Sri Lanka Crisis: श्रीलंका में सरकार ने किया आर्थिक आंकड़ों से खिलवाड़, जानें कितना महंगा पड़ा कदम


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श्रीलंका सरकार ने आर्थिक आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने की कोशिश की। अब देश इसकी महंगी कीमत चुका रहा है। विशेषज्ञों का आरोप है कि आर्थिक आंकड़ों से खिलवाड़ श्रीलंका की मौजूदा मुसीबत का एक बड़ा कारण है। 

श्रीलंका सरकार ने आर्थिक आंकड़ों की गणना के लिए आधार वर्ष को 2010 से बढ़ा कर 2015 करने का फैसला किया था। सिर्फ इस फैसले की वजह से 2021 श्रीलंका के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 876 अरब रुपये ज्यादा दिखाया। इससे जीडीपी की तुलना में कर्ज और राजकोषीय घाटे का अनुपात कम हो गया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के इस पहलू के बारे में एक विश्लेषण वेबसाइट इकॉनमीनेक्स्ट.कॉम ने प्रकाशित किया है। 

इस विश्लेषण के मुताबिक, नए सीरीज के आंकड़ों में मुद्रास्फीति दर को एडजस्ट करने के बाद श्रीलंका श्रीलंका की जीडीपी 13 खरब 10 अरब रुपये बताई गई। अगर पुरानी सीरीज से गणना होती, तो सकल घरेलू उत्पाद 9 खरब 88 अरब रुपये सामने आता। सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य ज्यादा होने पर स्वाभाविक रूप से सरकार पर मौजूद ऋण घट गया। पहले सरकारी कर्ज जीडीपी के 104.6 प्रतिशत के बराबर था। नई सीरीज में यह 99.5 प्रतिशत दिखा। 

जीडीपी गणना की नई सीरीज में कुछ नई गतिविधियों को भी शामिल किया गया। इनमें बंदरगाह शहर की नई आर्थिक गतिविधियां भी हैं। इन सबसे जीडीपी में वैसी वृद्धि दिखी, जिससे असल में अर्थव्यवस्था में अभी कोई खास योगदान नहीं हो रहा था। इसी तरह अगर पुरानी शृंखला से गणना होती, तो यह सामने आता कि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद घट कर 3,772 डॉलर रह गया है। जबकि नई सीरीज के मुताबिक गणना से दिखा कि यह पहले के स्तर यानी 3,922 डॉलर बना हुआ है। 

सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी का एक परिणाम यह हुआ कि जीडीपी की तुलना में सरकारी राजस्व की मात्रा कम हो गई। इकॉनमीनेक्स्ट के विश्लेषण की गणना के मुताबिक 2014 में जीडीपी की तुलना में सरकारी राजस्व का अनुपात 12.3 प्रतिशत था। अगर नई सीरीज से उस समय के आंकड़ों को देखा जाए, तो ये आंकड़ा 11.6 फीसदी दिखेगा। इससे नव-उदारवादी अर्थशास्त्रियों को यह तर्क देने का मौका मिला कि श्रीलंका में लोग अपनी असल आर्थिक हालत की तुलना में कम टैक्स दे रहे हैँ। इसी तर्क के आधार पर सरकार ने कुछ परोक्ष करों में वृद्धि की। 

श्रीलंका की इस वेबसाइट से जुड़े विशेषज्ञों की राय है कि अर्थव्यवस्था की असली सेहत छिपाने की राजपक्षे सरकार की कोशिश अब देश को महंगी पड़ रही है। अगर अर्थव्यवस्था की असली सूरत सामने रहती, तो सरकार पहले अपनाई गई खर्च घटाने की नीति पर आगे बढ़ती। लेकिन गोटाबया राजपक्षे सरकार ने इस नीति को छोड़ दिया। 2019 में सरकार ने प्रत्यक्ष करों में कटौती की। जबकि उससे राजकोष में आमदनी की हुई कमी की भरपाई के लिए कोई उपाय नहीं किए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि आज देश अपने इतिहास के सबसे गंभीर मुद्रा संकट को झेल रहा है, तो उसके पीछे एक बड़ा हाथ ऐसे ही कुप्रबंधन का है।

