मुंबई . गांव में एक कहावत कही जाती है – “का बरखा जब कृषि सुखानी… ” इसका मतलब है…. ‘बारिश तब हुई जब खेती पानी के बिना सूख गई थी.’ यही हाल आईपीओ प्राइसिंग को लेकर सेबी के नए प्रस्ताव का भी है. बीते दिनों न्यूज एज की कई कंपनियां अपना आईपीओ लेकर आईं जो घाटे में थीं. जैसे पेटीएम, जोमैटो, कार ट्रेड, नायका, पॉलिसी बाजार.
इन कंपनियों के आईपीओ प्राइस और वैल्यूएशन को लेकर काफी मतभेद हुए. अब ये हालत है कि लिस्टिंग के बाद इनमें से ज्यादातर के शेयर प्राइस आधे से भी कम हो गए हैं. लिहाजा निवेशकों के अरबों रुपए इन आईपीओ में फंस गए हैं. बड़ी संख्या में रिटेल निवेशक भी इनमें पैसा लगाकर फंसे हुए हैं.
इश्यू प्राइस से संबंधित अधिक से अधिक जानकारी दी जाए
अब मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) आईपीओ के प्राइस या वैल्यूएशन से जुड़ी बहुत सारी चीजों पर स्पष्टता को लेकर एक नया प्रस्ताव लाने जा रही है. सेबी का कहना है, ‘घाटे वाली नए जमाने की कंपनियों के इनीशियल पब्लिक ऑफर (IPO) के डॉक्यूमेंट में इश्यू प्राइस से संबंधित अधिक से अधिक खुलासे होने चाहिए. इन कंपनियों को अपने IPO डॉक्यूमेंट में यह बताना चाहिए कि वे किन प्रमुख मापदंडों के आधार पर अपने इश्यू प्राइस तक पहुंची हैं या उसे तय किया है.’
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SEBI ने एक कंसल्टेशन पेपर में कहा कि ऐसी कंपनियों को अपने वैल्यूएशन से जुड़े खुलासे भी करने चाहिए, जो IPO में जारी किए गए नए शेयरों और पिछले 18 महीनों में अधिग्रहण किए गए शेयरों के आधार पर होना चाहिए.
मुनाफे का कोई ट्रैक रिकॉर्ड भी नहीं था
SEBI का यह कदम ऐसे में आया है, जब पिछले कुछ समय में नए जमाने की कई टेक कंपनियों ने फंडिंग जुटाने के लिए अपना IPO लॉन्च किया है. इनमें से कई टेक कंपनियों के पास IPO लाने से पहले के तीन सालों में मुनाफे का कोई ट्रैक रिकॉर्ड भी नहीं रहा था. ऐसी कंपनियां अभी IPO लाने के कतार में भी हैं.
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5 मार्च तक टिप्पणियां और सुझाव भेजे जा सकते हैं
ऐसी कंपनियां आम तौर पर लंबे समय तक लाभ कमा पाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाती हैं. इसकी वजह यह है कि ये कंपनिंया अपने शुरुआती वर्षों में प्रॉफिट में आने की जगह अपने बिजनेस के विस्तार पर और अधिक से अधिक मार्केट शेयर के कब्जे पर जोर देती हैं.
SEBI ने अब कंसल्टेशन पेपर जारी कर कहा है कि घाटे में चल रहीं ऐसी कंपनियों के IPO को लेकर किन अतिरिक्त खुलासों को अनिवार्य बनाए जाने की जरूरत है. सेबी ने कहा कि इस कंसल्टेशन पेपर पर 5 मार्च तक संबंधित पक्षों की तरफ से टिप्पणियां और सुझाव भेजे जा सकते हैं.
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