Opinion: तमाम चुनौतियों के बीच फर्टिलाइजर क्षेत्र में देश को ऐसे आत्मनिर्भर बना रहे हैं PM मोदी


नई दिल्ली. कोविड-19 महामारी (Covid-19 Epidemic) की वजह से पूरी दुनिया में उर्वरक उत्पादन, आयात और परिवहन (Fertilizer production Imports and Transportation) व्यापक तौर पर प्रभावित हुआ. बीते कुछ महीनों से देश में उर्वरक संकट (Fertilizer Crisis) गहराया हुआ था. कोरोना काल में भी मोदी सरकार (Modi Government) देश को उर्वरक क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर करने में लगातार जुटी रही. इस दौरान केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया (Mansukh Mandaviya) ने कई अहम फैसले लिए. अब इसका प्रभाव साफ देखा जा रहा है. बता दें कि चीन जैसे प्रमुख निर्यातकों (जो भारत में फॉस्फेटिक आयात में 40 से 45 प्रतिशत का योगदान देता है) ने अपने निर्यात को कम कर दिया. यह चीन में उर्वरक उत्पादन में कटौती और घरेलू आवश्यकता को पूरा करने को प्राथमिकता देने की वजह से हुआ. लेकिन, मोदी सरकार ने पूरे महामारी के दौरान लॉजिस्टिक चेन में व्यवधान को झेलते हुए, वैश्विक रूप से शिपिंग लाइनों में आवाजाही और इनकी उपलब्धता दोनों को सुनिश्चित किया.

बता दें कि कोरोना काल में जहाजों के लिए औसत माल भाड़ा चार गुना तक बढ़ गया है. इससे आयातित उर्वरकों की कीमत बढ़ गई. लेकिन, मोदी सरकार ने यूरोप, अमेरिका, ब्राजील और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों ने उच्च कीमतों पर भारी मात्रा में उर्वरक आयात करना जारी रखा. कृषि क्षेत्र विशेष रूप से मकई की खेती ने अभूतपूर्व उछाल दर्ज किया. कई तरफ से प्रतिस्पर्धी मांग बढ़ने की वजह से भारत के लिए एक अजीब चुनौती पैदा हो गई.

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मार्च से 50 किलो के डीएपी खाद के बैग की कीमत 150 रुपए बढ़ गई है. (सांकेतिक फोटो साभार सोशल मीडिया)

उर्वरक की मांग-आपूर्ति को ऐसे सुनिश्चित किया
मंत्रालय के मुताबिक, इस मांग-आपूर्ति समीकरण के परिणामस्वरूप एक तरफ तो उर्वरक की उपलब्धता कम हुई, वहीं दूसरी तरफ निरंतर मूल्य वृद्धि हुई. ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो उर्वरक क्षेत्र में इस प्रकार की चुनौती 2007-2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखी गई थी. हालांकि, संकट एक साल से भी कम समय तक चला और स्थिति सामान्य हो गई थी. लेकिन, इस बार संकट 2020 से लेकर आज तक बना हुआ है.

मोदी सरकार ने दोतरफा रणनीति बनाई
डीएपी, यूरिया जैसे उर्वरकों और अमोनिया- फॉस्फेटिक एसिड जैसे कच्चे माल की कीमतों में 250 से 300 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई. भारत सरकार इन चुनौतियों का समाधान करने में लगातार सक्रिय रही है. सरकार ने इसके लिए दोतरफा रणनीति अपनाई है. एक ओर भारत सरकार ने आयात निर्भरता वाले उर्वरकों की पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने के लिए आयातक कंपनियों को एकजुट किया. वहीं, दूसरी तरफ यह सुनिश्चित किया कि मूल्य वृद्धि का असर भारतीय किसानों पर नहीं पड़े. सरकार ने अतिरिक्त सब्सिडी देकर किसानों को मूल्य वृद्धि के प्रभाव से बचाया.

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किसानों को कीमतों में बढ़ोतरी के प्रभाव से बचाने के लिए 2021 में दो बार सीजन के हिसाब से सब्सिडी की घोषणा की.

किसानों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ने दिया
मोदी सरकार ने मूल्य वृद्धि का बोझ सरकार ने खुद पर ले लिया. किसानों को कीमतों में बढ़ोतरी के प्रभाव से बचाने के लिए 2021 में दो बार सीजन के हिसाब से सब्सिडी की घोषणा की. भारत सरकार ने उर्वरक मंगाने की पूरी प्रक्रिया का सूक्ष्म प्रबंधन किया और संबंधित राज्य सरकारों से नियमित समन्वय करके यह सुनिश्चित किया कि देश के कोने-कोने में उर्वरक उपलब्ध हो. चीन से आयात में कमी आने के बाद भारत ने रूस, मोरक्को, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजराइल, कनाडा आदि जैसे वैकल्पिक स्रोतों की संभावनाओं को टटोला.