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श्रीलंका सरकार ने आर्थिक आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने की कोशिश की। अब देश इसकी महंगी कीमत चुका रहा है। विशेषज्ञों का आरोप है कि आर्थिक आंकड़ों से खिलवाड़ श्रीलंका की मौजूदा मुसीबत का एक बड़ा कारण है। 

श्रीलंका सरकार ने आर्थिक आंकड़ों की गणना के लिए आधार वर्ष को 2010 से बढ़ा कर 2015 करने का फैसला किया था। सिर्फ इस फैसले की वजह से 2021 श्रीलंका के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 876 अरब रुपये ज्यादा दिखाया। इससे जीडीपी की तुलना में कर्ज और राजकोषीय घाटे का अनुपात कम हो गया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के इस पहलू के बारे में एक विश्लेषण वेबसाइट इकॉनमीनेक्स्ट.कॉम ने प्रकाशित किया है। 

इस विश्लेषण के मुताबिक, नए सीरीज के आंकड़ों में मुद्रास्फीति दर को एडजस्ट करने के बाद श्रीलंका श्रीलंका की जीडीपी 13 खरब 10 अरब रुपये बताई गई। अगर पुरानी सीरीज से गणना होती, तो सकल घरेलू उत्पाद 9 खरब 88 अरब रुपये सामने आता। सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य ज्यादा होने पर स्वाभाविक रूप से सरकार पर मौजूद ऋण घट गया। पहले सरकारी कर्ज जीडीपी के 104.6 प्रतिशत के बराबर था। नई सीरीज में यह 99.5 प्रतिशत दिखा। 

जीडीपी गणना की नई सीरीज में कुछ नई गतिविधियों को भी शामिल किया गया। इनमें बंदरगाह शहर की नई आर्थिक गतिविधियां भी हैं। इन सबसे जीडीपी में वैसी वृद्धि दिखी, जिससे असल में अर्थव्यवस्था में अभी कोई खास योगदान नहीं हो रहा था। इसी तरह अगर पुरानी शृंखला से गणना होती, तो यह सामने आता कि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद घट कर 3,772 डॉलर रह गया है। जबकि नई सीरीज के मुताबिक गणना से दिखा कि यह पहले के स्तर यानी 3,922 डॉलर बना हुआ है। 

सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी का एक परिणाम यह हुआ कि जीडीपी की तुलना में सरकारी राजस्व की मात्रा कम हो गई। इकॉनमीनेक्स्ट के विश्लेषण की गणना के मुताबिक 2014 में जीडीपी की तुलना में सरकारी राजस्व का अनुपात 12.3 प्रतिशत था। अगर नई सीरीज से उस समय के आंकड़ों को देखा जाए, तो ये आंकड़ा 11.6 फीसदी दिखेगा। इससे नव-उदारवादी अर्थशास्त्रियों को यह तर्क देने का मौका मिला कि श्रीलंका में लोग अपनी असल आर्थिक हालत की तुलना में कम टैक्स दे रहे हैँ। इसी तर्क के आधार पर सरकार ने कुछ परोक्ष करों में वृद्धि की। 

श्रीलंका की इस वेबसाइट से जुड़े विशेषज्ञों की राय है कि अर्थव्यवस्था की असली सेहत छिपाने की राजपक्षे सरकार की कोशिश अब देश को महंगी पड़ रही है। अगर अर्थव्यवस्था की असली सूरत सामने रहती, तो सरकार पहले अपनाई गई खर्च घटाने की नीति पर आगे बढ़ती। लेकिन गोटाबया राजपक्षे सरकार ने इस नीति को छोड़ दिया। 2019 में सरकार ने प्रत्यक्ष करों में कटौती की। जबकि उससे राजकोष में आमदनी की हुई कमी की भरपाई के लिए कोई उपाय नहीं किए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि आज देश अपने इतिहास के सबसे गंभीर मुद्रा संकट को झेल रहा है, तो उसके पीछे एक बड़ा हाथ ऐसे ही कुप्रबंधन का है।



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