National Herald Case: ईडी मामले में विपक्षी मोर्चे पर अकेली पड़ीं सोनिया गांधी, भाजपा में जोश भर रहा बिखरता विपक्ष


ख़बर सुनें

‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पेशी भुगत रहीं कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी ‘विपक्ष’ का साथ नहीं मिला। जब सोनिया गांधी, ईडी दफ्तर में मौजूद थीं, तो उस समय कांग्रेस सांसद और कार्यकर्ता, विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। गुरुवार को संसद की कार्यवाही शुरु होने से पहले 12 दलों के साथ कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने बैठक की। उसमें सोनिया गांधी की पेशी के मुद्दे पर भी बात हुई, लेकिन इसके बाद भी विपक्षी नेता, कांग्रेस के साथ नजर नहीं आए। यहां तक कि विपक्षी नेताओं के ट्विटर पर भी सोनिया के लिए समर्थन नहीं दिखा।
 

जब राहुल गांधी, ईडी के समक्ष पेश हुए थे तब भी विपक्ष ने मौन साध लिया था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ईडी मामले में विपक्षी मोर्चे पर जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष अकेली पड़ती हुई दिख रही हैं, उससे एक बार फिर बिखरते ‘विपक्ष’ का संकेत मिला है। हालांकि इस संकेत से भाजपा खेमे में जोश भरता नजर आ रहा है।

विपक्ष पूरी तरह से ‘एकला चलो’ की राह पर

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भी ईडी की पूछताछ के दौरान विपक्ष का साथ नहीं मिला था। जब राहुल से पूछताछ हुई थी तो उस वक्त उनकी बहन एवं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी अपने नेताओं का हालचाल जानने पुलिस स्टेशन में पहुंची थीं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर प्रदर्शन किया था। विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं ने राहुल के समर्थन में ट्वीट तक नहीं किया था। तब राहुल अकेले पड़ गए थे। उस वक्त भी विपक्ष पूरी तरह से ‘एकला चलो’ की राह पर जाता हुआ दिखाई दिया। उसके बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों की बैठक हुई। दोनों पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन किया गया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा ने पहले ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। इसके बाद विभिन्न राज्यों के उन राजनीतिक दलों को निशाना बनाया गया, जहां कई दशकों से कुछ परिवारों का प्रभाव रहा है। महाराष्ट्र का मामला, भाजपा के इसी प्लान का हिस्सा है।
 

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, इन दोनों रास्तों पर आगे बढ़ने के बाद अब भाजपा ने ‘विपक्ष मुक्त भारत’ का लक्ष्य साधा है। यह पार्टी चाहती है कि देश में विपक्ष ही न रहे। अगर कोई बोलने का प्रयास करे तो उसके पीछे केंद्रीय जांच एजेंसी लगा दो। राजनीतिक जानकार, रशीद किदवई ने कहा, विपक्ष केवल औपचारिकता के लिए बैठक कर रहा है। उसमें भरोसा नहीं है। आपसी विश्वास का घोर अभाव है। इसी से अंदाजा लगा लें कि जब सोनिया गांधी, ईडी के सवालों की बौछार झेल रही थीं तो उस समय ममता बनर्जी, कोलकाता में शहीदी दिवस पर एक बड़ी रैली को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने जीएसटी को लेकर भाजपा पर जमकर हमला बोला। ममता बनर्जी ने कहा, भाजपा, राज्यों की सरकारों को गिराने का प्रयास कर रही है। महाराष्ट्र के बाद अब पश्चिम बंगाल में भी कोशिश हो रही है। देश में लाखों नौकरियां खत्म हो गई हैं। खास बात ये है कि ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी के मामले का जिक्र तक नहीं किया।

 

भाजपा का ‘विपक्ष मुक्त भारत’ अभियान

किदवई के अनुसार, देश में विपक्ष का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। ये बात भाजपा अच्छी तरह जानती है। भाजपा को मालूम है कि विपक्ष की तरफ से उठने वाली आवाज को कैसे शांत करना है। दूसरी ओर विपक्ष ये नहीं जानता कि उसे भाजपा की रणनीति का मुकाबला कैसे करना है। कांग्रेस मुक्त भारत और राज्यों में सरकारें गिराने का खेल शुरू होने के बाद अब भाजपा ने ‘विपक्ष मुक्त भारत’ भी लांच कर दिया है। अखिलेश यादव अलग हैं, मायावती बोल नहीं रही हैं। नवीन पटनायक का अपना एजेंडा है। आंध्र प्रदेश के सीएम जगमोहन रेड्डी भी सुर में सुर नहीं मिला पा रहे। अरविंद केजरीवाल से राहुल गांधी की पटरी नहीं बैठ रही। शिवसेना, खुद को बचाने में व्यस्त है। राजद नेता भी दूसरी चिंता में हैं। शिरोमणि अकाली दल, एनसीपी और टीआरएस जैसे दल भी एकता का प्रयास नहीं कर रहे। डीएमके नेता एवं तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने भी सोनिया की पेशी को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया। जेडीयू नेता एवं बिहार के सीएम नीतीश कुमार, भी शांत हैं। ऐसे में भाजपा खुश हो रही है। वह एक-एक कर विपक्षी दलों को निशाना बना रही है। इतना कुछ होने पर भी विपक्ष, एक नहीं हो पा रहा। दरअसल, विपक्ष में तालमेल और भरोसे का घोर अभाव है।
 

