Power Crisis: आखिर क्यों छह साल के सबसे बड़े ऊर्जा संकट से गुजर रहा भारत, वर्क फ्रॉम होम कैसे जिम्मेदार और कहां हुई चूक?


न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Thu, 19 May 2022 09:00 PM IST

सार

अमर उजाला आपको उन सभी कारणों के बारे में बता रहा है, जिनकी वजह से इस बार विद्युत आपूर्ति में कमी को पिछले छह साल का सबसे बड़ा बिजली संकट कहा जा रहा है।

भारत में कोयला संकट बरकरार।

भारत में कोयला संकट बरकरार।
– फोटो : Amar Ujala

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विस्तार

भारत इस वक्त भीषण ऊर्जा संकट से गुजर रहा है। इसे भाजपा सरकार आने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा बिजली संकट भी कहा जा रहा है। दरअसल, इस बार जबरदस्त गर्मी के बीच दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश तक बिजली कटौती की शिकायतें सामने आई हैं। जहां पहले इसके लिए कोयला आपूर्ति की खराब व्यवस्था जिम्मेदार ठहराया जा रहा था, वहीं अब देश में ऊर्जा की बढ़ती खपत और लगातार नए रिकॉर्ड बनाते तापमान को भी विद्युत आपूर्ति में बड़ा बाधक बताया गया है। 

ऐसे में अमर उजाला आपको उन सभी कारणों के बारे में बता रहा है, जिनकी वजह से इस बार विद्युत आपूर्ति में कमी को पिछले छह साल का सबसे बड़ा बिजली संकट कहा जा रहा है। हम आपको बताएंगे कि भारत क्यों ऊर्जा संकट से गुजर रहा है? इस संकट से सबसे ज्यादा कौन प्रभावित हो रहा है? इससे निपटने के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं? और आखिर भविष्य में इस संकट से निपटने के लिए सरकार की क्या योजना है?

आखिर भारत में ऊर्जा संकट क्यों?

कोयला आपूर्ति में कमी के आरोपों के बीच सरकार ने व्यवस्था को कसने के लिए अतिरिक्त ट्रेनें चलाई हैं। हालांकि, बीते दिनों में भीषण गर्मी की वजह से घरों में एयर कंडीशनरों के इस्तेमाल में जबरदस्त इजाफा दर्ज किया गया है। इसके अलावा कोरोनावायरस महामारी से उबरे उद्योगों में बढ़ी गतिविधियों की वजह से भी अप्रैल-मई में ऊर्जा की मांग अपने रिकॉर्ड स्तर पर है। 

1. वर्क फ्रॉम होम के बीच बढ़ी खपत

बिजली की बढ़ी मांग के पीछे कोरोनावायरस महामारी के दौरान लागू हुआ हाइब्रिड वर्क मॉडल भी जिम्मेदार है। पिछले दो साल में करोड़ों भारतीयों ने वर्क फ्रॉम होम मॉडल को अपनाया है, जिसकी वजह से दिन के समय घरेलू विद्युत खर्च बढ़ा है। नतीजतन ज्यादातर पावर प्लांट्स में कोयले की सप्लाई और खपत का दायरा पहले से और ज्यादा बढ़ गया है। बताया गया है कि सरकार की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिशों के बावजूद पावर प्लांट्स में कोयले का औसत स्टॉक नौ साल में सबसे निचले स्तर पर है। 

2. कोयले को पावर प्लांट पहुंचाने के सीमित विकल्प

बिजली के इस संकट को दूर करने के लिए सरकार ने भी पूरी कोशिश की है। बीते दिनों में सरकारी कोयला कंपनी कोल इंडिया, जो कि देश में 80 फीसदी कोयले की सप्लाई करती है, उसकी तरफ से रिकॉर्ड उत्पादन किया गया है। हालांकि, इस बढ़े उत्पादन को पावर प्लांट्स में पहुंचाने में खासी दिक्कतें आ रही हैं। भारतीय रेलवे की तरफ से अतिरिक्त गाड़ियां चलाए जाने के बावजूद अभी भी कोयले की सप्लाई पूरी क्षमता से नहीं की जा पा रही है। 

समस्याओं से निपटने के लिए क्या है भारत की तैयारी?

जहां कोरोना महामारी के दौर में मोदी सरकार लगातार ग्रीन एनर्जी के प्रसार और कोयले के आयात को खत्म करने की तरफ कदम बढ़ाने की बात कह रही थी, वहीं अब डिमांड बढ़ने की वजह से नीति को बदला गया है और तीन साल के लिए विदेश से कोयला आयात की छूट दी गई है। इसके अलावा आयातित कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स को चालू रखने के लिए आपात कानून को मंजूरी दे दी गई है। गौरतलब है कि मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले के दाम उच्च स्तर पर होने की वजह से आयातित कोयले पर चलने वाले पावर प्लांट्स बंद पड़े हैं। 

दूसरी तरफ भारतीय रेलवे ने भी कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई यात्री ट्रेनों को रद्द किया है, ताकि मालगाड़ियों के जरिए कोयला पावर प्लांट्स तक जल्द से जल्द पहुंचाया जा सके। इसके अलावा सरकार अब 100 से ज्यादा उन कोयले की खदानों को दोबारा शुरू करने पर विचार कर रही है, जिन्हें पहले वित्तीय तौर पर अवहनीय घोषित किया गया था। 

संकट का असर किस-किस पर?

सर्वे प्लेटफॉर्म लोकलसर्किल्स के मुताबिक, देशभर में 35 हजार लोगों में आधों ने माना कि उन्हें इस महीने बिजली कटौती का सामना किया है। इसके अलावा तीन राज्यों में तो फैक्ट्रियों को इसलिए बंद करना पड़ा, क्योंकि बिजली की कमी की वजह से वे बाजार की मांगें पूरी नहीं कर पा रहे थे। अगर सिर्फ ओडिशा की ही बात कर लें, जो कि एल्युमिनियम और स्टील मिल्स का सबसे बड़ा केंद्र है, तो सामने आता है कि यहां अक्तूबर से मार्च के बीच बिजली की खपत 30 फीसदी तक बढ़ गई। यह देशभर में बिजली की खपत में हुई बढ़ोतरी का 10 गुना रहा। 

अब आगे क्या?

अधिकारियों और विश्लेषकों का मानना है कि भारतीयों को आने वाले दिनों में और ज्यादा बिजली कटौती का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि मांग के 38 साल में सबसे तेजी से बढ़ने की संभावना है। अनुमान लगाया जा रहा है कि कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स से विद्युत उत्पादन में 17.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज होगी। ऐसे पावर प्लांट्स पहले ही सालाना स्तर पर देश के 75 फीसदी विद्युत उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। दूसरी तरफ जून-सितंबर में आने वाला मानसून सीजन भी दिक्कतें बढ़ा सकता है, क्योंकि इस दौरान बारिश की वजह से कई राज्यों में रेल सेवा ठप पड़ सकती है। 



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