आपदा में अवसरः महामारी में हर दूसरे दिन बने नए अरबपति, महंगाई की वजह से बढ़ी धनकुबेरों की संपत्ति


नई दिल्ली. कोरोना की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था संकट में फंस गई. इस कारण दुनियाभर में महंगाई बढ़ी और लोग परेशान हैं. वहीं, दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिनके लिए यह आपदा अवसर साबित हुई है. खासकर, अमीरों के लिए क्योंकि कीमतें बढ़ने से उनकी संपत्ति में उछाल दर्ज किया जा रहा है.

धनकुबेरों के लिए यह आपदा अवसर बनकर आई है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस महामारी ने हर 30 घंटे में एक नया अरबपति बनाया है. दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम को लेकर ऑक्सफैम की ओर से जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

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573 नए अरबपति बने
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य पदार्थों और ऊर्जा जैसी आवश्यक वस्तुओं की तेजी से बढ़ती कीमतों की वजह से इन क्षेत्रों के अरबपतियों की संपत्ति में हर दूसरे रोज 1 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो रही है. रिपोर्ट के मुताबकि, महामारी के दौरान हर 30 घंटे में एक नए अरबपति बने हैं. पूरी दुनिया में इस दौरान 573 नए अरबपति बने हैं. फोर्ब्स के मुताबिक, भारत में अरबपतियों की संख्या 140 से बढ़कर 166 हो गई है.

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ऑक्सफैम की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने एक बयान में कहा कि महामारी में खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों में भारी वृद्धि से अरबपतियों को बोनस की तरह मुनाफा हुआ. इस दौरान कामगारों ने खूब मेहनत की मगर उन्हें उनके काम के एवज में कम पैसे मिले. उन्हें कम पैसे पर काम करने के लिए मजबूर होना पडा.

अमीरों-गरीबों के बीच तेजी से बढ़ रही असमानता
रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूयॉर्क से लेकर नई दिल्ली तक आम लोग महंगाई से परेशान हैं. जबकि कोरोना महामारी के पहले 2 साल यानी 24 महीनों में अरबपतियों की संपत्ति पिछले 23 वर्षों में सबसे अधिक बढ़ी है. दुनिया के अरबपतियों की कुल संपत्ति कुल वैश्विक अर्थव्यवस्था (जीडीपी) के 13.9 फीसदी के बराबर हो गई है.  ज्यादा आय और कम आय वाले देशों के बीच महामारी से पहले असमानता घट रही थी लेकिन कोरोना ने इसे पलट दिया है. इनके बीच फिर से असमानता बढ़ने लगी है.

गंभीर खाद्य संकट में फंस सकते हैं गरीब
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक खाद्य कीमतों में पिछले साल 33.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस साल यानी 2022 में भी इसमें 23 फीसदी वृद्धि की उम्मीद है. दुनियाभर में बेतहाशा बढती महंगाई 26 करोड़ से अधिक लोगों के लिए गंभीर खाद्य संकट पैदा कर सकती है. अमीर और गरीब दोनों देशों में कम आमदनी वाले लोगों का भोजन पर खर्च बहुत अधिक होता है.

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