विपक्षी दलों के कई नेता अब समझौते की ओर चल पड़े हैं। जिन्हें जांच एजेंसी की पूछताछ नहीं झेलनी है, वे भाजपा के अनुसार चलते हैं। कोई नेता, दल बदल लेता है तो कोई भाजपा सरकार बनाने में सहयोग दे देता है। विपक्षी दल, अब सड़क पर उतरना भूल गए हैं। जैसे सोनिया गांधी की पेशी है तो कुछ देर कांग्रेस का प्रदर्शन हो जाता है। ऐसे ही दूसरे दल करते हैं। ये किसी भी मुद्दे पर एक साथ नजर नहीं आते। कोई भी विपक्षी दल, कांग्रेस के साथ ईडी दफ्तर या दूसरी जगह प्रदर्शन करने नहीं पहुंचा। कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा था, असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा, जब कांग्रेस में थे, तो लुईस बर्जर केस व शारदा घोटाले में, उन्हें ईडी और सीबीआई ने बुलाया था। उसके बाद वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। अब शारदा घोटाला व लुईस बर्जर केस कहां चले गए। ईडी के समन का क्या हुआ? ऐसे नेताओं के सामने विकल्प था कि वे भाजपा में आते हैं तो उनके सब गुनाह माफ हो जाएंगे। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा, उन पर ईडी का केस दर्ज है या नहीं है। येदियुरप्पा के अलावा उनके बेटे को भी ईडी का समन आया था। अब ईडी का वह केस कहां चला गया है। नारायण राणे जब कांग्रेस में थे, तो उन पर जांच एजेंसियों की रेड हुई। भाजपा में शामिल होते ही वे पाक साफ बन गए।

विस्तार

‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पेशी भुगत रहीं कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी ‘विपक्ष’ का साथ नहीं मिला। जब सोनिया गांधी, ईडी दफ्तर में मौजूद थीं, तो उस समय कांग्रेस सांसद और कार्यकर्ता, विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। गुरुवार को संसद की कार्यवाही शुरु होने से पहले 12 दलों के साथ कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने बैठक की। उसमें सोनिया गांधी की पेशी के मुद्दे पर भी बात हुई, लेकिन इसके बाद भी विपक्षी नेता, कांग्रेस के साथ नजर नहीं आए। यहां तक कि विपक्षी नेताओं के ट्विटर पर भी सोनिया के लिए समर्थन नहीं दिखा।

 

जब राहुल गांधी, ईडी के समक्ष पेश हुए थे तब भी विपक्ष ने मौन साध लिया था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ईडी मामले में विपक्षी मोर्चे पर जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष अकेली पड़ती हुई दिख रही हैं, उससे एक बार फिर बिखरते ‘विपक्ष’ का संकेत मिला है। हालांकि इस संकेत से भाजपा खेमे में जोश भरता नजर आ रहा है।

विपक्ष पूरी तरह से ‘एकला चलो’ की राह पर

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भी ईडी की पूछताछ के दौरान विपक्ष का साथ नहीं मिला था। जब राहुल से पूछताछ हुई थी तो उस वक्त उनकी बहन एवं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी अपने नेताओं का हालचाल जानने पुलिस स्टेशन में पहुंची थीं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर प्रदर्शन किया था। विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं ने राहुल के समर्थन में ट्वीट तक नहीं किया था। तब राहुल अकेले पड़ गए थे। उस वक्त भी विपक्ष पूरी तरह से ‘एकला चलो’ की राह पर जाता हुआ दिखाई दिया। उसके बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों की बैठक हुई। दोनों पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन किया गया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा ने पहले ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। इसके बाद विभिन्न राज्यों के उन राजनीतिक दलों को निशाना बनाया गया, जहां कई दशकों से कुछ परिवारों का प्रभाव रहा है। महाराष्ट्र का मामला, भाजपा के इसी प्लान का हिस्सा है।

 

