न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Mon, 18 Apr 2022 06:50 PM IST
सार
डब्ल्यूएचओ का मॉडल क्या है? इस मॉडल के आधार पर किस देश में कितनी मौतों का अनुमान है? भारत ने इस मॉडल को लेकर विरोध क्यों जताया है? क्या और किसी देश ने भी डब्ल्यूएचओ के इस मॉडल का विरोध किया है? आइये समझते हैं…
डब्ल्यूएचओ के मॉडल को भारत ने किया खारिज।
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विस्तार
दुनिया में कोरोना की वजह से अब तक 62 लाख से ज्यादा मौतें दर्ज हो चुकी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस महामारी से हुई अतरिक्त मौतों को गिनने के लिए गणतीय मॉडल बनाया है। इस मॉडल के आधार पर दावा किया गया है कि भारत में कोरोना की वजह से अब तक 35 लाख से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। हालांकि, भारत ने डब्ल्यूएचओ के इस मॉडल को खारिज कर दिया है। इस रिपोर्ट को खारिज करने की वजह इसके दो अलग-अलग आधार हैं।
डब्ल्यूएचओ का मॉडल क्या है? इस मॉडल के आधार पर किस देश में कितनी मौतों का अनुमान है? भारत ने इस मॉडल को लेकर विरोध क्यों जताया है? क्या और किसी देश ने भी डब्ल्यूएचओ के इस मॉडल का विरोध किया है? आइये समझते हैं…
डब्ल्यूएचओ का मॉडल क्या है?
कोरोना से कुल मौतों के लिए डब्ल्यूएचओ ने जो गणतीय मॉडल बनाया, उसमें देशों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में शामिल देशों ने जितनी मौतें रिपोर्ट की हैं उन्हें ही वास्तविक मौतों का आंकड़ा माना गया है। जबकि, दूसरी श्रेणी में शामिल देशों में जितनी मौतें रिपोर्ट हुईं उन पर एक गणतीय मॉडल लगाकर उसमें मौतें जोड़ी गईं। भारत को दूसरे श्रेणी में रखा गया है।
दरअसल, सारा विवाद अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की एक रिपोर्ट के बाद शुरू हुआ। इस रिपोर्ट में कहा गया कि डब्ल्यूएचओ ने दुनियाभर में कोरोना से हुई मौतों का गणतीय आधार पर आंकलन किया है। इसके मुताबिक, इस महामारी से अब तक करीब डेढ़ करोड़ लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यानी, दुनियाभर के देशों द्वारा रिपोर्ट हुई कुल 62 लाख मौतों से दोगुना लोगों की कोरोना ने जान ली। इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि भारत के विरोध के कारण डब्ल्यूएचओ की ओर से इन आंकड़ों को जारी करने में महीनों की देरी हुई। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत का ये विरोध कोरोना से हुई मौतों को छुपाने की कोशिश है। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत इन आंकड़ों को जारी करने में बाधा बन रहा है।
इस मॉडल के आधार पर कहां कितनी मौतों का अनुमान है?
जिन देशों को दूसरी श्रेणी में शामिल किया गया है वहां कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा बढ़ाया गया है। कुल मिलाकर करीर 88 लाख अतिरिक्त मौतें होने की बात इसमें कही गई है। 88 लाख में से करीब 35 लाख मौतें अकेले भारत में जोड़ी गई हैं। भारत के अलावा किन देशों में कितनी मौतें हुई हैं इसका जिक्र एनवाईटी की रिपोर्ट में नहीं है। यही, भारत की आपत्ति की वजह है। एनवाईटी की रिपोर्ट पर भारत सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। भारत ने कहा है कि हमारी आपत्ति परिणाम (जो कुछ भी हो सकता है) के लिए नहीं बल्कि इसके लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली के लिए है। भारत ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि कि न्यूयॉर्क टाइम्स भारत के संबंध में अधिक कोविड-19 मृत्यु दर के कथित आंकड़े प्राप्त कर सकता था, लेकिन वह ‘अन्य देशों के अनुमानों को जानने में असमर्थ’ रहा है।
भारत इस रिपोर्ट का विरोध क्यों कर रहा है?
भारत का कहना है कि महामारी के दौरान कभी भी भारत से सभी राज्यों में संक्रमण की दर एक जैसी नहीं रही। भारत के भीतर कोविड-19 संक्रमण दर में इस बदलाव पर मॉडलिंग के दौरान गौर नहीं किया गया। भारत के 18 राज्यों के अपुष्ट आंकड़े उपयोग किए गए। जबकि, भारत में आंकड़ों को जुटाने की मजबूत प्रणाली है, इसके बावजूद भारत को श्रेणी दो में रखना और अपुष्ट आंकड़ों से मॉडल बनाने की वजह साफ नहीं है। भारत का कहना है कि श्रेणी एक देशों द्वारा जारी किए गए आंकड़ों को इस्तेमाल हुआ। जब भारत में आंकड़े जुटाने की मजबूत व्यवस्था है फिर भी विश्विक स्वास्थ्य अनुमान का उपयोग क्यों हुआ?
भारत का कहना है कि जो मॉडल कम आबादी वाले देशों पर फिट है उसी मॉडल से भारत जैसे भौगोलिक आकार और जनसंख्या वाले देश के लिए सांख्यिकीय मॉडल का अनुमान कैसे लगाया गया है? भारत का कहना है कि 1.18 करोड़ की आबादी वाले ट्यूनेशिया के लिए जो मॉडल लगाया गया वही मॉडल 130 करोड़ आबादी वाले भारत के लिए भी कैसे सही हो सकता है। इराक जैसे आपातकाल के दौर से गुजर रहे देश को पहली श्रेणी में रखने पर भी भारत में सवाल उठाए हैं।
अपनी आपत्ति में भारत ने कहा कि अगर ये मॉडल सटीक एवं विश्वसनीय है तो इसे पहली श्रेणी के सभी देशों के लिए उपयोग करते हुए प्रमाणित किया जाना चाहिए और सभी सदस्य देशों के साथ उसके नतीजे को साझा किया जा सकता है।
क्या सिर्फ भारत ही डब्ल्यूएचओ के इस मॉडल का विरोध कर रहा है?
भारत के साथ ही अलग-अलग वर्चुअल मीटिंग में चीन, ईरान, बांग्लादेश, सीरिया, इथियोपिया और मिस्र जैसे देश भी इस मॉडल का विरोध कर चुके हैं। इन देशों के साथ कार्यप्रणाली और अनौपचारिक डेटा के उपयोग के संबंध में खास सवाल उठाए थे।