ताकि किसी जोड़े को न करनी पड़े ‘लैवंडर मैरिज’, LGBTQ के प्रति लोगों को संवेदनशील बना रहा सिनेमा


पिछले कुछ सालों में बड़े पर्दे से लेकर ओटीटी तक पर समलैंगिक किरदारों की कहानियों को प्रमुखता से जगह मिलने लगी है। बड़े-बड़े स्टार्स भी बेझिझक ये किरदार पर्दे पर उतार रहे हैं। इस कड़ी में सबसे ताजातरीन नाम है, फिल्म ‘बधाई दो’ जो लैवंडर मैरिज के कॉन्सेप्ट को दिखाती है। लैवंडर मैरिज समझौते भरी वो शादी होती है, जिसमें होमोसेक्सुअल कपल सिर्फ लोगों से अपनी सेक्सुएलिटी छिपाने के लिए आपस में शादी कर लेते हैं। ऐसे में, हमने सिनेमाई पर्दे पर होमोसेक्शुएलिटी और समलैंगिक किरदारों के सफरनामे पर की खास पड़ताल-

मजाक नहीं संवेदनशील चित्रण करने लगे मेकर्स
उत्तराखंड का पुलिसवाला शार्दुल अपने बॉयफ्रेंड और पीटी टीचर सुमन अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बहुत खुश थे। दिक्कत सिर्फ ये थी कि जिस शहर और परिवार से वे आते थे, अपने घरवालों को नहीं बता सकते थे कि उन्हें ऑपोजिट नहीं बल्कि अपने जैसे सेक्स के लोग ही आकर्षक लगते हैं यानी कि वे होमोसेक्सुअल हैं। लिहाजा, उन्होंने एक-दूसरे के साथ समझौते वाली लैवंडर मैरिज का रास्ता चुना, ताकि घरवालों, रिश्तेदारों का मुंह बंद कर सकें। ये कहानी है, हाल ही में आई राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर स्टारर फिल्म बधाई दो की, लेकिन हमारे समाज का सच भी इससे ज्यादा अलग नहीं है। होमोसेक्सुएलिटी को अपराध मानने वाला कानून धारा 377 भले ही साल 2018 में खत्म हो गया लेकिन हमारा समाज अब भी इसे गलत, गंदा और बीमारी ही मानता है। और लोगों की इस सोच को बदलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, अपना बॉलिवुड। पिछले दो-तीन सालों में ओटीटी से लेकर बड़े पर्दे तक पर होमोसेक्सुअल लोगों की कहानियां लगातार जगह बना रही हैं। कभी आर्ट फिल्मों तक सीमित रहा ये विषय अब मेनस्ट्रीम में आ चुका है। यही नहीं, पहले इन होमोसेक्सुअल किरदारों को मजाक की तरह दिखाने वाले फिल्ममेकर्स भी अब इसका संवेदनशील चित्रण करने लगे हैं।

