लोकप्रियता के मामले में अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने अपने दौर में कामयाबी का जो शिखर छुआ है, वह हिंदी सिनेमा में कम कलाकारों ही नसीब हुआ। लेकिन, मिथुन जितना संघर्ष भी कम कलाकारों ने ही किया है। सब जानते हैं कि मिथुन किन हालत में घर छोड़कर मुंबई आए। नक्सल आंदोलन से दूर रहने के लिए ही उन्होंने बंगाल छोड़ा। तब मुंबई की सड़कें उनका घर हुआ करती थीं और मुंबई का आसमान इस घर की छत। ना जाने कितनी रातें मिथुन ने फुटपाथ पर यूं ही गुजारी हैं। दोस्त यारों के घरों या हॉस्टल में जाकर सुबह सुबह नहा धो लेते और फिर मुंबई की गलियों में शुरू हो जाती एक अदद फिल्म की तलाश। शाम को राणा रेज बनकर वह स्ट्रीट डांसिंग शो भी किया करते थे।
अब जो किस्सा मैं यहां साझा करने जा रहा हूं, ये किस्सा मिथुन ने मुझे खुद सुनाया था। मिथुन चक्रवर्ती को फिल्म ‘मृगया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। मोबाइल, व्हाट्सएप आदि का जमाना था नहीं। पुरस्कार की खबर का भी मुंबई में कोई खास हो हल्ला नहीं हुआ क्योंकि तब यही माना जाता था कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार कला फिल्मों को ही दिए जाते थे। मिथुन का तो नाम भी आधी इंडस्ट्री को नहीं पता था। लेकिन, दिल्ली से निकलने वाली पत्रिका ‘मायापुरी’ ने पुरस्कार की महत्ता समझी और अपने मुंबई के पत्रकार जेड ए जौहर को मिथुन का एक इंटरव्यू अगले अंक के लिए करने का निर्देश दिया।
जेड ए जौहर ने अपने सारे संपर्क सूत्रों को इस काम पर लगा दिया। मिथुन का ना तो कोई पक्का ठौर उन दिनों होता था और ना ही ठिकाना। मुश्किल से दो तीन दिन बाद पता चला कि मिथुन एक निर्माता से मिलने वाले हैं। मिथुन का उस दिन ऑडिशन तय था और जेड ए जौहर पहुंच गए उनका इंटरव्यू करने। निर्माता के दफ्तर के बाहर एक पार्क में मिथुन बैठे थे। जौहर ने कहा कि आपका इंटरव्यू करना है। मिथुन हैरान कि मेरा इंटरव्यू कौन पढ़ेगा? खैर जौहर ने जिद पकड़ी तो मिथुन बोले, ‘मैंने दो दिन से कुछ खाया नहीं है, तो पहले भोजन हो जाए तो फिर बात निकले।’
जौहर ने अपने साथ गए शख्स को पैसे देकर बिरयानी खरीदने भेजा। थोड़ी देर दोनों गप्प मारते रहे तब तक बिरयानी आ गई। मिथुन ने पेट भरकर बिरयानी खाई और फिर दिल खोलकर अपना पहला इंटरव्यू दिया। मिथुन आज भी ये किस्सा यादकर भावुक हो जाते हैं। पत्रकारों के लिए उनके दिल में हमेशा से इसीलिए अलग सम्मान रहा। मुंबई की तमाम सड़कें मिथुन ने पैदल ही नापी हैं। इस राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के तीन साल बाद उन्हें स्टारडम का पहला स्वाद चखने को मिला माटुंगा स्थित सिनेप्लेक्स बादल, बरखा और बिजली के दफ्तर में। मौका था उनकी पहली सुपरहिट फिल्म ‘सुरक्षा’ की रिलीज का। मिथुन रात में यूं ही घूमते घूमते सिनेमाघर के मैनेजर से मिलने जा पहुंचे थे और पब्लिक को पता चलो तो वह मैनेजर की केबिन का शीशा तोड़कर उन तक पहुंच गई।
फिल्म ‘सुरक्षा’ मिलने के समय तक मिथुन चक्रवर्ती का करियर रफ्तार नहीं पकड़ पाया था और इस फिल्म की हीरोइन रंजीता तब तक ऋषि कपूर के साथ फिल्म ‘लैला मजनू’ करके सुपरस्टार बन चुकी थीं। रंजीता को तब यही लगता था कि उन्होंने एक स्ट्रगलिंग एक्टर के साथ फिल्म साइन करके गलती कर ली। फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ में रंजीता तब के सुपरस्टार्स में गिने जाने वाले संजीव कुमार की हीरोइन बनी थीं। ऋषि कपूर, सचिन और संजीव कुमार के साथ काम करने के बाद रंजीता को मिथुन के साथ काम करना अपने स्तर से थोड़ा कम लग रहा था लेकिन, उन्हें क्या पता था कि आगे चलकर दोनों की जोड़ी हिंदी सिनेमा की हिट जोड़ियों में शुमार हो जाएगी।