विपक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने यशवंत सिन्हा को चुनौती देने के लिए द्रौपदी मुर्मू को आगे किया है। इस खींचतान के बीच सबसे दिलचस्प बयान यशवंत सिन्हा के बेटे और भाजपा नेता जयंत सिन्हा का आया है। जयंत ने कहा है कि वे भाजपा सांसद के तौर पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाएंगे। उन्होंने कहा कि लोग उन्हें एक बेटे के तौर पर न देखें।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर सिन्हा परिवार में यह स्थिति आई कैसे? 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से ही कैसे यशवंत सिन्हा लगातार भाजपा से दूर होते चले गए? जयंत कैसे भाजपा में बने रहे? पिता-पुत्र कब-कब आमने-सामने आए?
यशवंत-जयंत के लिए कैसे पैदा हुई ये स्थिति?
जयंत सिन्हा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद से ही पिता यशवंत सिन्हा के साथ राजनीति से जुड़े रहे। 1992 में भाजपा में शामिल होने के बाद यशवंत सिन्हा पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता रहे और आडवाणी के साथ उनकी करीबी जगजाहिर रही। 1998 में जयंत ने अपने पिता की लोकसभा सीट हजारीबाग (झारखंड) से सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने हजारीबाग से लेकर रामगढ़ जिले तक तक में सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स खड़े किए और बुनियादी कार्य कराए।
यशवंत सिन्हा का भाजपा आलाकमान से पहली बार टकराव 2014 में देखने के मिला, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने हर परिवार से किसी एक सदस्य और 75 साल से कम उम्र के व्यक्ति को ही टिकट देने का नियम रखा।
जब जेटली की आलोचना पर आमने-सामने आ गए पिता-पुत्र
भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में यशवंत सिन्हा की जगह जयंत को पार्टी की तरफ से हजारीबाग से प्रत्याशी बनाया। माना जाता है कि भाजपा के इस फैसले के बाद से ही यशवंत सिन्हा पार्टी से नाराज हो गए। 2015 में एक मौके पर उन्होंने यहां तक कह दिया था कि जो भी नेता 75 साल के ऊपर थे, उन्हें 26 मई 2014 के बाद ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।
यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार पर कई और मौकों पर भी हमले बोले। 2017 में एक मौके पर उन्होंने एक अखबार में लेख के माध्यम से यहां तक कह दिया था कि अरुण जेटली वित्त मंत्री रहते हुए भारत की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने जीएसटी को लेकर भी सरकार को आड़े हाथों लिया।
तब पहली बार जयंत सिन्हा ने भी एक दूसरे अखबार में लेख लिखकर पिता के आरोपों पर पलटवार किया था। जयंत ने कहा था कि आज जो अर्थव्यवस्था भारत में बन रही है, वह ज्यादा पारदर्शी, वैश्विक रूप से प्रतियोगी और उन्नयन पर आगे बढ़ रही है। यह अर्थव्यवस्था सभी भारतीयों को बेहतर जीवन प्रदान करने वाली है।
यशवंत सिन्हा ने अप्रैल 2018 में भाजपा से इस्तीफा दे दिया। जुलाई 2018 में जयंत सिन्हा ने अपने संसदीय क्षेत्र में कथित तौर पर लिंचिंग के दोषियों का कार्यक्रम में स्वागत किया था। इस पर यशवंत सिन्हा ने ट्वीट कर जयंत को इशारों में नालायक करार दे दिया था। उन्होंने कहा था- “पहले मैं लायक बेटे का नालायक बाप था। लेकिन अब यह किरदार बदल चुके हैं। मैं अपने बेटे की हरकत को मंजूर नहीं कर सकता। लेकिन मैं जानता हूं कि इससे सिर्फ अपशब्दों का इस्तेमाल बढ़ेगा। आप कभी जीत नहीं सकते।”
यशवंत सिन्हा ने बाद में इस बयान पर सफाई देते हुए कहा, “जब मैंने वर्तमान सरकार के खिलाफ बोलना शुरू किया तो अनेक लोगों ने कहा कि लायक बाप के नालायक बेटे के बारे में सुना था लेकिन लायक बेटे के नालायक बाप का यह पहला उदाहरण है। अब लोग यह कह रहे हैं कि यशवंत का बेटा ऐसा कैसे निकला। मेरे ट्वीट के यही पृष्ठभूमि थी।” जयंत को इस पूरे विवाद पर माफी भी मांगनी पड़ी।
इससे दो महीने पहले संडे स्टैंडर्ड को दिए इंटरव्यू में भी यशवंत सिन्हा ने कहा था कि घर पर उनके और जयंत के बीच बिल्कुल सामंजस्य नहीं बैठता। उन्होंने साफ किया था कि पहले दोनों के बीच पिता-पुत्र का जो रिश्ता था, उसमें अब खलल पड़ा है।
यशवंत सिन्हा का कहना था कि उन्होंने जब भी राष्ट्रीय अहमियत का मुद्दा उठाया था, तब भाजपा ने जयंत को उनसे टक्कर लेने के लिए उतार दिया। यह सीधे तौर पर बाप-बेटे के बीच विवाद शुरू कराने के मकसद से किया गया। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि मैं और मेरा बेटा दो अलग व्यक्ति हैं। इसलिए मैं अपने दिमाग से काम करता हूं और शायद वह अपने दिमाग से।
2019 के चुनाव में भी दिखी थी दूरियां
यशवंत सिन्हा और जयंत के बीच राजनीतिक तौर पर दूरियां 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी दिखीं। एक मौके पर जब जयंत से पूछा गया था कि यशवंत सिन्हा 2014 की तरह उनके लिए प्रचार नहीं कर रहे और इस बार उन्हें अकेले ही मैदान में उतरना पड़ रहा है।
इस पर जयंत ने कहा था कि मैंने अपने पिता का आशीर्वाद लिया है। हमारे बीच कोई राजनीतिक या निजी दूरी नहीं है। मैंने अपना चुनाव अभियान उनसे आशीर्वाद लेने के बाद शुरू किया है। जयंत के इस बयान से कुछ समय पहले ही यशवंत सिन्हा ने हजारीबाग में बेटे के लिए चुनावी रैली में हिस्सा लेने के सवाल को टाल दिया था और कहा था कि अभी इसका जवाब देने का सही समय नहीं है।