कभी मचता था बवाल, उड़ता था मजाक
भारतीय समाज में सेक्स हमेशा से ढकने-छिपाने वाला टैबू विषय माना जाता रहा है। ऐसे में, पर्दे पर होमोसेक्सुअल किरदार दिखाने की सोचना भी फिल्ममेकर्स के लिए बड़े जिगरे का काम था। लेकिन साल 1996 में दीपा मेहता ने ये हिम्मत दिखाते हुए लेस्बियन लव स्टोरी वाली फिल्म फायर बनाकर सबको चौंका दिया। फिल्म में अपने पतियों की उपेक्षा सहने वाली जेठानी और देवरानी का किरदार निभाने वाली शबाना आजमी और नंदिता दास के बीच अंतरंग दृश्य थे। जाहिर है, समाज के ठेकेदारों की भौहें तो टेढ़ी होनी ही थी। इस फिल्म का खूब विरोध हुआ। इसे बैन तक कर दिया गया। इसी तरह फायर के करीब आठ साल बाद 2004 में आई फिल्म गर्लफ्रेंड में इशा कोप्पिकर और अमृता अरोड़ा के लेस्बियन रिश्ते पर भी काफी हो-हल्ला मचा। हालांकि, फिल्म इस विषय को गहराई से दिखाने में नाकाम रही। उसी दौरान साल 2005 में फिल्ममेकर ओनिर को अपनी फिल्म माय ब्रदर निखिल के लिए प्रड्यूसर मिलना मुश्किल हो गया था, क्योंकि उनका नायक गे था। उनकी 2010 की नैशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म आय एम के साथ भी यही हुआ। प्रड्यूसर के अभाव में उन्होंने सेक्सुएलिटी के अलग-अलग आयाम दिखाती ये फिल्म क्राउडफंडिंग से बनाई। शायद यही वजह थी कि करण जौहर जैसे कमर्शल फिल्म निर्माताओं ने इस विषय को दिखाने के लिए मसखरेपन का सहारा लेना बेहतर समझा। करण ने कल हो न हो और दोस्ताना जैसी फिल्मों में होमोसेक्सुएलिटी को मजाकिया अंदाज में दिखाया, जिसके लिए उनकी आलोचना भी हुई। हालांकि, बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि इन फिल्मों के जरिए कम से कम बड़ी तादाद में लोगों को इस बारे में पता तो चला। वहीं, बाद में उन्होंने कपूर एंड संस और बॉम्बे टॉकीज जैसी फिल्मों में समलैंगिकता को बेहतर और संवेदनशील ढंग से दिखाया भी। वैसे, एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति लोगों को जागरूक और संवेदनशील करने में दीपा मेहता की फायर, ओनिर की माय ब्रदर निखिल और आय एम, 2002 में आई मैंगो सॉफल जैसी फिल्मों का बड़ा हाथ है, जिन्होंने बाकी फिल्मकारों को भी राह दिखाई। इसके बाद, हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड (2007) फैशन (2008), डून्नो वाय न जाने क्यों (2010) स्टूडेंट ऑफ द इयर (2012), बॉम्बे टॉकीज (2013), मार्गरीटा विथ द स्ट्रा (2014), डेढ़ इश्किया(2014), बॉम्बे टॉकीज (2013) जैसी फिल्मों में भी होमोसेक्सुअल लोगों की मुश्किलें, दुविधा, दोहरी जिंदगी को दिखाया गया। वैसे, हिंदी फिल्मों का पहला गे किरदार फिल्म मस्त कलंदर में अनुपम खेर अभिनीत पिंकू को माना जाता रहा है लेकिन हाल ही में 1971 की एक अनरिलीज्ड हिंदी फिल्म बदनाम बस्ती सामने आई, जिसमें गे रिलेशनशिप को दर्शाया गया है।

