी क्षेत्रीय दलों को धीरे-धीरे निशाने पर लिया जा रहा है। तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के लिए दोबारा से सत्ता वापसी आसानी नहीं दिखाई दे रही। कर्नाटक के बाद अब भाजपा, दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों में पांव पसारने की रणनीति पर काम कर रही है। आने वाले समय में महाराष्ट्र जैसा घटनाक्रम अगर दूसरे राज्यों में भी दोहराया जाता है तो इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं होगी।

कांग्रेस और क्षेत्रीय विपक्षी दलों के बीच नहीं बन पा रहा तालमेल

राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय विपक्षी दलों के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा। इससे भाजपा को फ्रंट फुट पर खेलने का मौका मिल रहा है। ये अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए ने 2004 और 2009 में क्षेत्रीय दलों के सहयोग से ही सत्ता हासिल की थी। राहुल गांधी ने कांग्रेस के चिंतन शिविर में कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियां जातिवादी हैं। कांग्रेस, एक राष्ट्रीय दल है। भाजपा से जिस क्षमता के साथ कांग्रेस लड़ सकती है, वैसे क्षेत्रीय दल नहीं लड़ सकते। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्षी एकता, जिस तरह से तार-तार हो रही है, वह सबके सामने है। विपक्षी दलों की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। हालांकि आज भी इन दलों की ठोस मौजूदगी है, लेकिन मिशन 2024 में ये पार्टियां किस तरह अपनी पहचान बचा कर रखेंगी, अभी ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं दिख रहा। संसद में साल 1996 के दौरान क्षेत्रीय दलों का हिस्सा 50 फीसदी से अधिक रहा था। इसके बाद 1999 के चुनाव में इनकी हिस्सेदारी 48 फीसदी रह गई। वर्ष 2009 में वह हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी तक बढ़ गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों का मत प्रतिशत 13.75 रहा है। लोकसभा में 136 सदस्य, क्षेत्रीय दलों से जीत कर आए।

बिखरा विपक्ष भाजपा के लिए फायदेमंद

राजनीति के जानकार, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते। केवल सरकार बना लेना ही अंतिम मकसद नहीं है। मजबूत विपक्ष, लोकतंत्र के प्रवाह को गति प्रदान करता है। अगर देश में अराजकता का माहौल बनता है तो उस दौरान विपक्ष की भूमिका अहम हो जाती है। आज विपक्षी दल दुविधा में हैं। आठ से ज्यादा राज्यों में भाजपा, किसी तरीके से सत्ता परिवर्तन करा देती है और विपक्ष कुछ नहीं कर पाता। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी भी इस राह पर चली थीं। उन्होंने भी विपक्ष को बिखराव की स्थिति में रखा था। मौजूदा दौर में अगर भाजपा फायदे में है तो उसका जिम्मेदार विपक्ष है। यहां पर विपक्ष को लेकर एक बात कही जाती है कि वह मुद्दों की जमीनी हकीकत से दूर है। न ममता बनर्जी को राहुल गांधी की बात समझ में आती है और न ही ममता को राहुल गांधी की। कोई भी किसी के पीछे नहीं चलना चाहता। ये बिखरापन ही भाजपा का सुखद अहसास है। भाजपा की घेराबंदी करने में विपक्ष पूरी तरह फेल रहा है। मोदी के विरोधियों को कोई प्लेटफार्म नजर नहीं आ रहा। पिछले दिनों जब राहुल गांधी से ईडी ने लंबी पूछताछ की तो विपक्षी दलों के ट्वीट तक नहीं आए। ऐसे में कांग्रेस मुक्त भारत के बाद अब भाजपा की नजर क्षेत्रीय दलों पर है। वह अपने प्लान पर आगे बढ़ रही है।

उपचुनाव में बेअसर रहा अग्निवीर मुद्दा

‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार कहते हैं, सेना भर्ती का मुद्दा गर्म होने पर भी उपचुनाव में उसका कहीं कोई असर देखने को नहीं मिला। केंद्र सरकार काफी हद तक लोगों को यह बताने में सफल हो रही है कि विपक्ष इस मामले में युवाओं को गुमराह कर रहा है। विपक्ष, केंद्र सरकार को प्रभावशाली तरीके से घेरने में सफल नहीं हो सका। वजह, विपक्षी दलों के नेताओं के सुर अलग थे। वे एक मंच पर नहीं दिखे। देश में तीसरा मोर्चा नहीं बन पा रहा, इसकी वजह विपक्षी एकता का अभाव है। आने वाले समय में वंशवाद मुक्त भारत के साथ साथ विपक्ष मुक्त भारत भी हो सकता है। हालांकि ये सब बदलाव इतना आसान नहीं है। अभी कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मजबूत पकड़ है। यहां सारी बात स्वार्थ की है। विपक्षी दल इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। भाजपा, इसी स्थिति का फायदा उठा रही है। उसका प्रयास है कि 2024 में विपक्ष और क्षेत्रीय दल, बहुत ही सीमित भूमिका में सिमट जाएं।



Source link

Enable Notifications OK No thanks