आयात ऐसे प्रभावित हुआ
बता दें कि एनएफएल, आरसीएफ जैसे भारतीय पीएसयू ने रूस से डीएपी और एनपीके आयात के लिए दीर्घकालिक समझौते किए. पिछले रबी सीजन के दौरान कुछ उर्वरक आया और वर्तमान खरीफ सीजन के दौरान अधिक मात्रा में उर्वरक आने की उम्मीद है. मोरक्को की ओसीपी फोस्फैटिक उर्वरकों का प्रमुख निर्यातक है. इससे संपर्क करके पिछले वर्ष के दौरान 15 एलएमटी (डीएपी, फॉस्फेटिक एसिड) का आयात किया गया.

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यूरिया की एक बोरी पर सरकार करीब 3,700 रुपये की सब्सिडी देती है.

दूसरे देशों की तुलना में क्या फर्क पड़ा
भारत की सफलता इस तथ्य में निहित है कि ब्राजील, यूरोप, अमेरिका आदि जैसे प्रमुख उपभोक्ता देशों की तुलना में भारत ने विभिन्न उर्वरकों और कच्चे माल को 20 प्रतिशत के मूल्य लाभ पर हासिल किया. यह दीर्घकालिक समझौतों और सरकारों के बीच (जी2जी) सीधे अनुबंधों की वजह से संभव हो पाया.

रूस-यूक्रेन संकट का क्या प्रभाव पड़ा
रूस-यूक्रेन संकट ने रूस से विशेष रूप से डीएपी और एनपीके की आपूर्ति को फिर से बाधित कर दिया. रूस से ओसीपी मोरक्को को अमोनिया की आपूर्ति न होने के कारण भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है. ओसीपी मोरक्को से आपूर्ति में गिरावट की आशंका की वजह से भारत ने जॉर्डन, इजराइल, सऊदी अरब, कनाडा आदि देशों से पीऐंडके उर्वरकों की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए बातचीत कर रहा है और इन देशों से भारत को उर्वरक मिलने की संभावना है.

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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से उर्वरकों कीमतों में 10 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हो चुका है.

प्री- पोजिशनिंग लक्ष्य ऐसे हासिल किया
गौरतलब है कि जब दुनिया भर के देश उर्वरकों की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, भारत ने विभिन्न उर्वरकों को पर्याप्त रूप से प्राप्त करने की व्यवस्था पहले से ही कर ली है. प्री-पोजिशनिंग लक्ष्य हमेशा मौसमी आवश्यकता के 25 प्रतिशत के स्तर पर होती है, जो वर्तमान खरीफ 2022 सीजन के लिए 35 प्रतिशत है.

मंत्रालय की भूमिका
मोदी सरकार राज्यों को एनपीके और एसएसपी जैसे वैकल्पिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए संवेदनशील बना रही है. भू-राजनीतिक (Geo-Political) कारकों के कारण भविष्य में विश्व स्तर पर किसी भी अप्रिय स्थिति की आशंका के बीच भारत आत्मनिर्भरता के पथ पर आगे बढ़ेगा. रॉक फॉस्फेट जैसे कच्चे माल के घरेलू खनन को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर इसकी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. इसके लिए अंतर-मंत्रालयी परामर्श शुरू हो गया है.

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पीएम किसान योजना के तहत अब तक 10 किस्त जारी हो चुकी हैं

इन प्लांट्स को अब शुरू करने की कवायद
यूरिया के मामले में मैटिक्स, रामागुंडम, गोरखपुर जैसे प्लांट्स शुरू होने से आत्मनिर्भरता को बल मिला है. हालांकि, ईरान से सस्ते यूरिया आयात पर प्रतिबंध अभी भी चुनौतियों का सामना कर रहा है. इस बीच भारत सरकार आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सिंदरी और बरौनी में दो अन्य इकाइयों को पुनर्जीवित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है.

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भारत ने प्रति वर्ष 10 एलएमटी यूरिया प्राप्त करने के लिए ओमान के साथ दीर्घकालिक आपूर्ति सौदा किया है. पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान, यूरिया उत्पादन इकाइयों को उनकी निर्धारित वार्षिक क्षमता से अधिक उत्पादन करने की अनुमति दी गई थी, जिससे यूरिया उत्पादन में वृद्धि हुई है.

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