पेट्रोल-डीजल की महंगाई से राहत देने की गुंजाइश राज्यों के पास ज्यादा


आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इंग्लैंड में जनवरी से मार्च 2022 के दौरान 15 लाख लोगों ने वीडियो स्ट्रीमिंग सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिया. मीडिया कंसल्टेंसी फर्म कैंटर के अनुसार इनमें से अनेक लोग महंगाई से परेशान थे और पैसे बचाने के लिए सब्सक्रिप्शन बंद किया है. सब्सक्रिप्शन घटने से अभी तक वीडियो में विज्ञापनों से परहेज करने वाली नेटफ्लिक्स भी स्ट्रैटजी बदलने पर मजबूर हुई है और वह विज्ञापनों वाले सस्ते सब्सक्रिप्शन का विकल्प लेकर आएगी. मतलब यह कि महंगाई से सिर्फ आप और हम नहीं, पूरी दुनिया जूझ रही है.

निश्चित रूप से इसकी एक वजह ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल का महंगा होना है. मार्च में 30 फीसदी की रिकॉर्ड तेजी के बाद दाम घटकर 100 डॉलर प्रति बैरल से कुछ ऊपर स्थिर हुए हैं. लेकिन युद्ध लंबा खिंचने की आशंका को देखते हुए अरब देश एक बार फिर दाम बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं.

भारत में बढ़ती महंगाई के बीच बार-बार यह मांग की जा रही है कि केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर टैक्स घटाएं. केंद्र सरकार ने आखिरी बार 4 नवंबर को पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 5 रुपए और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर घटाई थी. उसके बाद कई राज्यों ने अपना वैट भी कम किया. लेकिन 22 मार्च से 6 अप्रैल तक पेट्रोल और डीजल 10-10 रुपए महंगे हो चुके हैं और एक बार फिर इन पर टैक्स घटाने की मांग उठने लगी है. देखते हैं कि टैक्स घटाने की गुंजाइश केंद्र के पास ज्यादा है या राज्यों के पास. इंडियन ऑयल के 16 अप्रैल के प्राइस बिल्डअप के अनुसार दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की खुदरा कीमत 105.41 रुपए इस प्रकार तय हुईः-

बेस प्राइस – 56.32 रुपए, भाड़ा – 0.20 रुपए, डीलर ने दिए – 56.52 रुपए, केंद्र की एक्साइज ड्यूटी – 27.90 रुपए, डीलर का कमीशन – 3.86 रुपए, राज्य का वैट 19.40% – 17.13 रुपए, ग्राहक के लिए कीमत – 105.41 रुपए

यहां गौर करने वाली बात है कि केंद्र सरकार प्रति लीटर एकमुश्त एक्साइज ड्यूटी लेती है, जबकि राज्य प्रतिशत में वैट लेते हैं. ग्लोबल मार्केट में दाम बढ़ने पर कंपनी बेस प्राइस बढ़ाती है तो केंद्र को तो हर लीटर पर तय राशि ही मिलेगी, लेकिन राज्य को ज्यादा वैट मिलेगा. मान लीजिए बेस प्राइस, भाड़ा, एक्साइज और डीलर कमीशन मिलाकर 100 रुपए हुए, तो 19.40 प्रतिशत की दर से राज्य सरकार को 19.40 रुपए वैट मिलेगा. बेस प्राइस बढ़ने पर भाड़ा, एक्साइज और कमीशन मिलाकर अगर 105 रुपए होते हैं तो 19.40 प्रतिशत की दर से वैट की राशि 20.37 रुपए हो जाएगी. यानी बिना दर बढ़ाए राज्य की आमदनी बढ़ जाएगी. इस तरह जब दाम बढ़ रहे हों तब राज्य सरकार के पास वैट की दर घटाकर आम लोगों को राहत देने की गुंजाइश ज्यादा होती है.लेकिन दाम घटने पर स्थिति उलट होती है. केंद्र सरकार को तो एक्साइज ड्यूटी उतनी ही मिलेगी, लेकिन बेस प्राइस घटने पर वैट की राशि कम हो जाएगी. अगर बेस प्राइस, भाड़ा, एक्साइज और कमीशन सब 100 रुपए से घटकर 95 रुपए हो गए तो 19.40 प्रतिशत की दर से वैट की राशि 18.43 रुपए हो जाएगी. डीजल के मामले में भी यही फॉर्मूला अपनाया जाता है.

पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार इस समय पेट्रोल पर सबसे ज्यादा वैट की दर तेलंगाना (35.20%), असम (32.66%), राजस्थान (31.04%), आंध्र प्रदेश (31%), केरल (30.08%), मध्य प्रदेश (29%) और महाराष्ट्र (26%) में है. कुछ राज्यों ने वैट के रूप में ली जाने वाली राशि की न्यूनतम सीमा तय कर रखी है. जैसे बिहार में वैट की दर तो 23.58% है लेकिन यह कम से कम 16.65 रुपए होगी. कुछ राज्य वैट के अलावा सेस भी वसूलते हैं. इसलिए भी ग्लोबल मार्केट में दाम बढ़ने पर उनके लिए गुंजाइश बढ़ जाती है.

वित्त मंत्री को ज्यादा नहीं लगती यह महंगाई

थोक महंगाई लगातार 12 महीने से दहाई अंकों में है और मार्च में यह रिकॉर्ड 14.6 फीसदी दर्ज हुई. मार्च में खुदरा महंगाई 6.9 फीसदी थी जो 17 महीने में सबसे ज्यादा है. यह भी लगातार 6 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. इससे आपका और हमारा बजट भले बिगड़ रहा हो, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस महंगाई को अधिक नहीं मानती हैं. उनका कहना है कि हमने 4 फीसदी औसत के साथ दो फीसदी कम या ज्यादा की सीमा तय कर रखी है. यानी यह छह फीसदी तक जा सकती है. इसलिए 6.9 फीसदी महंगाई दर बहुत ज्यादा नहीं है.

खुदरा ग्राहकों के लिए तो डीजल हाल में 10 रुपए प्रति लीटर महंगा हुआ है, लेकिन बड़े ग्राहकों के लिए 25 रुपए की बढ़ोतरी हुई है. इसका असर हर चीज पर पडा है. थोक महंगाई में सबसे ज्यादा बिजली और ईंधन की महंगाई 34.5 फीसदी बढ़ी है. आलू 25 फीसदी, खाने का तेल 22 फीसदी और सब्जियां 20 फीसदी महंगी हुई हैं. क्रिसिल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि सीमेंट कंपनियां प्रति बैग दाम 25 से 50 रुपए तक बढ़ा सकती हैं. ईंधन महंगा होने के कारण उनकी ढुलाई का खर्च बढ़ा है. पहले एसबीआई और फिर कई अन्य बैंकों ने कर्ज भी महंगा किया है. इससे होम और कार समेत सभी तरह के लोन महंगे हो गए हैं. निकट भविष्य में राहत की उम्मीद कम, दाम और बढ़ने के आसार ज्यादा हैं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

ब्लॉगर के बारे में

सुनील सिंह

सुनील सिंहवरिष्ठ पत्रकार

लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.

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