Nawazuddin Siddiqui: ’अपने अभिनय में मैं कहानियों की संवेदनाएं जीता हूं, जरूरत है दमदार देसी कहानियों की’


नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मुंबई में गुरबत और शोहरत, दोनों दिन देखे हैं। वह दुनिया के इकलौते अभिनेता हैं जिनकी आठ फिल्में कान फिल्म फेस्टिवल तक पहुंचीं। इन दिनों वह फिर कान में हैं। भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल नवाजुद्दीन मानते हैं कि भारत की स्थानीय कहानियों में इतनी क्षमता है कि उनकी शोहरत पूरी दुनिया में फैल सके। नवाजुद्दीन सिद्दीकी से ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने उनके कान जाने से पहले ये खास मुलाकात मुंबई में की।

कहानियां ही असली सिनेमा

अगर आप विश्वसिनेमा की कालजयी कृतियों को देखेंगे तो पाएंगे कि उनमें मानवीय संवेदनाओं को पकड़ने की अद्भुत क्षमता है। एक कलाकार इन्हीं संवेदनाओं को ही तो परदे पर जीता है। मैं भी यही करता हूं। देसी कहानियों में वह ताकत है कि भारतीय सिनेमा को विश्व के किसी भी कोने में तारीफ मिलती है। अभिनेता को कहानी अच्छी मिले। उस कहानी के दर्शक दुनिया भर में फैले हों, यही तो रंगमंच की सीख है। नाटकों ने मेरे भीतर के अभिनेता को सक्षम बनाया है। मैं सिनेमा को भी रंगमंच का विस्तार ही मानता हूं। नाट्य कला ही एक ऐसी कला है जो किसी इंसान को एक जीवन में अनेक किरदार करने का मौका देती है।

दक्षिण का सिनेमा मुझे समझ नहीं आता

लोग अगर दक्षिण भारतीय फिल्में देख रहे हैं तो इसमें उन्हें कुछ न कुछ अच्छा ही लगता होगा। मुझसे पूछें तो मुझे इस तरह का दक्षिण भारतीय सिनेमा समझ नहीं आता। मैंने भी दक्षिण भारतीय फिल्में की हैं लेकिन ये चकाचौंध वाला सिनेमा मेरा सिनेमा नहीं है। मैं किरदारों पर ध्यान देता हूं। अभी जो फिल्में वहां की आ रही हैं, वे घटनाओं पर ध्यान देने वाली फिल्में हैं जिसमें हर पल दर्शकों को घटनाओं से विस्मित कर देने की कोशिश रहती है।

लेखन में बदलाव की जरूरत

हिंदी सिनेमा के लेखन में बदलाव की जरूरत का मैं भी समर्थक हूं। मेरा मानना है कि हाल के दिनों में फिल्मों को लिखने वाले किरदारों पर ध्यान कम दे रहे हैं। वे संवाद लिख रहे हैं, कहानी और पटकथा पर उनका ध्यान उतना नहीं है। लेखकों को किरदारों के अतीत, उनकी भाषा शैली, उनके हावभाव और उनकी शख्सीयत के कारकों पर ध्यान देना चाहिए। कोई किरदार कुछ कर रहा है तो क्यों कर रहा है, ये बहुत जरूरी है। जैसे ‘शोले’ में गब्बर का पहनावा, उसके चलने का ढंग, उसके नशा करने का तरीका, उसका अपना है। उसने ये सब क्यों अपनाया, उसके कारण हैं।

गलतियां जीवन का सबक हैं

मैं ये मानता हूं कि किसी भी किरदार को करते समय हर कलाकर पूरी मेहनत करता ही है। किसी किरदार में ढल जाना ही अभिनय है लेकिन कई बार ये कोशिशें नाकाम भी हो जाती हैं। हमसे जीवन में भी गलतियां होती हैं। अभिनय में भी हो जाती हैं। पर मेरे लिए ये गलतियां जीवन का सबक हैं। मैं उनको दोहराने से बचता हूं। गलतियां इंसान को बेहतर बनाती हैं, बशर्ते कि ये दोहराई न जाएं।



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