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, इन दोनों रास्तों पर आगे बढ़ने के बाद अब भाजपा ने ‘विपक्ष मुक्त भारत’ का लक्ष्य साधा है। यह पार्टी चाहती है कि देश में विपक्ष ही न रहे। अगर कोई बोलने का प्रयास करे तो उसके पीछे केंद्रीय जांच एजेंसी लगा दो। राजनीतिक जानकार, रशीद किदवई ने कहा, विपक्ष केवल औपचारिकता के लिए बैठक कर रहा है। उसमें भरोसा नहीं है। आपसी विश्वास का घोर अभाव है। इसी से अंदाजा लगा लें कि जब सोनिया गांधी, ईडी के सवालों की बौछार झेल रही थीं तो उस समय ममता बनर्जी, कोलकाता में शहीदी दिवस पर एक बड़ी रैली को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने जीएसटी को लेकर भाजपा पर जमकर हमला बोला। ममता बनर्जी ने कहा, भाजपा, राज्यों की सरकारों को गिराने का प्रयास कर रही है। महाराष्ट्र के बाद अब पश्चिम बंगाल में भी कोशिश हो रही है। देश में लाखों नौकरियां खत्म हो गई हैं। खास बात ये है कि ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी के मामले का जिक्र तक नहीं किया।

 

भाजपा का ‘विपक्ष मुक्त भारत’ अभियान

किदवई के अनुसार, देश में विपक्ष का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। ये बात भाजपा अच्छी तरह जानती है। भाजपा को मालूम है कि विपक्ष की तरफ से उठने वाली आवाज को कैसे शांत करना है। दूसरी ओर विपक्ष ये नहीं जानता कि उसे भाजपा की रणनीति का मुकाबला कैसे करना है। कांग्रेस मुक्त भारत और राज्यों में सरकारें गिराने का खेल शुरू होने के बाद अब भाजपा ने ‘विपक्ष मुक्त भारत’ भी लांच कर दिया है। अखिलेश यादव अलग हैं, मायावती बोल नहीं रही हैं। नवीन पटनायक का अपना एजेंडा है। आंध्र प्रदेश के सीएम जगमोहन रेड्डी भी सुर में सुर नहीं मिला पा रहे। अरविंद केजरीवाल से राहुल गांधी की पटरी नहीं बैठ रही। शिवसेना, खुद को बचाने में व्यस्त है। राजद नेता भी दूसरी चिंता में हैं। शिरोमणि अकाली दल, एनसीपी और टीआरएस जैसे दल भी एकता का प्रयास नहीं कर रहे। डीएमके नेता एवं तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने भी सोनिया की पेशी को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया। जेडीयू नेता एवं बिहार के सीएम नीतीश कुमार, भी शांत हैं। ऐसे में भाजपा खुश हो रही है। वह एक-एक कर विपक्षी दलों को निशाना बना रही है। इतना कुछ होने पर भी विपक्ष, एक नहीं हो पा रहा। दरअसल, विपक्ष में तालमेल और भरोसे का घोर अभाव है।

 

विपक्षी दलों के कई नेता अब समझौते की ओर चल पड़े हैं। जिन्हें जांच एजेंसी की पूछताछ नहीं झेलनी है, वे भाजपा के अनुसार चलते हैं। कोई नेता, दल बदल लेता है तो कोई भाजपा सरकार बनाने में सहयोग दे देता है। विपक्षी दल, अब सड़क पर उतरना भूल गए हैं। जैसे सोनिया गांधी की पेशी है तो कुछ देर कांग्रेस का प्रदर्शन हो जाता है। ऐसे ही दूसरे दल करते हैं। ये किसी भी मुद्दे पर एक साथ नजर नहीं आते। कोई भी विपक्षी दल, कांग्रेस के साथ ईडी दफ्तर या दूसरी जगह प्रदर्शन करने नहीं पहुंचा। कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा था, असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा, जब कांग्रेस में थे, तो लुईस बर्जर केस व शारदा घोटाले में, उन्हें ईडी और सीबीआई ने बुलाया था। उसके बाद वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। अब शारदा घोटाला व लुईस बर्जर केस कहां चले गए। ईडी के समन का क्या हुआ? ऐसे नेताओं के सामने विकल्प था कि वे भाजपा में आते हैं तो उनके सब गुनाह माफ हो जाएंगे। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा, उन पर ईडी का केस दर्ज है या नहीं है। येदियुरप्पा के अलावा उनके बेटे को भी ईडी का समन आया था। अब ईडी का वह केस कहां चला गया है। नारायण राणे जब कांग्रेस में थे, तो उन पर जांच एजेंसियों की रेड हुई। भाजपा में शामिल होते ही वे पाक साफ बन गए।



Source link

Enable Notifications OK No thanks