Parenting Puzzle: क्‍या अभिभावकों की ऐसी ‘संगति’ बच्‍चों को बना रही है लो-कॉन्फिडेंस का शिकार?


नई दिल्ली. शायद इस बात से आप सभी सहमत होंगे कि जैसी हमारी संगति, वैसा हमारा भविष्‍य. आप शायद इस बात से भी इंकार नहीं करेंगे कि संगति न केवल हमारे स्‍वभाव, आचरण और चरित्र को प्रभावित करती है, बल्कि हमारे अच्‍छे या कमजोर मनोबल का आधार भी बनती है.

लिहाजा, हम सब अपने बच्‍चों को लगातार यह समझाने का प्रयास करते है‍ं कि उनकी संगति अच्‍छी होनी चाहिए. अच्‍छे बच्‍चों से संगति रहेगी तो अच्‍छे बनेंगे, संगति बुरी रही तो नतीजे भी बुरे ही होंगे. इस सब के बीच आपने कभी सोचा है कि बच्‍चों की सबसे पहली ‘संगति’ किसके साथ होती है?

तो इस सवाल का जवाब है कि बच्‍चों की सबसे पहली संगति अपने माता-पिता के साथ होती है. बचपन में अपने माता-पिता या अन्‍य अभिभावकों का व्‍यवहार देखकर ही बच्‍चे अपनी जिंदगी में हर दिन एक नया अनुभव शामिल करते हैं.

यही अनुभव न केवल बच्‍चों की जिंदगी की नई इबारत लिखता है, बल्कि उनके मनोबल को भी निर्धारित करता है. लिहाजा, बच्‍चों के साथ अभिभावकों की पहली संगति बेहद सकारात्‍मक संवाद और सकारात्‍मक भावों से भरी होनी चाहिए. ऐसा नहीं होने पर बच्‍चे ताउम्र के लिए अपने आत्‍मविश्‍वास और मनोबल को खो सकते हैं.

यह भी पढ़ें: मेंटल हेल्‍थ से जुड़ी इन परेशानियों से जूझ रही है 35% आबादी

क्या है माता-पिता या अभिभावकों की सबसे बड़ी गलतफहमी
इंद्रप्रस्‍थ अपोलो हॉस्पिटल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेष झा के अनुसार, माता-पिता या अभिभावकों की सबसे बड़ी गलतफहमी बच्‍चों की समझ को लेकर है. ज्‍यादातर लोग यही मानते हैं कि ‘बच्‍चे अभी बहुत छोटे हैं, वह उनकी बात नहीं समझ पाएंगे’. इस गलतफहमी की वजह से दो बातें पैदा होती हैं.

पहली यह कि बच्‍चों को नासमझ समझ कर उनके सामने आप बहुत से ऐसे क्रियाकलाप करने लगते हैं, जो बच्‍चों के बाल मन पर बुरा असर डालते हैं और उनके जहन में लगातार घर करते जाते हैं. जबकभी एक सी भावना वाले कई बच्‍चे मिलते हैं, तब सालों से मन के सतह जमीं ये बातें उनके व्‍यवहार में नजर आने लगती है.

जबकि दूसरी बात में, माता-पिता या अभिभावक अपने बच्‍चों को नासामझ मानकर सिर्फ यही बताते हैं कि उन्‍हें क्‍या करना है और क्‍या नहीं करना है. उन्‍हें यह समझाने की कोशिश नहीं करते हैं कि वह उन्‍हें क्‍यों करना है या नहीं करना है.

माता-पिता की इन बातों से बच्‍चों के मन-मस्तिष्‍क, निर्णय लेने की क्षमता और उनके आत्‍मविश्‍वास में नाकारात्‍मक असर पड़ता है. मौजूदा हालात में अभिभावकों को यह समझना होगा कि बेहद छोटी उम्र के बच्‍चों को भी इतना एक्‍सपोजर मिला हुआ है कि वह बहुत कुछ समझने लगे हैं. आप उनसे संवाद कर अपनी बात को समझा सकते हैं.

यह भी पढ़ें: बिगड़ते मेंटल हेल्‍थ की आहट हो सकती हैं बच्‍चों की ये हरकतें, जानें एक्‍सपर्ट की राय

क्यों और कैसे बच्चों के आत्मविश्वास को हम करते हैं प्रभावित
इंद्रप्रस्‍थ अपोलो हॉस्पिटल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेष झा के अनुसार, अक्‍सर अभिभावक बच्‍चों को अंतिम निर्णय के बारे में बताते हैं. कल से यह करना है या आज से यह नहीं करना है. एक बार फिर मैं यही कहूंगा कि बच्‍चों को यह नहीं बताया जाता कि क्‍यों करना है और क्‍यों नहीं करना है.

इसी तरह, बच्‍चों को यह पता नहीं होता कि उनकी किस बात पर तारीफ हो जाएगी और किस बात पर डांट पड़ जाएगी. बच्‍चों से संवाद की कमी का नतीजा है कि बच्‍चे हमेशा असमंजस में रहते हैं कि कोई बात अपनी माता-पिता को बताना चाहिए कि नहीं.

डॉ. शैलेष झा का माता-पिता या अभिभावकों से कहना है कि आप बच्‍चों से जो भी अपेक्षा करते है, उसके बारे में अपने बच्‍चे से बात करें. उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें. फिर उसे बताएं कि उसे भविष्‍य में कैसे और क्‍यों करना है.

वर्तमान समय में बच्‍चों के पास जैसा माहौल है, वह आपकी बात को समझेंगे. ऐसा नहीं करने पर आप अपने बच्‍चों के निर्णय लेने की क्षमता और आत्‍मविश्‍वास को प्रभावित करेंगे. इतनी ही नहीं, आपके बच्‍चे घबराहट और अवसाद जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में भी आ सकते हैं.

Tags: Apollo Hospital, Health News, Mental health, Mental Health Awareness, Parenting tips, Sehat ki baat

image Source

Enable Notifications OK No thanks