बड़े पर्दे से ओटीटी तक आम हुए होमोसेक्सुअल किरदार
विरोधों और सामाजिक दवाबों का लंबा सफर तय करते हुए अब पिछले कुछ सालों में होमोसेक्सुअल किरदारों ने पर्दे पर अपनी जगह मजबूत की है। ओटीटी पर तो लगभग हर दूसरी-तीसरी वेब सीरीज में ऐसे किरदार दिखते हैं। मोर शॉट्स प्लीज, मेड इन हेवन, बॉम्बे बेगम्स, मिसमैच्ड, द मैरिड वुमन, हिज स्टोरी, ह्यूमन, रोमिल एंड जुगल, हाए तौबा, मिसमैच्ड, डार्क 7 नाइट, बिच्छू जैसी कई वेब सीरीज में समलैंगिक लोगों की भावनाओं, प्रेम और दुविधाओं को दर्शाया गया है। वहीं, बड़े पर्दे पर भी बधाई दो से पहले अलीगढ़, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा से लेकर शुभ मंगल ज्यादा सावधान जैसी फिल्में आई हैं। जानकारों के मुताबिक, स्क्रीन पर एलजीबीटीक्यू कहानियों के प्रति बढ़ते रुझान की कई वजहें हैं। एक तो वक्त के साथ लोगों की सोच बदल रही है, तो साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आर्टिकल 377 को रद्द करने और समलैंगकता को जुर्म की श्रेणी से हटाने के बाद फिल्ममेकर्स की हिम्मत भी बढ़ी है। फिल्म शीर कोरमा में लेस्बियन किरदार निभाने वाली ऐक्ट्रेस दिव्या दत्ता इस बदलाव पर कहती हैं, ‘सोसायटी बदल रही है, क्योंकि एलजीबीटी कम्यूनिटी के हक में कानून पास हुए हैं। असल में हमारी कंडीशनिंग कर दी जाती है कि ये सही है, ये गलत है। ये करो, ये न करो, लेकिन मुझे लगता है कि हमने एक बेबी स्टेप लेना शुरू किया है। मुझे खुशी है कि इस कम्यूनिटी के बारे में कहानियां कही जा रही हैं।’ वहीं, एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए आवाज उठाने वाले फिल्ममेकर ओनिर के मुताबिक, ‘2018 में सुप्रीम कोर्ट का होमोसेक्सुएलिटी को अपराध के दायरे से हटाने की वजह से बहुत बदलाव आया है। इसी वजह से ओटीटी पर ये कहानियां इतनी तादाद में आ रही हैं। दूसरे, ओटीटी पर इंटरनैशनल स्तर पर इन्क्लूसिव (सबको समावेश करके चलना) कॉन्टेंट रखना एक एजेंडा भी है कि उन्हें हर कम्यूनिटी को दिखाना होता है।’

नामी-गिरामी स्टार बेहिचक कर रहे गे-लेस्बियन के रोल
बदलते दौर में एक अच्छी बात ये भी देखने को मिल रही है कि अब बड़े और मेनस्ट्रीम ऐक्टर और ऐक्ट्रेसेज भी पर्दे पर बेहिचक समलैंगिक किरदारों को जीवंत कर रहे हैं। आज के दौर में बधाई दो में भूमि पेडनेकर और राजकुमार राव, शुभ मंगल ज्यादा सावधान में आयुष्मान खुराना और जितेंद्र कुमार, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा में सोनम कपूर, अलीगढ़ में मनोज बाजपेयी, अजीब दास्तान्स की कहानी गीली पुच्ची में अदिति राव हैदरी और कोंकणा सेन शर्मा, बॉम्बे टॉकीज में साकिब सलीम और रणदीप हुड्डा, ह्यूमन्स में शेफाली शाह और कीर्ति कुल्हारी जैसे कलाकारों ने बेझिझक समलैंगिक किरदार निभाए और कई ने किस सीन तक फिल्माए। वहीं, बॉलिवुड में लंबी पारी खेलने वाली माधुरी दीक्षित भी डेढ़ इश्किया में हुमा कुरैशी के साथ होमोसेक्सुअल रिश्ते में दिखीं, तो स्टूडेंट ऑफ द इयर में ऋषि कपूर तक ने होमोसेक्सुअल डीन का किरदार निभाया। कलाकारों की इस बदलती सोच पर कोंकणा सेन शर्मा कहती हैं, ‘सभी को इवॉल्व होना होता है। आप जैसे 100 साल पहले रहते थे, वैसे हमेशा नहीं रह सकते। मुझे लगता है कि अब अवेयरनेस और एजुकेशन बढ़ी है, इसलिए लोग भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। पहले बहुत सी ऐसी चीजें थीं, सति प्रथा भी थी, औरतों को वोट का हक नहीं था, लेकिन लोग उससे आगे बढ़े न। समाज के साथ खुद को अडॉप्ट किया, तो हमारी सोच समय के साथ बदलती हैं, क्योंकि हम इंसान हैं। हम समाज के तौर पर इवॉल्व हो रहे हैं, बेहतर हो रहे हैं।’

image Source

Enable Notifications OK No thanks