Parenting Puzzle: आखिर कैसे पहचाने बच्‍चों के दिल का दर्द बताने वाले इशारे


नई दिल्‍ली. बच्‍चों को कई बार ऐसे कुट अनुभवों का सामना करना पड़ता है, जिन पर समय रहते अभिभावकों ने ध्‍यान नहीं दिया तो उनकी परछाई ताउम्र उनके साथ चलती है. यह परछाई बच्‍चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर असर तो डालती ही है, साथ ही कई बार बच्‍चों को पूरी उम्र के लिए एक घुटन में छोड़ कर चली जाती है.

कटु अनुभवों की परछाई से मिली यह घुटन बच्‍चों को न केवल अपनों से बहुत दूर कर देती है, बल्कि उनके मनोबल और आत्‍मविश्‍वास को घुटनों पर लाकर खड़ा कर देती है.ऐसे में जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्‍चों के हर दिन बदलते व्‍यवहार पर न केवल नजर रखे, बल्कि कुछ भी असामान्‍य दिखने पर खुल कर बच्‍चों से उस बारे में बात करें.

बच्‍चों के इन कडवे अनुभवों को लेकर इंद्रप्रस्‍थ अपोलो हॉस्पिटल के वरिष्‍ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेष झा का कहना है कि सबसे पहले हम इस बात को न झुठलाएं कि कड़वे अनुभवों का सामना सिर्फ समाज के किसी खास वर्ग के बच्‍चों को ही करना पड़ता है. यह गलतफहमी है कि हमारे बच्‍चे किसी कड़वे अनुभवों की चपेट में नहीं आ सकते हैं.

इस बात को माता-पिता और अभिभावकों को खुलेपन से स्‍वीकार करना चाहिए कि ये कड़वे अनुभव न केवल एक सच है, बल्कि समाज में इसकी वास्‍तविकता एग्जिस्‍ट करती है. बच्‍चों के साथ होने वाले सामाजिक कड़वे अनुभवों को लेकर हमें जागरूकता पैदा करनी चाहिए और उसको लेकर स्‍वीकार्यता भी पैदा करनी चाहिए.

बच्‍चों के व्‍यवहार में झलकते हैं उनके कटु अनुभव
डॉ. शैलेष झा के अनुसार, अभिभावकों के लिए जरूरी है कि बच्‍चों के व्‍यवहार में होने वाली दैनिक बदलाव के बारे में लगातार नजर रखें, क्‍योंकि इन कटु अनुभवों के साइलेंट फीचर्स हमारे बच्‍चों के व्‍यवहार में साफ तौर पर झलकना शुरू हो जाते हैं. कटु अनुभवों का सामना करने वाले बच्‍चों के लिए शुरुआती दौर बेहद दहशत भरा होता है.

उनकी प्रतिक्रियाएं बेहद चौंकाने वाली होती हैं. बिना किसी कारण बच्‍चे जोर-जोर से रोने लगते हैं. बच्‍चों को नींद नहीं आती है, सभी के साथ हमेशा हिलमिल कर रहने वाले बच्‍चे अचानक से करीबी लोगों को नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं और सा‍माजिक रूप से दूरी बनाना शुरू कर देते हैं.

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उन्‍होंने बताया कि लगातार कड़वे अनुभवों का सामना कर रहे बच्‍चे अचानक स्‍कूल जाने से या सामाजिक समारोहों से भाग लेने से बचने लगते हैं. रिश्‍तों को लेकर उनका लगाव धीरे-धीरे कम होता जाता है. स्‍कूल तो जाते हैं, लेकिन उनके मार्क्‍स या ग्रेड लगातार कम होते जाते हैं. चीजों में पहले जैसी रुचि नहीं लेते हैं, खुद में गुमसुम रहने लगते हैं आदि. इन लक्षणों की आसानी से पहचान कर बच्‍चों के साथ हो रहे कड़वे अनुभवों की पहचान का पता लगा सकते हैं.  समय रहते अभ‍िभावकों ने बच्‍चों पर ध्‍यान नहीं दिया तो इसके गंभीर परिणाम नजर आना शुरू हो जाते हैं और यह परिणाम हर मामले में अलग अलग हो सकते हैं. हो सकता है कुछ बच्‍चे आपराधिक दुनिया की तरफ अपना रुख कर ले, कुछ बच्‍चे नशे की लत में फंस जाएं

बच्‍चों का जीवन बचाने के लिए ध्‍यान रखनी होंगी ये बातें
डॉ. शैलेष झा बताते हैं कि कड़वे अनुभव झेलने वाले कुछ बच्‍चों में लंबे समय तक एंजाइटी की समस्‍या देखी जाती है. ऐसे मामलों में बच्‍चों का डीप डिप्रेशन में जाना बेहद कॉमन है. इसके अलावा, इन कटु अनुभवों का असर सीधे तौर पर बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व पर भी देखना शुरू हो जाता है. कई बार देखा जाता है कि रिश्‍तों पर से भरोसा टूट जाने की वजह से उनका व्‍यवहार बेहद रुखा हो जाता है.

कई बार यह व्‍यवहार ताउम्र बच्‍चों के साथ सफर करता है. इसी तरह, कई बच्‍चों का मनोबल टूटने की वजह से उनका आत्‍मविश्‍वास भी कमजोर पड़ने लगता है. योग्‍यता और जानकारी होने पर भी वह अपनी बात लोगों के सामने सही तरह से नहीं रख पाते हैं. इस तरह के बहुत से ऐसे प्रभाव हैं जो बचपन में कटु अनुभव का सामने करने वाले बच्‍चों में ताउम्र देखने को मिलते हैं.

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इसीलिए जरूरी है कि आप बच्‍चों पर बिना दबाव बनाए हुए, उनके दिल की बात जानने की कोशिश करें. हर उस रिश्‍ते को टटोलने की कोशिश करें, जो आपके बच्‍चे को परेशान कर रहा है. यदि वह अचानक से स्‍कूल न जाने की जिद कर रहा है तो बच्‍चे के साथ बिना किसी जोर जबरदस्‍ती उस वजह को मानोवैज्ञानिक तौर पर पता लगाने की कोशिश करें, जो आपके बच्‍चे को परेशान कर रहा है.

यदि आपकी तमाम कोशिशों के बाद भी बच्‍चे का व्‍यवहार आपकी समझ से बाहर हो रहा है तो आपको किसी सोइकोलॉजिस्‍ट या चाइल्‍ड मेंटल हेल्‍थ स्‍पेशलिस्‍ट से संपर्क कर अपने बच्‍चे की परेशानी की जड़ तक पहुंचना चाहिए, तभी आप न केवल अपने बच्‍चे के जीवन को सुरक्षित रख पाएंगे, बल्कि दूसरे बच्‍चोंको ताउम्र दर्द देने वाले असहनीय कटु अनुभवों से बचा सकेंगे.

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