नई दिल्ली. रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग (Russia-Ukraine War) की आंच आपके किचन तक पहुंचने वाली है. सूरजमुखी तेल (Sunflower Oil) के सबसे बड़े उत्पादक देश रूस और यूक्रेन से इसका निर्यात लगभग बंद हो गया है, जिससे Palm Oil की मांग जबरदस्त रूप से बढ़ी है.
कमोडिटी एक्सपर्ट और केडिया एडवाइजरी के डाइरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि ग्लोबल मार्केट के दबाव में भारत में पहली बार Palm Oil सभी खाने के तेल में सबसे महंगा हो गया है. आगे भी पाम तेल सहित सभी खाने के तेल 15-20 फीसदी महंगे हो सकते हैं. रूस और यूक्रेन दुनिया को कुल सूरजमुखी तेल का करीब 70 फीसदी निर्यात करते हैं और इसमें आई कमी को अब पाम तेल के जरिये पूरा किया जा रहा है.
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दो साल में तीन गुने से ज्यादा बढ़े पाम के दाम
केडिया ने बताया कि पाम के सबसे बड़ी उत्पादक देश मलेशिया में मई, 2020 में इसके भाव 1,937 रिंगित (मलेशियाई मुद्रा) थी, जो अब बढ़कर 7,100 रिंगित पहुंच गई है. यानी दो साल से भी कम समय में इसकी कीमतें तीन गुने से भी ज्यादा बढ़ चुकी हैं. यह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है. मंगलवार को ही पाम तेल का वायदा भाव 7 फीसदी उछाल पर पहुंच गया था.
भारत को फिर बदलनी होगी रणनीति
पाम तेल की बढ़ती कीमतों से बचने के लिए भारत ने पिछले दिनों अपनी रणनीति में बदलाव किया था और खाद्य तेल की जरूरतें पूरी करने के लिए सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के ज्यादा आयात की रणनीति बनाई थी. भारत अभी यूक्रेन से 17 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात करता है, जबकि रूस से दो लाख टन मंगाता है. दोनों ही देशों से निर्यात बाधित होने की वजह से उसे दोबारा पाम तेल खरीदना पड़ेगा, जो रिकॉर्ड हाई पर चल रहा है.
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सभी तरह के खाने के तेल महंगे होंगे
पाम तेल का इस्तेमाल सभी तरह के रिफाइंड तेल में किया जाता है. आप चाहे मूंगफली का तेल खरीदते हों या सोयाबीन का, उसमें पाम तेल की मिलावट होती है. पहले सरसों के तेल में भी इसकी मिलावट की जाती थी, लेकिन दो साल पहले सरकार ने इस पर बैन लगा दिया. इसका मतलब है कि पाम तेल के दाम बढ़ने से सरसों को छोड़कर सभी तरह के खाने के तेल महंगे हो जाएंगे, जिनके दाम पहले से ही 15 रुपये लीटर महंगे चल रहे हैं.
इन वजहों से भी बढ़ रही पाम तेल की कीमत
-सरकार पेट्रोल-डीजल में भी पाम की मिलावट करती है.
-पाम उत्पादक देशों पर मौसम की काफी मार पड़ी है, जिससे उत्पादन पर असर पड़ा है.
-महामारी के बाद लेबर कास्ट बढ़ गई और श्रमिकों को अब ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा.
-कंटेनर की शॉर्टेज चल रही है, जिससे लॉजिस्टिक्स और शिपमेंट खर्चीला हो गया है.
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