सुप्रीम कोर्ट: एफसीआरए के प्रावधानों में संशोधनों की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी, कहा- पिछले अनुभवों के चलते सख्ती जरूरी


न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Fri, 08 Apr 2022 08:20 PM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार नहीं हो सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति के विदेशी योगदान से प्रभावित होने की संभावना का सिद्धांत विश्व स्तर पर मान्य है। 

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 के कुछ प्रावधानों में किए गए संशोधनों की वैधता बरकरार रखी है। ये संशोधन सितंबर 2020 से प्रभाव में आए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विदेशी योगदान के दुरुपयोग के पिछले अनुभव के कारण सख्त शासन आवश्यक हो गया था। विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार नहीं हो सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति के विदेशी योगदान से प्रभावित होने की संभावना का सिद्धांत विश्व स्तर पर मान्य है। 

एनजीओ को मिलने वाली विदेशी फंडिंग को सख्ती से विनियमित करने के लिए किए गए संशोधनों को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि विदेशी योगदान के कई प्राप्त करने वाले कई संगठनों ने इसका उपयोग उन उद्देश्यों के लिए नहीं किया था जिनके लिए उन्हें पंजीकृत किया गया था या अधिनियम के तहत पूर्व अनुमति दी गई थी। अदालत ने आगे कहा कि विदेशी फंडिंग पाने वाली कई संस्थाएं वैधानिक अनुपालनों का पालन करने और पूरा करने में असफल रहे।

ये संशोधन अधिनियम की धारा 7, 12(1ए) और 17 में किए गए थे। न्यायाधीश एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संशोधित प्रावधान संविधान और मूल अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, पीठ ने इस अधिनियम की धारा 12ए को पढ़ा और कहा कि इसका मतलब संघों या गैर सरकारी संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों या फिर ऐसे पदाधिकारियों को जो भारतीय नागरिक हैं, उनकी पहचान के उद्देश्य से भारतीय पासपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति देना है।

132 पृष्ठों का फैसला विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम 2020 के तहत एफसीआरए 2010 के प्रावधानों में संशोधन की संवैधानिक वैधता पर हमला करने वाली याचिकाओं पर दिया गया था, जिन्हें 29 सितंबर 2020 को लागू किया गया थे। फैसला देने वाली पीठ में न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार भी शामिल थे। 

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 के कुछ प्रावधानों में किए गए संशोधनों की वैधता बरकरार रखी है। ये संशोधन सितंबर 2020 से प्रभाव में आए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विदेशी योगदान के दुरुपयोग के पिछले अनुभव के कारण सख्त शासन आवश्यक हो गया था। विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार नहीं हो सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति के विदेशी योगदान से प्रभावित होने की संभावना का सिद्धांत विश्व स्तर पर मान्य है। 

एनजीओ को मिलने वाली विदेशी फंडिंग को सख्ती से विनियमित करने के लिए किए गए संशोधनों को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि विदेशी योगदान के कई प्राप्त करने वाले कई संगठनों ने इसका उपयोग उन उद्देश्यों के लिए नहीं किया था जिनके लिए उन्हें पंजीकृत किया गया था या अधिनियम के तहत पूर्व अनुमति दी गई थी। अदालत ने आगे कहा कि विदेशी फंडिंग पाने वाली कई संस्थाएं वैधानिक अनुपालनों का पालन करने और पूरा करने में असफल रहे।

ये संशोधन अधिनियम की धारा 7, 12(1ए) और 17 में किए गए थे। न्यायाधीश एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संशोधित प्रावधान संविधान और मूल अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, पीठ ने इस अधिनियम की धारा 12ए को पढ़ा और कहा कि इसका मतलब संघों या गैर सरकारी संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों या फिर ऐसे पदाधिकारियों को जो भारतीय नागरिक हैं, उनकी पहचान के उद्देश्य से भारतीय पासपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति देना है।

132 पृष्ठों का फैसला विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम 2020 के तहत एफसीआरए 2010 के प्रावधानों में संशोधन की संवैधानिक वैधता पर हमला करने वाली याचिकाओं पर दिया गया था, जिन्हें 29 सितंबर 2020 को लागू किया गया थे। फैसला देने वाली पीठ में न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार भी शामिल थे। 



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